वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) दुष्यंत दवे ने उच्चतम न्यायालय के सेक्रेटरी जनरल को बहुत ही कड़े शब्दों में पत्र लिख कर रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी की जमानत याचिका सूचीबद्ध करने के तरीके पर सवाल उठाया है। यह याचिका दायर करने के अगले दिन ही सूचीबद्ध की गयी है।
दवे ने गोस्वामी की याचिका शीर्ष अदालत में शीघ्र सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किये जाने को रेखांकित करते हुये सेकेटरी जनरल को लिखे पत्र में ‘कड़ा विरोध’ दर्ज किया है जबकि इसी तरह की दूसरे वादकारियों को प्रतीक्षा में रखा जा रहा है।
दवेने इस पत्र के विषय को ‘‘ अर्णब गोस्वमी की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका असाधारण तत्परता से सूचीबद्ध करना’’ बताते हुये सवाल किया है कि मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने स्वंय पत्रकार द्वारा दायर याचिका को सूचीबद्ध करने का विशेष निर्देश दिया था।
दवे ने सवाल किया है, ‘‘जब हजारों व्यक्ति जेलों में बंद हैं और लंबे समय से वहां है जबकि उच्चतम न्यायालय में उनके मामले हफ्तों ओर महीनों तक सूचीबद्ध नहीं हो रहे हैं, ऐसी स्थिति में यह बेहद परेशान करने वाला है कि कैसे और क्यों हर बार गोस्वामी उच्चतम न्यायालय आते हैं, उनका मामला तत्काल सूचीबद्ध हो जाता है। क्या इस बारे में मुख्य न्यायाधीश और रोस्टर के मास्टर कोई विशेष आदेश या निर्देश हैं?’’
बंबई उच्च न्यायालय द्वारा इंटीरियर डिजायनर अन्वय नाइक और उनकी मां कुमुद नाइक को आत्महत्या के लिये उकसाने के 2018 के मामले में अर्णब गोस्वामी को अंतरिम जमानत देने से इंकार करने के नौ नवंबर के आदेश के खिलाफ मंगलवार की सुबह याचिका उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की गयी थी। यह याचिका आज सवेरे साढ़े दस बजे के लिये न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हो गया।
दवे ने रजिस्ट्रार से भी सवाल किया है कि क्या वह प्रधान न्यायाधीश की जानकारी के बगैर ही गोस्वामी को प्राथमिकता दे रहे हैं।
दवे ने अपने पत्र में लिखा, ‘‘यह सर्वविदित है कि इस तरह से अप्रत्याशित तरीके से मामले का तत्काल सूचीबद्ध किया जाना प्रधान न्यायाधीश से स्पष्ट आदेशों के बगैर नहीं हो सकता और नहीं होता। या यह प्रशासनिक मुखिया के रूप में आप या रजिस्ट्रार लिस्टिंग गोस्वामी को विशेष प्राथमिकता दे रहे हैं?’’
दवे ने गोस्वामी के मामले की तुलना पी. चिदंबरम , जिन्होंने आईएनएक्स मीडिया मामले में जमानत के लिये न्यायालय से संपर्क किया था , करते हुये लिखा है कि ‘‘सम्मानित वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदम्बरम जैसे व्यक्ति का इसी तरह का मामला इतनी तेज से सूचीबद्ध नहीं हो सका और उन्हें उच्चतम न्यायालय द्वारा जमानत के लायक घोषित करने से पहले कई महीने जेल में बिताने पड़े।"
’दवे ने आगे लिखा कि इसमें कोविड महामारी के पिछले आठ महीने के दौरान शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री द्वारा अपनी पसंद से मामलों को सूचीबद्ध करने का गंभीर मामला शामिल है।
दवे पत्र में लिखते हैं कि हजारों नागरिक जेलों में हैं, उच्चतम न्यायालय मे दायर उनके मामले हफ्तों और महीनों तक सूचीबद्ध नहीं हो रहे है।’’
दवे अपनी चिंता को मजबूती पदान करते हुये लिखते है कि एससीबीए के अध्यक्ष की हैसियत से उन्हें कई एवोकेट्स ऑन रिकार्ड से अनेक अनुरोध मिलते हैं जिनमें दावा किया गया होता हे कि उनके द्वारा दायर किये गये मामले हफ्तों और महीनों तक सूचीबद्ध नहीं हो रहे हैं हालाकि वे बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और जमानत सहित ऐसे गंभीर विषयों के मामले में हैं जिनमे उच्चतम न्यायालय के तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत है।
दवे ने अपने पत्र में लिखा है कि कोविड-19 ने अधिवक्ताओं के सामने गंभीर चुनौती पैदा कर दी है और इससे उनकी आजीविका को ही खतरा उत्पन्न हो गया है।
इस वरिष्ठ अधिवक्ता ने बेहतर वीडियो कांफ्रेंसिंग का प्लेटफाम अपनाने के बारे में बार के सुझाव सुप्रीम कोर्ट ई-कमेटी के पास लंबित होने का जिक्र कया और फाइबर आप्टिक्स प्रदान करने के लिये ई-कमेटी से संपर्क करने के बारे में रिलायंस जिओ को प्रधान न्यायाधीश का अचानक ही हतप्रभ करने वाला निर्देश कैसे आया।
दवे ने यह भी सवाल किया कि आखिर रोजाना कुछ पीठ ही कैसे बैठ रहीं है और कैसे "इनमें से कुछ कुछ अज्ञात कारणों या प्रौद्योगिकी संबंधी चुनौतियों के कारण न्यायालय के कार्य घंटो के दौरान भी नहीं बैठते।"
पत्र में लिखा गया है, ‘‘इसका सीधा असर न्याय प्रदान करने और नागरिको , कम से कम आम आदमी, के अधिकारों पर पड़ता है। ताकि गोस्वामी जैसों को विशेष महत्व मिलता है जबकि साधारण भारतीय , कैद सहित तमाम परेशानियों का सामना करते रहते हैं जो कई गुना गैरकानूनी और अनधिकृत है।’’
दवे ने अनुरोध किया है कि जब तक न्यायालय सर्वविदित सिद्धांतों पर तत्काल सूचीबद्ध करने की पुख्ता व्यवस्था सुनिश्चित नहीं कर लेता और न्यायालय 10 नवंबर से पहले विभिन्न एओआर के शीघ्र सुनवाई के अनुरोध वाले मामले सूचीबद्ध नहीं कर लेता है , गोस्वामी का मामला नहीं सुना जाना चाहिए।’’
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