RBI ने एससी से कहा: ऋण स्थगन की अवधि 6 महीने से आगे बढ़ाना व्यावहारिक नही है, इससे ऋण व्यवस्था खराब होगी और अपराध बढ़ेगा

आरबीआई ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि वह ऋण खातों के वर्गीकरण के बारे में लगायी गयी रोक तत्काल प्रभाव से हटाये
Reserve bank of India
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भारतीय रिजर्व बैंक ने उच्चतम न्यायालय में दायर अतिरिक्त हलफनामे में कहा है कि कोविड-19 महामारी की वजह से लागू ऋण स्थगन की अवधि छह महीने से आगे बढ़ाना व्यावहारिक नहीं होगा और से कर्जदाताओं के लिये जोखिम पैदा करेगा।

रिजर्व बैंक ने न्यायालय से कहा है कि अगर ऋण स्थगन की अवधि छह महीने से आगे बढ़ाई गयी तो इससे ऋण व्यवस्था खराब होगी।

रिजर्व बैंक के अनुसार ऋण स्थगन की दीर्घ अवधि कर्जदारों के व्यवहार को प्रभावित करेगा और जब कर्ज की किस्त के भुगतान का सिलसिला शुरू होगा तो इससे अपराध का जोखिम रहेगा और इस बात को रेखांकित किया है कि इसका असर छोटे कर्जदारों तक पड़ सकता है।

हलफनामे में कहा गया है,

‘‘यह कुल मिलाकर कर्ज व्यवस्था को प्रभावित कर सकती है जिसका अर्थव्यवस्था में कर्ज सृजन की प्रक्रिया पर दोहरा प्रभाव पड़ेगा। अंतत: छोटे कर्जदारों पर ही इसकी मार पड़ेगी क्योंकि ऋण लेने के औपचारिक स्रोतों तक उनकी पहुंच मूलत: कर्ज लेने के व्यवहार पर निर्भर रहता है।’’

रिजर्व बैंक ने कहा है कि ऋण स्थगन की व्यवस्था जारी रखने से नकदी प्रवाह की अधिक महत्वपूर्ण समस्या हल नहीं होगी और वास्तव में कर्जदारों के सामने उत्पन्न समस्या और बिगाड़ेगी। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुये ही कर्जदारों के सामने पेश आ रही समस्याओं के लिये अधिक टिकाऊ और व्यावहारिक समाधान खोजना होगा।

उच्चतम न्यायालय के पांच अक्टूबर के निर्देश पर रिजर्ब बैंक ने यह अतिरिक्त हलफनामा दाखिल किया है। न्यायालय बैंकिंग नियामक से मोरेटोरियम के दौरान ब्याज माफ करने के मुद्दे पर कर्जदारों की शिकायतों के समाधान के लिये किये गये उपायों का विवरण चाहता था। न्यायालय कामत समिति की रिपोर्ट भी मांगी थी जिसने कोविड-19 से प्रभावित कर्जदारों के लिये क्षेत्रवार राहत के मामले पर विचार किया था।

चक्रवृद्धि ब्याज या ब्याज पर ब्याज की माफी के बारे में रिजर्व ने कहा है कि इसकी अनुमति देने से अर्थव्यवस्था पर बहुत बोझ पड़ेगा और बैक अपनी माली हालत को गंभीर रूप से प्रभावित किये बगैर वहन नहीं कर सकेंगे। इसका जमाकर्ताओं और वित्तीय स्थिरता पर व्यापक असर पड़ेगा।

रिजर्व बैंक ने कहा कि केन्द्र सरकार ने दो करोड़ रूपए तक के छोटे कर्जदारों के चक्रवृद्धि माफी करने पर आने वाला बोझ वहन करने का आश्वासन दिया है और इससे याचिकाकर्ताओं की मुख्य चिंता का समाधान हो जाता है।

रिजर्व बैंक ने यह भी कहा है कि उसने अपने छह अगस्त के सर्कुलर में ऋण के पुनर्गठन के लिये एक रूपरेखा प्रदान की है जो कर्ज देने वाली संस्थाओं को व्यक्तिगत और विशेष स्थित वाले कर्जदारों के लिये राहत देने का प्रावधान करती है।

अतिरिक्त हलफनामे में रिजर्व बैंक ने कहा है कि इस सर्कुलर मे यह प्रावधान किया गया है कि ऋणदाता कर्ज लेने वालों की प्रतिष्ठा और भुगतान करने में समयबद्धता जैसे बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुये कर्ज अदायग का पुनर्गठन करने जैसे उपाय कर सकते हैं।

