दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को दिल्ली दंगों के एक मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों की प्रयोज्यता को चुनौती देने वाली पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन की याचिका पर केंद्र सरकार, दिल्ली पुलिस आयुक्त और दिल्ली के एनसीटी को नोटिस जारी किया।
न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने हुसैन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मोहित माथुर की संक्षिप्त सुनवाई के बाद नोटिस जारी किया। केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस आयुक्त की ओर से नोटिस स्वीकार करने वाले अधिवक्ता अमित महाजन ने याचिका पर प्रारंभिक आपत्ति जताते हुए कहा कि मामले में आरोपों का संज्ञान लिया गया है।
महाजन ने कहा कि वह याचिका का जवाब दाखिल करेंगे।
याचिका में जांच एजेंसी द्वारा दर्ज की गई सामग्री के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट में हुसैन के खिलाफ दायर आरोपपत्र में यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा), 16 (आतंकवादी कृत्य के लिए सजा), 17 (आतंकवादी कृत्य के लिए धन जुटाने की सजा) और 18 (साजिश के लिए सजा) को लागू करने को चुनौती दी गई है।
याचिका में उक्त धाराओं के आधार पर अभियोजन के लिए अनुदान की वैधता पर सवाल उठाया गया था।
हुसैन ने प्रस्तुत किया कि वह अब 14 महीने से अधिक समय से जेल में है और यूएपीए के कड़े प्रावधानों को देखते हुए जमानत हासिल करना "बेहद मुश्किल" हो गया है।
हुसैन ने अपनी याचिका में यूएपीए के तहत अभियोजन के लिए मंजूरी देने की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला।
इस संबंध में उन्होंने धारा 45(2) का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि समीक्षा समिति को जांच के तहत एकत्रित सामग्री की स्वतंत्र समीक्षा करनी है और इस तरह की स्वतंत्र समीक्षा के आधार पर संबंधित सरकार को एक सिफारिश करना है कि क्या अभियोजन की मंजूरी है दिया जाना चाहिए या नहीं।
हुसैन ने तर्क दिया कि संबंधित सरकार को जांच के तहत एकत्र की गई सामग्री की स्वतंत्र समीक्षा करने के लिए आवश्यक समीक्षा समिति द्वारा इस सिफारिश को ध्यान में रखना आवश्यक है।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि समीक्षा समिति को 30 जुलाई, 2020 को 24,000 पृष्ठों में चल रही जांच रिपोर्ट दी गई और समिति ने 31 जुलाई को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
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