दिल्ली हाईकोर्ट की बालीवुड बनाम टाइम्स नाउ, रिपब्लिक मामले में टिप्पणी: ब्लैक एंड व्हाइट दूरदर्शन बहुत बेहतर था

न्यायालय ने टिप्पणी की, ‘‘रिपोर्टिंग करने के तरीकों में बदलाव के लिये क्या करा जाना चाहिए? इसमे थोडी नरमी लाने की आवश्यकता है।’’
Arnab Goswami, Pradeep Bhandari, Navika Kumar, Rahul Shivshankar, Bollywood producers
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ के संवाददाताओं द्वारा फिल्म जगतके खिलाफ की जा रही अपमानजनक टिप्पणियों पर अंकुश के लिये बालीवुड निर्माताओं के वाद पर आज नोटिस जारी किया।

इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति राजीव शकधर की एकल पीठ कर रही थी।

बालीवुड फिल्म निर्माताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव नायर ने इन चैनलों के अनेक प्रसारित कार्यक्रमों का हवाला दिया जिनमें फिल्म जगत और और ड्रग माफिया के बीच परस्पर संबंधों को दिखाया गया है।

नायर ने अपनी दलील में कहा,

‘‘अगर यह यहीं पर नहीं थमा है। अब वे इससे भी आगे बढ़ गये हैं कि मानो हमारे पाकिस्तान और आईएसआई के साथ संबंध हैं। आप देखेंगे कि सुशांत सिंह मामले की खबरें शुरू करके संवाददाता किस तरह आगे बढ़ते हुये इसे ड्रग पेडलर्स तथा पाकिस्तान से जोड़ने लगे।’’

‘‘अब यह आरोप है कि शाहरूख खान के पाकिस्तान और आईएसआई से संबंध हैं।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव नायर

नायर दलील देते हैं कि टाइम्स नाउ ने एक कदम और आगे निकल कर अभिनेताओ के व्हाट्सऐप चैट तक पहुंच बनायी और उनकी निजता के अधिकार का हनन किया।

नायर ने इस संबंध में मीडिया के एक हिस्से का जिक्र करते हुये कहा कि रिपब्लिक टीवी ने दीपिका पादुकोण का पीछा किया।

इस वाद में किये गये अनुरोध को उद्धृत करते हुये नायर ने कहा,

‘‘मैं ‘निष्पक्ष टिप्पणी’ समझ सकता हूं, लेकिन क्या कोई यह कह सकता है कि मुझे गैर-जिम्मेदाराना और मानहानिकारक टिप्पणियां करने से मत रोक? मीडिया ट्रायल करने से मत रोको?’

वादकारियों की ओर से आगे बहस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अखिल सिब्बल थे। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि मीडिया के एक वर्ग ने पत्रकारिता के सिद्धांतों को त्याग दिया है। इसके बाद उन्होंने न्यूज ब्राडकास्टिंग स्टैण्डर्ड अथारिटी (एनबीएसए) के आदेशों का हवाला दिया जिसने मीडिया ट्रायल के खिलाफ चेतावनी दी थी।

लंबित मामलों की रिपोर्टिंग के संदर्भ में सिब्बल ने कहा,

‘‘सबूत बताते हुये मामलों का पोस्टमार्टम किया जा रहा है-यह साक्ष्य हैं या नहीं, स्वीकार्य योग्य हैं या नहीं- यह न्यायालय के विचार के विषय हैं।’’

नायर ने इसके बाद बालीवुड निर्माताओ के वाद में दिये गये छह आधारों को पढ़ा

1. मानहानि

2. निजता के अधिकार का हनन

3. व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे में डालना

4. हानिकारक दुष्प्रचार

5. कार्यक्रम संहिता का उल्लंघन

6.निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा के विपरीत समानांतर जांच करना

न्यायमूर्ति शकधर ने इस पर सवाल किया

‘‘मेरा सिर्फ एक सवाल है- कुछ व्यक्तिगत लोग (जिनका दावा है इससे शिकायत का है) वे खुद वादी क्यों नहीं बने?

