बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया में तेजी लाने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई से सोमवार को खुद को अलग कर लिया।
एक कानूनी प्रोफेसर, डॉ शर्मिला घुगे द्वारा दायर याचिका में प्रार्थना की गई थी कि जब तक उच्च न्यायालय में 94 न्यायाधीशों की स्वीकृत शक्ति नहीं हो जाती, तब तक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को तदर्थ आधार पर लाया जा सकता है।
न्यायमूर्ति माधव जामदार सहित मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया और निर्देश दिया कि मामले को उस पीठ के समक्ष रखा जाए जहां सीजे सदस्य नहीं हैं।
दीवानी एंड एसोसिएट्स के माध्यम से दायर याचिका में उच्च न्यायालय से लोक प्रहरी बनाम भारत संघ के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करने की मांग की गई थी।
याचिका में यह भी कहा गया है कि लंबित दीवानी मामलों की कुल संख्या 2,31,401 है, आपराधिक मामले 33,353 हैं, इसलिए 5 वर्षों से अधिक समय से लंबित मामलों की कुल संख्या 2,64,754 है।
घुगे ने भारत के विधि आयोग की 124वीं रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें यह भी सिफारिश की गई थी कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के न्यायिक अनुभव का उपयोग मामलों के बढ़ते बकाया के निपटान के लिए किया जा सकता है।
इसे ध्यान में रखते हुए, याचिका में निम्नलिखित राहत के लिए प्रार्थना की गई:
संविधान के अनुच्छेद 217 और 224 के तहत न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया में तेजी लाना;
उच्च न्यायालय में पूर्ण स्वीकृत संख्या को भरने के लिए लंबित तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर विचार करने और उसमें तेजी लाने का निर्देश देना।
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