इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर हाथरस बलात्कार पीड़ित के परिवार की रिहाई का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है जिनका दावा है कि उप्र प्रशासन ने उन्हें अपने ही घर में गैर कानूनी तरीके से नजरबंद कर रखा है।
19 वर्षीय दलित पीड़ित , जिसने पुलिस से कहा था कि उसके साथ सवर्ण जाति के लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया है, की मृत्यु के बाद परिवार का कहना है कि उन्हें ‘‘मृत पीड़ित की अस्थियां नहीं दी गयी और उन्हें जबरन ही अपने घरों में बंदी बनाकर रखा गया है और अभी भी ऐसे ही हैं।’’
अधिवक्ता महमूद प्राचार, एसकेए रिजवी और जौन अब्बास के माध्यम से दायर इस याचिका में आगे कहा गया है कि उच्च न्यायालय में परिवार के सदस्यों को पेश किये जाने तक उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का उप्र सरकार को निर्देश दिया जाये।
उच्च न्यायालय ने हाथरस कांड का स्वत: संज्ञान लिया था और 12 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई के समय पीड़ित परिवार के सदस्यों को उसके समक्ष पेश करने का आदेश दिया था।
अखिल भारतीय वाल्मीकी महापंचायत के राष्ट्रीय महासचिव सुरेन्द्र कुमार, जिन्होंने टेलीफोन के माध्यम से परिवार से संपर्क किया था, ने परिवार के सदस्यों की ओर से यह याचिका दायर की है।
याचिकाकर्ताओं ने संगठन को बताया कि उन्हें अपने ही घर में कैद करके रखा जा रहा है और उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार उस जगह बसने की अनुमति नहीं दी जा रही जहां वे अपनी जिंदगी की सुरक्षा और पीड़ित के साथ हुयी बर्बरता की जांच की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये बसना चाहते हैं।
याचिका में कहा गया है कि हाथरस जिले में संवैधानिक व्यवस्था का निलंबन हो गया था जहां पीड़ित के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटना हुयी। यह भी कहा गया है कि उसकी मृत्यु के बाद उसके और परिवार के साथ गैर कानूनी व्यवहार हुआ है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि पीड़ित की मृत्यु की तारीख से ही राज्य के प्राधिकारियों ने परिवार का घर और आसपास की कृषि भूमि घेर रखी है और शुरू में उसने उन सभी के फोन भी छीन लिये थे।
याचिका में यह भी कहा गया है, ‘‘इस योजना के अलावा प्रशासन ने हाथरस जिले के आसपास अवरोधक लगा दिये हैं और इस इलाके में जाने के इच्छुक व्यक्तियों का प्रवेश बगैर किसी कानूनी वजह के निषेध किया जा रहा है और गैर कानूनी तरीके से बल प्रयोग करके उन्हें रोका जा रहा है।’’
परिवार उच्च न्यायालय से अनुरोध किया है कि उन्हें गैर कानूनी कैद से रिहा करने का निर्देश दिया जाये। उन्होंने यह दलील भी दी है कि सरकार की कार्रवाई से संविधान में प्रदत्त उनके मौलिक अधिकारों और अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम) कानून, 1989 का उल्लंघन हो रहा है।
इस याचिका के माध्यम से पीड़ित परिवार के सदस्यों ने इस बर्बरतापूर्ण अपराध के संबंध में कानून में प्रदत्त राहत प्राप्त करने के लिये दिल्ली यात्रा करने की इच्छा भी जाहिर की है।
याचिका के अनुार अखिल भारतीय वाल्मीकी महापंचायत वालमीकी समुदाय के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करने के मद्देनजर इस परिवार को रहने की सुविधा प्रदान करेगी।
परिवार ने आशंका व्यक्त की है कि राज्य सरकार या इसमें दिलचस्पी रखने वाले पक्षकार उन्हें दंडात्मक तरीके, डराने धमकाने या किसी अन्य तरह के प्रलोभन दे सकते हैं, इसलिए यह याचिका दायर की गयी है।
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