नायर ने जब यह जवाब दिया कि ये लोग वाद दायर करने वाली एसोसिएशन का हिस्सा हैं, तो न्यायाधीश ने कहा,

‘‘मैं समझता हूं, लेकिन एक वर्ग की मानहानि है और व्यक्तिगत मानहानि है।’’

नायर ने कहा कि ऐसे व्यक्तियों को याचिकाकता्रओं के रूप में जोड़ा जा सकता है, उन्होंने स्पष्ट किया कि इस समय वह सिर्फ रिपोर्टिंग पर रोक चाहते हैं।

‘‘हम हर्जाने का दावा करने का अपना अधिकार सुरक्षित रखते हैं।’’

इस पर सिब्बल ने कहा,

‘‘मंशा चौथे स्तंभ पर हमला करने की नहीं है। हम जिसे पीत पत्रकारिता कहते हैं- वह हाशिए मुख्यधारा बन गयी है। अत: न्यायालय से ही संकेत जाने चाहिए।’’

न्यायमूर्ति शकधर ने इस पर टिप्पणी की,

‘‘न्यायालय संकोच करते हैं (मीडिया की रिपोर्टिंग करने पर) क्योंकि यह संवैधानिक अधिकार है। लेकिन आप सही हैं। हम निष्पक्ष रिपोर्टिग की अपेक्षा करते हैं।’’

‘‘हम दूरदर्शन को बहुत घिसा पिटा मानते थे, लेकिन तब हमारे यहां कुछ बहुत ही अच्छे ब्रॉडकास्टर्स थे। मैं तो यही सोच रहा हूं कि ब्लैक एंड व्हाइट और दूरदर्शन कहीं ज्यादा बेहतर थे।’’

टाइम्स नाउ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी ने इस वाद की विचारणीयता पर सवाल उठाये और कहा कि जो पीड़ित लोग न्यायालय के सामने नहीं है।

न्यायालय ने सेठी से अनुरोध किया कि वह अपने ब्रीफ से ऊपर उठकर इन बड़े मुद्दों के जवाब दें,

‘‘जिस तरह की रिपोर्टिग हो रही है उसमें बदलाव के लिये क्या करना चाहिए? इसे दुरूस्त करने की आवश्यकता है। एनबीएसए के आदेश हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि न्यून चैनल उनका पालन नहीं कर रहे हैं। न्यायालय के अधिकारी के रूप में अगर आप स्व: नियमन का पालन नहीं करते हैं तो अगला कदम क्या होता है?’’

‘‘हमे इस बारे में क्या करना होगा? यह एक सामान्य टिप्पणी सभी के बारे में है। आप सभी को इस बारे में सोचना होगा। यह सभी के लिये तकलीफदेह और हतोत्साहित करने वाला है।’’
दिल्ली उच्च न्यायालय

न्यायालय ने यह भी कहा,

‘‘राजकुमारी डायना के मामले में, उनकी मृत्यु हो गयी क्योंकि वह मीडिया से दूर भाग रहीं थीं। आप इस तरह से पीछा नहीं कर सकते। न्यायालय सबसे अंतिम है जो इसे नियंत्रित करना चाहेगा।’’

रिपब्लिक टीवी की ओर से अधिवक्ता मालविका त्रिवेदी ने दलील दी कि सातंकुलम हिरासत में मृत्यु सहित अनेक मामलों में मीडिया ने बहुत ही उपयोगी भूमिका निभाई। उनहोंने कहा कि हाल ही में, इस तथ्य को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि दो हस्तियों की रहस्यमय मौत के मामलों में सिर्फ मीडिया की भूमिका की वजह से ही बहुत सारी जानकारी जनता के सामने आ सकी।

न्यायमूर्ति शकधर ने इस पर कहा,

‘‘मैं यह कहने वाला पहला व्यक्ति होंऊंगा, उन्होंने (मीडिया) कुछ बहुत ही शानदार काम किये हैं। कृपया इस बिन्दु से आगे बढ़ें कि मैं यह नहीं कह रहा कि आप रिपोर्ट नहीं कर सकते। आप रिपोर्ट कर सकते हैं। रिपोर्टिग के तरीके पर सवाल है। चर्चा में कोई शिष्टाचार नहीं है। आप एक ब्रॉडकास्टर हैं।’’

अधिवक्ता जतिन्दर कुमार सेठी ने दलील दी कि मीडिया सिर्फ तथ्यों को रिपोर्ट कर रहा है। हालांकि इस पर न्यायालय ने टिप्पणी की,

