नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू) बैंगलोर के एक पूर्व कुलपति ने एनएलएसआईयू द्वारा इस साल सीएलएटी की परीक्षा के आयेाजन में विलंब के मद्देनजर अलग से परीक्षा (एनएलएटी) आयोजित करने के निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है।
अधिवक्ता सुघोष सुब्रमणियम और विपिन नायर ने प्रभावित अभिभावक और एनएलएसआईयू के पूर्व कुलपति प्रो. डा. आर. वेंकट राव की ओर से यह याचिका दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि वर्तमान कुलपति का अलग से परीक्षा आयोजित करने का निर्णय एनएलएसआईयू को ‘आइलैंड ऑफ एक्सीलेंस’ से ‘आइलैंड ऑफ एक्सक्लूजन’ में तब्दील कर देगा।
डा. राव ने अपनी याचिका में चार प्रमुख बिन्दुओं को उठाया है:
एनएलएसआईयू के वर्तमान कुलपति को अलग से परीक्षा आयोजित करने के लिये अकादमिक काउन्सिल की आवश्यक सहमति नही मिली है
अलग से परीक्षा आयोजित करने की वजह निराधार है
घर से परीक्षा के लिये एक लैपटॉप और 1 एमबीपी इंटरनेट की गति की तकनीकी अनिवार्यता दुखद, मनमानी, पक्षपातपूर्ण और गैरकानूनी है।
छात्रों की न्यायोचित अपेक्षाओं से खिलवाड़
याचिककर्ताओं द्वारा कहा गया है:
एनएलएसयूआई को वैकल्पिक प्रवेश प्रक्रिया (एनएलएटी) विकसित करने का अधिकार नहीं है। इस वैकल्पिक प्रक्रिया को अपनाने के एनएलएसआईयू को अधिकृत करने वाली कार्यकारिणी की बैठक ही इसके बॉइलॉज के अंतर्गत ही गैरकानूनी थी।
एनएलयू कंसोर्टियम की 28 अगस्त की बैठक के बाद सीएलएटी की परीक्षा 28 सितंबर के लिये स्थगित किये जाने के बाद एनएचएसआईयू ने एनएलएटी अर्थात अपनी अलग से प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के लिये एकतरफा और जल्दबाजी में तीन सितंबर को अधिसूचना जारी की।
एनएलएटी के लिये 10 सितंबर तक ऑनलाइन आवेदन करना है जबकि यह प्रक्रिया तीन सितंबर को शुरू हुयी है। इसका मतलब 12 सितंबर के एनएलएटी के लिये आवेदन करने के लिये सिर्फ सात दिन का समय दिया गया।
इस परीक्षा में लिखने के लिये छात्रों को बतायी गयी तकनीकी आवश्यकतायें छात्रो पर अनावश्यक बोझ डालती है। यह ऑन लाइन परीक्षा कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित मानव निगरानी के माध्यम से होगी जिसके लिये परीक्षा की अवधि के दौरान लगातार ऑडियो और वीडियो डाटा चलता रहना जरूरी है। याचिकाकर्ता का कहना है कि छात्रों से खुद ही लैपटॉप की व्यवस्था करने की अपेक्षा करना दोषपूर्ण और अनुचित है जो सीएलएटी की परीक्षा की प्रक्रिया के पूरी तरह विपरीत है।
एनएलएसआईयू के अचानक लिये गये इस निर्णय ने न सिर्फ सीएलएटी 2020 की तैयारी कर रहे है छात्रों को असमंजस और भ्रम की स्थिति डाल दिया है बल्कि कंसोर्टियम में एनएलएसआईयू की स्थिति को भी बुरी तरह प्रभावित कर दिया है।। एनएलएसआईयू के इस सनक भरे आचरण ने छात्रों को जबर्दस्त दबाव में डाल दिया है।
एनएलएसआईयू की कार्रवाई ने अप्रत्यशित अनिश्चित्ता पैदा कर दी है और हजारों छात्रों पर अनावश्यक बोझ डाल दिया है जो अब भावी कदम के बारे में अनिश्चय की स्थिति में हैं।
एलएलएसआईयू के इस कदम ने हजारों छात्रों और उनके माता पिता तथा अभिभावकों के मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया है। इसमे संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रदत्त अधिकार, शिक्षा का अधिकार और अनुच्छेद 21 में प्रदत्त अन्य अधिकार शामिल हैं।
इन तथ्यों के मद्देनजर, सर्वोच्च न्यायालय से अब आग्रह किया गया है:
इस साल एनएलएसआईयू प्रवेश के लिए एनएलएटी के संचालन के लिए एनएलएसआईयू द्वारा जारी 3 सितंबर की अधिसूचना को रद्द करें;
एनएलएटी में बैठने के लिए तकनीकी आवश्यकताओं के बारे में एनएलएसआईयू की अधिसूचना को रद्द किया जावे;
सीएलएटी स्कोर के आधार पर इस वर्ष छात्रों को प्रवेश देने के लिए एनएलएसआईयू को निर्देशित करें।
एनएलएटी को 12 सितंबर को ऑनलाइन आयोजित किया जाना है। कॉमन लॉ एंट्रेंस टेस्ट (सीएलएटी) 28 सितंबर को निर्धारित किया गया है।
एनएलएटी को चुनौती देते हुये पांच छात्रों ने झारखंड उच्च न्यायालय में भी एक याचिका दायर कर रखी है।
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें
Breaking: Ex-Vice-Chancellor of NLSIU, Prof Dr Venkata Rao moves SC against NLAT