दिल्ली उच्च न्यायालय ने राजधानी में संक्रमितों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर सोमवार को टिप्पणी की कि किसी भी तरह से यह नहीं कहा जा सकता कि कोविड-19 के संक्रमण पर काबू पा लिया गया है।
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सु्ब्रमणियम प्रसाद ने राजधानी में कोविड-19 की जांच की रफ्तार और इसकी स्थिति को लेकर अधिवक्ता राकेश मल्होत्रा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान आदेश पारित किया।
न्यायालय ने इस तथ्य को दर्ज किया कि 21 अगस्त को 1250 मामले पता चले थे लेकिन 30 अगस्त को यह आंकड़ा बढ़कर 2024 हो गया और कंटेनमेन्ट क्षेत्रो की संख्या भी 589 से बढ़कर 820 हो गयी है।
न्यायालय ने कहा कि हालांकि दिल्ली मे आरटी-पीसीआर के जरिये निजी और सार्वजनिक प्रयोगशालाओ की जांच करने की संयुक्त क्षमता 14,000 थी, लेकिन हकीकत में औसतन जांच पांच से छह हजार ही हो रही थी।
दिल्ली सरकार ने इसके जवाब में कहा कि वह आरएटी और आरटी-पीसीआर के जरिये जांच की अपनी रणनीति फिर से तैयार करेगी।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि उम्मीद है कि दिल्ली सरकार उन लोगों के लिये एक परामर्श जारी करेगी जो आरटी-पीसीआर के माध्यम से अपनी कोविड-19 की जांच कराना चाहते हैं।
न्यायालय ने सुनवाई के दौरान राजधानी लौट रहे प्रवासी कामगारों के मुद्दे पर भी विचार किया। इनमे से अधिकांश में हो सकता है कि इस संक्रमण के लक्षण नहीं हो। इसलिए इनकी जांच और उन्हें पृथकवास में रखने की आवश्यकता हो सकती है।
अनलॉक्-4 के तहत अंतर्राज्यीय आवागमन की अनुमति दिये जाने के मद्देनजर न्यायालय ने दिल्ली सरकार से कहा कि उसे तत्काल कदम उठाकर सभी अंतर्राज्यीय बस अड्डों पर एक सप्ताह के भीतर जांच की सुविधायें सुनिश्चित करनी होंगी।
न्यायालय ने दिल्ली सरकार द्वारा शुरू की गयी ‘सेरो निगरानी’ पर भी विचार किया और कहा कि दिल्ली में सेरो की मौजूदगी पहले दौर में 22.8 प्रतिशत से बढ़कर दूसरे दौर में 29.1 प्रतिशत हो गयी है जो 20 प्रतिशत से ज्यादा है।
न्यायालय ने दिल्ली सरकार से अगली स्थिति रिपोर्ट में दूसरे सेरो निगरानी दौर का विश्लेषण भी पेश करने के लिये कहा है।
दिल्ली सरकार की ओर से अतिरिक्त सरकारी वकील सत्यकाम पेश हुये।
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COVID-19 dragon has not been tamed: Delhi HC on spike in cases in the national capital