ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट/बाल कल्याण समिति के आदेश के खिलाफ, नाबालिग को किशोर गृह भेजने के लिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण पोषणीय नही

... यह सुरक्षित रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि न्यायिक आदेश या बाल कल्याण समिति द्वारा किशोर न्याय अधिनियम के तहत पारित आदेश के खिलाफ हैबियस कॉर्पस रिट पोषणीय नहीं है।
Allahabad High Court
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि नाबालिग पीड़िता को किशोर गृह / नारी निकेतन / चाइल्ड केयर होम में मजिस्ट्रेट द्वारा भेजने के लिए पारित न्यायिक आदेशों के खिलाफ और बाल कल्याण समिति के तहत किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के आदेशो के खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण (गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिए गए लोगों की रिहाई के लिए दायर याचिका) पोषणीय नहीं है। ।

न्यायमूर्ति संजय यादव, महेश चंद्र और सिद्धार्थ वर्मा की एक पूर्ण पीठ ने इस मुद्दे पर परस्पर विरोधी निर्णयों के मद्देनजर एक संदर्भ दिया। सोमवार को, इस खंडपीठ ने निष्कर्ष निकाला:

इस न्यायालय के साथ-साथ झारखंड उच्च न्यायालय, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय और पटना उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशों का विश्लेषण करते हुए, यह सुरक्षित रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि न्यायिक आदेश या बाल कल्याण समिति द्वारा किशोर न्याय अधिनियम के तहत पारित आदेश के खिलाफ हैबियस कॉर्पस रिट पोषणीय नहीं है।

कोर्ट के समक्ष मामला एक लड़की का था जिसने घर से भागकर यह आरोप लगाया था कि उसके साथ उसकी माँ और भाई द्वारा दुर्व्यवहार किया जा रहा है। उसने घटनाओं के एक संस्करण के अनुसार, एक दोस्त के साथ जाने और रहने का प्रयास किया था। दूसरी तरफ, यह आरोप लगाया गया था कि उसे उसके दोस्त के भाई और उसके परिवार ने भाग जाने के लिए उकसाया था, जिसके लिए अपहरण का मामला भी दर्ज किया गया था।

एक मजिस्ट्रेट ने निर्देश दिया कि बालिका को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया जाए, जिसने निर्देश दिया कि उसे बाल गृह भेजा जाए। यह इस आधार पर किया गया था कि वह एक नाबालिग पीड़िता थी, क्योंकि उसके स्कूल के प्रमाण पत्र में उसकी उम्र 17 वर्ष दिखाई गई थी, हालांकि उसकी रेडियोलॉजिकल रिपोर्ट ने संकेत दिया था कि वह 20 वर्ष की हो सकती है।

लड़की को किशोर गृह भेजने के आदेश को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई थी, जिसमें लड़की ने व्यक्त किया था कि वह अपने दोस्त के साथ रहना चाहती थी और अपनी इच्छा के विरुद्ध उसे किशोर गृह में नहीं रखा जा सकता। इस मामले से एक सवाल पैदा हुआ कि क्या इस तरह के मामलों में इस तरह की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की जा सकती है।

हाईकोर्ट की फुल बेंच ने अब फैसला सुनाया है कि इन मामलों में ऐसी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं दायर नहीं की जा सकती हैं।

... यह स्पष्ट है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट पोषणीय नहीं है, यदि हिरासत न्यायिक मजिस्ट्रेट या सक्षम न्यायालय या बाल कल्याण समिति द्वारा पारित न्यायिक आदेशों के अनुसार है। यह संकेत देने के लिए कि मजिस्ट्रेट द्वारा न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के एक अवैध या अनियमित अभ्यास को रिमांड के आदेश या बाल कल्याण समिति द्वारा किशोर न्याय अधिनियम के तहत अवैध हिरासत के रूप में नहीं माना जा सकता है। इस तरह के आदेश को कानून के वैधानिक प्रावधानों के तहत सक्षम अपीलीय या पुनरीक्षण मंच के समक्ष एक उचित कार्यवाही दायर करके वैधता, और आदेश की शुद्धता को चुनौती देने के तरीके से ठीक किया जा सकता है, लेकिन बंदी प्रत्यक्षीकरण की मांग करने वाली याचिका की समीक्षा नहीं की जा सकती है।

पूर्ण पीठ द्वारा दिए गए निष्कर्षों को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है:

  • यदि कोई व्यक्ति जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत किसी न्यायिक मजिस्ट्रेट या सक्षम न्यायालय या बाल कल्याण समिति के न्यायालय द्वारा पारित न्यायिक आदेशों के अनुसार हिरासत में है, तो इस तरह के आदेश को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में न ही चुनौती दी जा सकती है या और न ही खारिज किया जा सकता है।

  • मजिस्ट्रेट द्वारा या बाल कल्याण समिति द्वारा एक महिला संरक्षण गृह / नारी निकेतन / जुवेनाइल होम / चाइल्ड केयर होम को भेजने में अधिकार क्षेत्र के एक अवैध या अनियमित आधार को अवैध हिरासत नहीं माना जा सकता है।

  • किशोर न्याय अधिनियम के तहत, देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता में बच्चे का कल्याण और सुरक्षा बोर्ड / बाल कल्याण समिति की कानूनी जिम्मेदारी है। मजिस्ट्रेट / कमेटी को उसकी इच्छाओं को पूरा करना होगा।

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Writ of habeas corpus not maintainable against Judicial Magistrate/ Child Welfare Committee order sending minor to Juvenile home: Allahabad HC

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