‘‘क्या आपने यह देखा कि किस तरह की भाषा का प्रयोग हो रहा है। अब टीवी कार्यक्रमों में शामिल होने वाले टीवी के सीधे प्रसारण वाले कार्यक्रमों में गालियों वाले शब्द भी बोल रहे हैं क्योंकि वे बहस के दौरान बहुत उत्तेजित हो जाते हैं। अगर आप उन्हें प्रोत्साहित करेंगे तो यही सब होगा।’’

वरिष्ठ अधिवक्ता अरविन्द निगम, साजन पूवैया और कपिल सिब्बल ने यूट्यूब, ट्विटर की कुछ सहयोगी कंपनियों और फेसबुक को पक्षकार बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। इस पर न्यायालय ने कहा कि गूगल पहले से ही इस मामले में पक्षकार है, इसलिए यूट्यूब को पक्षकार बनाने की जरूरत नहीं है।

न्यायालय ने इस मामले में नोटिस जारी किये और निर्देश दिया कि लिखित वक्तव्य और जवाब दो सप्ताह के भीतर दाखिल किये जायें। न्यायालय ने प्रतिवादियों को यह सुनिश्चित करने का भी निेर्देश दिया कि इस दौरान उनके चैनल या सोशल मीडिया पर अपलोड सामग्री में कोई मानहानिकारक बातें नहीं हों।

रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ की ‘बालीवुड ड्रग्स माफिया’ के बारे में खबरों को लेकर 38 फिल्म निर्माताओं ने दिल्ली उच्च न्यायालय में वाद दायर कर फिल्म जगत के बारे में गैर जिम्मेदाराना, मानहानिकारक और अपमानजनक टिप्पणियों पर अंकुश लगाने का अनुरोध किया है।

इस वाद में बालीवुड की हस्तियों का मीडिया ट्रायल करने और बालीवुड से जुड़े व्यक्तियों की निजता के अधिकार में हस्तक्षेप करने के लिये रिपब्लिक टीवी के अर्णब गोस्वामी और प्रदीप भंडारी तथा टाइम्स नाउ के राहुल शिवशंकर और नाविका कुमार का प्रमुखता से जिक्र किया गया है।

इन निर्माताओं ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत के परिप्रेक्ष्य में फिल्म उद्योग में सक्रिय कथित ड्रग कार्टल का जिक्र करते हुये इन संवाददाताओं द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे संबोधनों पर आपत्ति की है। इनमें, ‘गंदगी’, ‘फिल्थ’ ‘स्कम’, ‘ड्रगीस’ जैसे शब्दों और ‘बालीवुड से गंदगी साफ करने की जरूरत है’, ‘ ऑल परफ्यूम ऑफ अरबिया कैननॉट टेक अवे द स्टेंच एंड द स्टिंक ऑर दिस फिल्थ एंड स्कम ऑफ द अंडरबेलीऑफ बालीवुड’, ‘दिस इस द डर्टियेस्ट इंडस्ट्री इन द कंट्री’’ और ‘‘कोकीन एंड एलएसडी ड्रेंच्ड बालीवुड’’ जैसे वाक्य और उपमायें शामिल हैं।

फिल्म निमाताओं ने अपने वाद में कहा है इन संवाददाताओं को गैर जिम्मेदाराना खबरों और मानहानिककारक सामग्री के कारण पहले दंडित किया जा चुका है और फटकार लगाई जा चुकी है और अदालतें इनके खिलाफ आदेश दे चुकी हैं। यही नहीं, इन्हें गलत खबरे प्रसारित करने के लिये भी दोषी पाया जा चुका है।

वाद में यह भी आरोप लगाया गया है कि ये न्यूज चैनल केबल टेलीविजन नेटवर्कस (नियमन) कानून, 1995 की धारा 5 और केबल टेलीविजन नेटवर्कस नियम 1994 के नियम 6 का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन कर रहे हैं।

फिल्म निर्माताओं ने यह स्पष्ट किया है कि वे सुशांत सिंह राजपूत मामले की जांच से संबंधित खबरों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने का अनुरोध नहीं कर रहे है। उन्होने गोस्वामी, शिवशंकर एंड कंपनी पर देश में लागू कानूनों का उल्लंघन करने वाली सामग्री की खबरें और उनके प्रकाशन से स्थाई रूप से रोक लगाने का अनुरोध किया है।

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Delhi High Court in Bollywood v. Times Now, Republic: Black and white Doordarshan was much better, Princess Diana died racing away from media

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