किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश (CJ) रोस्टर का मास्टर होता है, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक ऐसे व्यक्ति की याचिका को खारिज कर दिया, जिसने प्रार्थना की थी कि उसके द्वारा दायर मामलों को किसी विशेष न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध नहीं किया जाना चाहिए। (अरुण मिश्रा बनाम उच्च न्यायालय, इलाहाबाद)।
न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की दलीलें और प्रार्थना पूरी तरह से गलत है और याचिका को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने अपने आदेश मे कहा, “यह अच्छी तरह से तय है कि रोस्टर का मास्टर मुख्य न्यायाधीश होता है। यह मुख्य न्यायाधीश का विशेषाधिकार है कि किस न्यायाधीश या न्यायाधीश के समक्ष मामले को सूचीबद्ध किया जाना है। मुख्य न्यायाधीश के अधिकार के तहत रजिस्ट्री द्वारा सूची तैयार की जाती है। इन परिस्थितियों में, उच्च न्यायालय को किसी विशेष न्यायाधीश के समक्ष किसी विशेष वकील के मामलों को सूचीबद्ध नहीं करने का कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है। याचिकाकर्ता द्वारा की गई प्रार्थना पूरी तरह से गलत है।“
कोर्ट ने याचिकाकर्ता अरुण मिश्रा पर 20,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
अदालत ने शुरू में कहा कि याचिका अजीब प्रार्थना के साथ दायर की गई है - कि कुछ रिट याचिकाओं को एक बेंच के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए जिसमें एक विशेष न्यायाधीश शामिल न हो।
उच्च न्यायालय का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता आशीष मिश्रा ने न्यायालय को सूचित किया कि राहत खंड में उल्लिखित रिट याचिकाओं पर न्यायालय द्वारा पहले ही निर्णय लिया जा चुका है और इसलिए यह मानते हुए भी कि पहली प्रार्थना की गई है।
दूसरी ओर, व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए अरुण मिश्रा ने दूसरी प्रार्थना की जो यह थी कि उनके द्वारा दायर कोई भी मामला किसी विशेष न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने मामले को सूचीबद्ध करने के सीजे के विशेषाधिकार की पुष्टि करते हुए उसी को खारिज कर दिया।
अदालत ने आदेश दिया, "याचिकाकर्ता द्वारा की गई प्रार्थना पूरी तरह से गलत है। याचिका 20,000 रुपये की लागत के साथ खारिज की जाती है।"
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें