
झारखंड उच्च न्यायालय ने गुरुवार को स्थानीय उम्मीदवारों के लिए 75 प्रतिशत निजी नौकरियों को आरक्षित करने वाले राज्य कानून के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी [झारखंड लघु उद्योग संघ एवं अन्य बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य]।
झारखंड राज्य निजी क्षेत्र में स्थानीय उम्मीदवारों को रोजगार अधिनियम, 2021 के तहत राज्य में 10 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले निजी नियोक्ताओं को कम से कम 75 प्रतिशत नौकरियाँ - 40,000 रुपये से कम मासिक वेतन वाली नौकरियाँ - स्थानीय उम्मीदवारों के लिए आरक्षित करनी होंगी।
मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति दीपक रोशन की पीठ ने कहा कि 2021 अधिनियम प्रथम दृष्टया अन्यायपूर्ण और भेदभावपूर्ण है तथा यह भारत के संविधान के भाग III का उल्लंघन करता है, जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि 2021 कानून का क्रियान्वयन जनहित में नहीं है।
न्यायालय ने झारखंड लघु उद्योग संघ और अन्य द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिसमें 2021 में अधिनियमित कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राज्य ने नियोजित स्थानीय व्यक्तियों का विवरण मांगना शुरू कर दिया है और जानकारी का खुलासा न करने पर दंडात्मक कार्रवाई शुरू करने की धमकी दे रहा है।
अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 16(2) राज्य को धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान और निवास के आधार पर सार्वजनिक रोजगार के मामलों में भेदभाव करने से रोकता है।
इसने यह भी टिप्पणी की कि कानून के क्रियान्वयन से सभी भारतीय नागरिकों के लिए एक नागरिकता की अवधारणा और प्रस्तावना में उल्लिखित 'भाईचारे' के विचार को झटका लगेगा।
देश के अन्य राज्यों में रहने वाले नागरिकों को झारखंड के स्थानीय लोगों से कमतर नहीं समझा जा सकता और उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा, "अन्य राज्यों को भी अपने स्थानीय निवासियों की सुरक्षा के लिए इसी तरह के कानून बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा और देश की एकता और अखंडता को गंभीर रूप से खतरा होगा।"
पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस फैसले पर भी गौर किया, जिसमें 2021 में हरियाणा में बनाए गए इसी तरह के कानून को रद्द कर दिया गया था।
अपने समक्ष याचिकाकर्ताओं की आशंकाओं पर विचार करते हुए, अदालत ने कहा कि अगले आदेश तक अधिनियम के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक रहेगी।
इसने तर्क दिया, "यदि अधिनियम के क्रियान्वयन पर रोक नहीं लगाई जाती है, तो निस्संदेह राज्य के अधिकारी अधिनियम की धारा 9 से 12 में उल्लिखित भारी वित्तीय दंड लगाकर निजी नियोक्ताओं को दंडित करना शुरू कर देंगे।"
इसके बाद मामले को 31 जनवरी, 2025 को विचार के लिए सूचीबद्ध किया गया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अमित कुमार दास, शिवम उत्कर्ष सहाय और संकल्प गोस्वामी उपस्थित हुए।
अतिरिक्त महाधिवक्ता आशुतोष आनंद ने झारखंड राज्य का प्रतिनिधित्व किया।
भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल कुमार ने भारत संघ का प्रतिनिधित्व किया।
[आदेश पढ़ें]
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
Jharkhand High Court stays law mandating 75% reservation for locals in private jobs