दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में जब यह देखा कि उसके समक्ष पेश याचिका उसके ही आदेश के खिलाफ अपील है तो उसने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता, जिसके बारे में पहले पता चला था कि वह शराब की लत का शिकार है, अब लगता है कि वह मुकदमे की लत का शिकार हो गया है।
न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ और न्यायमूर्ति आशा मेनन ने टिप्पणी की,
‘‘यद्यपि,याचिकाकर्ता ने हमारे ही आदेश के खिलाफ एक अपील के रूप में हमारे सामने यह याचिका पेश कर हमे सम्मानित किया है, लेकिन खेद है कि कानून की नजर में यह दुबारा मुकदमा है और इसके लिये कहागया है कि यह न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है….याचिकाकर्ता, जिसके बारे में पहले पता चला था कि वह शराब की लत का शिकार है, अब लगता है कि वह मुकदमे की लत का शिकारहो गया है।’’
याचिकाकर्ता ने पहले एक याचिका दायर कर उसके शराब की लत का शिकार होने संबंधी मेडिकल बोर्ड और अपील मेडिकल बोर्ड के नतीजों के बारे में तीसरी मेडिकल राय प्राप्त करने का भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) को निर्देश देने का अनुरोध किया था। इस याचिका में दावा किया गया कि याचिकाकर्ता को तीसरी राय के लिये भेजे जाने पर उसकी मांग पूरी हो गयी थी।
पेश याचिका में, न्यायालय ने कहा, राहत को दूसरे शब्दों में लिखा गया, और पहली याचिका में मांगी गयी राहत के बारे में फैसले में खामियां पायीं गयीं और अब इसके विपरीत आदेश का अनुरोध किया गया।
याचिकाकर्ता ने इसमें कहा कि तीसरी मेडिकल राय और पहली याचिका में दायर की गयी स्थिति रिपोर्ट उसके पक्ष में है। प्रतिवादी प्राधिकारियों का कहना है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आगे कार्यवाही करने से पहले वे न्यायालय के आदेशों पर प्राप्त की गयी मेडिकल राय और स्थिति रिपोर्ट पर विचार करेंगे।
प्रतिवादी के रुख और इस तथ्य के मद्देनजर कि तीसरी मेडिकल राय और स्थिति रिपोर्ट पर पहले दिये गये फैसले में विचार किया गया था, न्यायालय ने नयी याचिका दायर करने के औचित्य पर सवाल किये।
पीठ ने टिप्पणी की कि पहले याचिकाकर्ता ने प्रशासनिक फैसले का इंतजार किये बगैर ही मेडिकल बोर्ड के निष्कर्ष के खिलाफ न्यायालय में मामला दायर किया था और फिर यह याचिका दायर की जिसके लंबित होने के दौरान अंतरिम रोक थी।
पीठ ने कहा कि इस तरह से याचिकाकर्ता ने दोनों ही अवसरों पर प्रतिवादियों द्वारा लिये गये जाने वाले, यदि कोई हो, फैसले में विलंब किया और सेवा में अपनी निरंतरता बनाये रखी।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
‘‘ याचिकाकर्ता को इस तरह से उसके खिलाफ किसी कार्रवाई, यदि हो, को निष्फल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती और यही वक्त है कि ऐसे प्रयासों पर अंकुश लगाया जाये। अगर हम प्रतवादियों द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई के, यदि कोई हो, अंतरिम चरण में इस याचिका पर विचार करेंगे तो एक बार फिर इस पर फैसला टल जायेगा। उच्चतम न्यायालय ने अनुशासनात्मक कार्यवाही के अंतरिम चरण में हस्तक्षेप को हमेशा ही अनुचित बताया है और इस न्यायालय को याचिकाकर्ता के लाभ के लिये संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।’’
इस याचिका पर विचार करने से इंकार करते हुये न्यायालय ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता को प्रभावित करने वाला कोई निर्णय लिया जाता है तो उसके पास राहत के लिये विभागीय विकल्प उपलब्ध होंगे। न्यायालय ने यह भी कहा कि इसके बाद उपलब्ध उपायों को अपनाने के बाद भी वह संतुष्ट नहीं रहता है तो उसके पास याचिकाकर्ता को अनुच्छेद 226 का इस्तेमाल करने का अधिकार होगा।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आरके शुक्ला और अधिवक्ता भावना मेस्सी पेश हुये जबकि केन्द्र सरकार के स्थाई अधिवक्ता रिपुदमन भारद्वाज अधिवक्ता कुशाग्र कुमार औरअंशू पाठक के साथ प्रतिवादियों की ओर से पेश हुये।
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें