ट्विटर सेलिब्रेटी समीर ठक्कर ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बार में अपने निजी ट्विटर हैंण्डल से अपमानजनक सामग्री टि्वट करने के मामले में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी निरस्त कराने के लिये बंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।
न्यायमूर्ति एसएस शिन्दे और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की पीठ ने बृहस्पतिवार को इस याचिका पर समीर ठक्कर की ओर से अधिवक्ता अभिनव चंद्रचूड, यशपाल देशमुख और एएस रेणु और सरकार की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक जेपी याज्ञनिक की दलीलें सुनीं।
सुनवाई के दौरान पीठ ने अतिरिक्त लोक अभियोजक के इस मौखिक बयान को स्वीकार कर लिया कि मुंबई में संबंधित पुलिस थाना समीर के खिलाफ उस समय तक कोई दंडात्मक कदम नहीं उठायेगा जब तक वह जांच में सहयोग करेंगे।
न्यायालय ने समीर को निर्देश दिया कि वह प्राथमिकी की जांच कर रहे संबंधित थाने में सीआरपीसी की धारा 161 के अनुसार अपना बयान दर्ज कराने के लिये पांच अक्टूबर को दिन में 11 से 12 बजे के दौरान उपस्थित हों।
समीर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 292 (गाली देना) और धारा 500 (मानहानि) और सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 67 (इलेक्ट्रानिक रूप में गाली देना) के तहत जमानती आरोपों में मामला दर्ज है।
समीर ने सीआरपीसी की धारा 482 के साथ संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया था:
मुंबई पुलिस में दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट निरस्त की जाये।
प्रथम सूचना रिपोर्ट के प्रभाव पर रोक लगाई जाये।
सारे मामलों को नागपुर में एक साथ किया जाये जहां वह रहते हैं।
अधिवक्ता चंद्रचूड ने न्यायालय से कहा कि सार्वजनिक पद की आलोचना करना नागरिकों का मौलिक अधिकार है। इस संबंध में उन्होंने उच्चतम न्यायालय के अनेक फैसलों का उद्धृत किया जिनमें टिप्पणी की गयी थी जो सत्ता में पद पर होते हैं उनकी खाल मोटी होनी चाहिए।
चंद्रचूड ने यह दलील भी दी कि सड़क पर चलते आम आदमी की नहीं बल्कि सिर्फ सत्ता में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्ति की ही आलोचना की जा सकती है।
हालांकि, न्यायालय चंद्रचूड की इस दलील से सहमत नहीं था। पीठ ने टिप्पणी की कि एक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को किसी दूसरे के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। पीठ ने कहा,
‘‘हर व्यक्ति की आलोचना पर एक जैसी ही प्रतिक्रिया होती है। सार्वजनिक पद आसीन कुछ व्यक्ति दूसरों की तुलना में ज्यादा संवेदनशील होते हैं।’’
समीर के खिलाफ शिव सेना के विधि प्रकोष्ठ के एक कर्मचारी की शिकायत पर मुंबई में उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है। यह प्राथमिकी दर्ज करने के कुछ दिन बाद पुलिस ने उन्हें थाने में पेश होने के लिये धारा 41 (वारंट के बगैर गिरफ्तारी) का नोटिस भेजा था
नागपुर निवासी समीर ने मुंबई पुलिस से अनुरोध किया कि कोविड-19 लाकडाउन के मद्देनजर उन्हें पेश होने से छूट दी जाये।
मुंबई पुलिसस ने अब उनका यह अनुरोध ठुकरा दिया तो उन्होंने उच्च न्यायालय की प्रिंसिपल बेंच के समक्ष यह याचिका दायर की।
इस मामले में अब 8 अक्टूबर को विचार होगा।
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