गौहाटी उच्च न्यायालय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय परिषद में नियुक्तियों के लिये तत्काल कदम उठाने हेतु दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के लिये तैयार हो गया है।
याचिकाकर्ता ने परिषद के सदस्यों की नियुक्ति के बारे मे अधिसूचना की निन्दा करते हुये कहा है कि यह ट्रांसजेंडर समुदाय के लिये हितकारी नहीं है।
न्यायालय ने आल इंडिया ट्रांसजेंडर एसोसिएशन की याचिका पर नोटिस जारी किया है। याचिका में ट्रांसजेंडर व्यक्ति ( अधिकारों का संरक्षण) कानून, 2019 की धारा 16 के इस तरह की परिषद के गठन के लिये तत्काल प्रभावी कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
इस कानून की धारा 16 में प्रावधान है कि परिषद में ट्रांसजेंडर समुदाय के पांच प्रतिनिधि होंगे, इनमें देश के उत्तर, पूरब, दक्षिण, पश्चिम और पूर्वोत्तर क्षेत्रों से एक एक प्रतिनिधि होगा। इस परिषद में ट्रांसजेंडर समुदाय के हितों और कल्याण के काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों से पांच विशेषज्ञ होंगे जिन्हें सरकार नामित करेगी।
याचिका में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय के नालसा फैसले के अनुरूप ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) कानून संसद ने बनाया। इस कानून को तत्काल ही उच्चतम न्यायालय में चुनौती भी दी गयी थी।
याचिका में कहा गया है कि इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दिये जाने के बावजूद सरकार ने इसके तहत कदम उठाये। याचिका के अनुसार,
‘‘यह जानते हुये भी कि 2019 के कानून को चुनौती दी जा चुकी है, प्रतिवादी ऐसे समय में जब देश कोरोनावायरस की महामारी से जूझ रहा है, 2019 का कानून लागू करने के लिये तत्परता से कदम उठा रहा है।’’
याचिका में कहा गया है कि इस कानून की वैधता लंबित होने के दौरान ही सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय ने ‘नियुक्ति की मानक प्रक्रिया’ का पालन किये बगैर ही ट्रांसजेंडर समुदाय के लिये राष्ट्रीय परिषद गठित करने की घोषणा कर दी।
याचिका के अनुसार परिषद में ऐसी नियुक्तियों को शामिल करना पूरी तरह दुर्भावनापूर्ण है ओर यह किसी भी तरह से ट्रांसजेंडर समुदाय के लिये लाभकारी नहीं है।’’
इन नियुक्तियों में ट्रांसजेंडर समुदाय के पांच प्रतिनिधि और गैर सरकारी संस्थाओं के चार विशेषज्ञ शामिल हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र के प्रतिनिधि की ‘‘उस क्षेत्र में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी साबित नहीं हो पायी है और यह मनमाने आधार पर दी गयी सदस्यता है।’’
याचिका के अनुसार कानून में गैर सरकारी संस्थाओं से पांच विशेषज्ञों की नियुक्ति का प्रावधान है जबकि चुनौती दी गयी अधिसूचना में सिर्फ चार ऐसे सदस्य ही मनानीत किये गये हैं। याचिका के अनुसार ये चार सदस्य ट्रांसजेंडर समुदाय के लिये काम करने वाली गैर सरकारी सस्थाओं का प्रतिनिधि करने वाले विशेषज्ञ नहीं है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘उपरोक्त् अधिसूचना के अंतर्गत नामित अधिकांश विशेषज्ञ ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के लिये काम करने वाली पंजीकृत गैर सरकारी संस्थाओं के नहीं हैं, परिषद में इन्हें शामिल करना दुर्भावनापूर्ण है और इससे किसी भी तरह से ट्रांसजेंडर समुदाय का हित नहीं होता है।’’
परिषद में नियुक्तियों की अधिसूचना को चुनौती देते हुये कहा गया है कि इससे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता है और ट्रांसजेंडर समुदाय को प्रतिनिधित्व देने तथा इस क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों को इसमें शामिल करने में विफल रहने की वजह से पूरी तरह गैरकानूनी और मनमानी पूर्ण है। याचिकाकर्ता एसोसिएशन ने इन नियुक्तियों से संबंधित अधिसूचना निरस्त करने का अनुरोध किया है।
याचिका में परिषद में नियुक्ति की पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने तथा नामित सदस्यों का पुन:आकलन करने का निर्देश सरकार को देने का अनुरोध किया गया है। यही नहीं, याचिका में कहा गया है कि सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय को परिषद में सदस्यों के नामांकन की प्रक्रिया निर्धारित करने तथा इसके लिये पात्रता आदि की शर्तो को अधिसूचित करने का निर्देश दिया जाये।
यह याचिका विख्यात ट्रांसजेंडर अधिवक्ता स्वाती बिधान बरूआ के माध्यम से दायर की गयी है। याचिका को वरिष्ठ अधिवक्ता जयना कोठारी ने अंतिम रूप दिया है।
प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व एडवोकेट पीएस तालुकर ने किया था
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