हलफनामे में कहा गया है, ‘‘प्रत्येक कर्जदार के समक्ष उत्पन्न समस्या के आधार पर उनकी जरूरत को ध्यान में रखते हुये बैंक उसी के अनुसार राहत दे सकते हैं।’’

हलफनामें कहा गया है कि छह अगस्त के सर्कुलर में कोविड-19 महामारी से पहले नियमित रूप से ऋण का भुगतान करने वाले कर्जदारों को लाभ देने का नीतिगत फैसला बहुत सोच समझ कर लिया गया है।

रिजर्व बैंक का कहना है कि इसलिए सिर्फ ‘स्टैण्डर्ड’ वर्गीकृत खातों को और जिन पर एक मार्च, 2020 की स्थिति के अनुसार भुगतान की तारीख से 30 दिन से ज्यादा देर नहीं हुयी थी, उन्हें ही इस समाधान योजना के लाभ का पात्र बनाया गया है। बैंक ने तर्क दिया है कि वर्गीकरण में इस विभेदन को तर्कसंगत और उचित है।

इस विभेदन के पीछे के तर्क को न्यायोचित ठहराते हुये रिजर्व बैंक ने अपने स्पष्टीकरण में कहा है,

‘‘एक खाता जिस पर महामारी का असर हुआ है और उस पर पहले से ही वित्तीय दबाव था उसकी जोखिम की स्थिति उस खाते से भिन्न होगी जिस पर पहले से कोई बोझ नहीं था और ऐसी स्थिति में दोनों कर्जदारों को एक समान मानना आर्थिक संवेदनशीलता को नजरअंदाज करना होगा। ’’ वित्तीय दृष्टिकोण से उचित नहीं होगा।’’

रिजर्व बैंक के अनुसार छह अगस्त के सर्कुलर में समाधान योजना ऋणदाताओं को प्रत्येक खाते के आकलन के आधार पर राहत प्रदान करने का विशेषाधिकार प्रदान करता है। यह कई याचिकाकर्ताओं द्वारा क्षेत्रवार राहत की याचिकाकर्ताओं की मांग को काफी हद तक पूरा करता है। हलफनामे में कहा गया है कि किसी क्षेत्र विशेष के खाते और कर्जदार की जरूरत भी इस विशेषाधिकार का पहलू होगी।

हलफनामे में कहा गया है, ‘‘समाधान योजना अंतत: कर्ज देने वाली संस्थाओं का व्यावसायिक निर्णय होता है जिसे आरबीआई के नियमों के माध्यम से अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता।’’

रिअल इस्टेट और ऊर्जा के क्षेत्र के संगठनों द्वारा सेक्टर के अनुसार राहत देने की मांग के जवाब में रिजर्व बैंक का कहना है कि कोविड-19 महामारी आने से पहले से ही दबाव में थे। इनकी परेशानियों पर केन्द्र पहले ही अनेक उपाय कर चुका है। हलफनामे के अनुसार ये ढांचागत समस्यायें और शिकायते हैं जिनका बैकिंग नियमन के माध्यम से समाधान नहीं किया जा सकता।

उच्चतम न्यायालय ने तीन सितंबर को अगले आदेश तक बैंकों को किसी भी ऋण खाते को गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए) घोषित करने से रोक दिया था। इससे पहले, रियल इस्टेट डिवलपर्स एसोसिएशन के वकील ने इस बारे में न्यायालय से पुरजोर अपील की थी।

कर्जदारों को राहत देने के बारे में उठायये गये सभी कदमों का विवरण देने के बाद रिजर्व बैंक ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि खातों के वर्गीकरण करने पर लगायी गयी रोक तत्काल प्रभाव से खत्म की जाये।

हलफनामे में कहा गया है, ‘‘अगर यह रोक तत्काल नहीं हटाई गयी तो रिजर्व बैंक के नियामक अधिकार को कमतर करने के अलावा इसका बैंकिंग व्यवस्था पर गंभीर असर पड़ेगा।’’

भारतीय रिजर्व बैंक ने अंत में कहा है कि अभी तक किये गये सारे उपायों से याचिकाकर्ताओं की शिकायतों का समाधान होता है और इसलिए यह याचिका मेरिट के अभाव में खारिज की जानी चाहिए।

इस मामले में न्यायालय अगले सप्ताह आगे विचार करेगा।

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Extension of moratorium beyond six months unsustainable, might vitiate credit discipline and increase delinquency: RBI to Supreme Court

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