एनएलएसआईयू छात्रा बलात्कार कांड: ‘किसी की बेटी पर हमला हमारी बेटी पर हमला है’, कर्नाटक HC ने मौत की सजा की सिफारिश की

न्यायालय ने एनएलएसआईयू, बेंगलुरू में 2012 में एक छात्रा से सामूहिक बलात्कार के मामले में सात दोषियों की उम्र कैद की सजा बरकरार रखते हुये यह सिफारिश की
Gang Rape, Capital Punishment, Karnataka High Court
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सामूहिक बलात्कार को हत्या से भी ज्यादा घृणित बताते हुये कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सामूहिक बलात्कार के अपराध के लिये उम्र कैद और जुर्माने के मौजूदा प्रावधान के अलावा मौत की सजा की भी सिफारिश की है।

न्यायालय ने नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया, बेंगलुरू में 2012 में एक छात्रा से सामूहिक बलात्कार के सात दोषियों की उम्र कैद की सजा बरकरार रखते हुये यह सिफारिश की है।

न्यायमूर्ति बी वीरप्पा और न्यायमूर्ति के नटराजन ने इस मामले में यह फैसला सुनाया। इसमें कहा गया है,पीठ ने अपने फैसले में बलात्कार के अपराधों पर अंकुश पाने के इरादे से लैंगिक संवेदनशीलता पर भी जोर दिया ओर कहा,

‘‘हम समाज में ‘सामूहिक बलात्कार’ की बढ़ती समस्या पर अंकुश पाने के लिये भारतीय दंड संहिता की धारा 10 में ‘महिला’ की परिभाषा को ध्यान में रखते हुये विधायिका/केन्द्र सरकार से भारतीय दंड संहिता की धारा 376डी- सामूहिक बलात्कार के प्रावधानों में संशोधन कर इसमें उम्र कैद और जुर्माने अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 376 एबी और धारा 376 डीबी के प्रावधानों के समान मौत की सजा का भी प्रावधान करने की सिफारिश करते हैं।’’
कर्नाटक उच्च न्यायालय

पीठ ने अपने फैसले में बलात्कार के अपराधों पर अंकुश पाने के इरादे से लैंगिक संवेदनशीलता पर भी जोर दिया ओर कहा,

‘‘हमे आशा और विश्वास है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिये लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ाना बहुत महत्वपूर्ण है। निर्भया मामले के बाद कानून में संशोधन करके कठोर प्रावधान किये जाने के बावजूद महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी नहीं है। गृह विभाग, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, महिला संगठनों और प्रिंट तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिये आम जनता के बीच जागरूकता पैदा करने के कार्यक्रम शुरू करने का यही उचित समय है।’’

सामाजिक सोच में बदलाव और लैंगिक न्याय के प्रति जागरूकता पैदा करने की हिमायत करने के साथ ही न्यायालय ने निम्न व्यावहारिक उपाय भी सुझाये हैं:

‘‘व्यावहारिक पक्ष को ध्यान में रखते हुये कुछ सुझावों पर विचार करना उपयोगी होगा। आटो, टैक्सी, बस आदि जैसे सार्वजनिक परिवहन के वाहों पर बैनर और बोर्ड लगाना सुनिश्चित किया जाये। स्ट्रीट लाइट और बस स्टैंड पर पर्याप्त रौशनी के साथ ही असुविधाजनक समय के दौरान अतिरिक्त पुलिस गश्त सुनिश्चित की जानी चाहिए। पार्क, सड़कों जैसे अंधेरे और सूनसान इलाकों में पुलिस तथा सुरक्षाकर्मी तैनात किये जाने चाहिए और महत्वपूर्ण जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाये जाने चाहिए।’’

इस घटना की पृष्ठभूमि

बेंगलुरू विश्वविद्यालय की मुख्य इमारत और एनएलएसआईयू के बीच स्थित सड़क पर 13 अक्टूबर, 2012 को पीड़ित और उसका मित्र अपनी कार में बैठे थे। लोहे की रॉड, आरी, छुरे, खंजर और रस्सी जैसे घातक हथियारों से लैस दोषी व्यक्तियों ने उनकी कार घेर ली।

इन दोषियों ने जबरन कार का बायां दरवाजा खोला और पीड़ित को खींच कर जंगली इलाके में ले गया जहां उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया।

गिरफ्तारी के बाद दोषियों को निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 427, 366, 323, 324, 397, 376 (2)(जी) और धारा 149 के तहत उम्र कैद की सजा सुनाई गयी। इस आदेश के खिलाफ अपील में उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।

न्यायालय ने ऐसा करते हुये कहा,

‘‘ आरोपी व्यक्तियों ने जंगल में खूंखार जानवरों जैसा व्यवहार किया। यह ऐसा था, मानो जंगली जानवर अपनी हवस मिटाने के लिये एक असहाय खरगोश का शिकार कर रहे हों। पेश मामले में, इन आरोपियो ने अपनी वासना की हवस बुझाने के लिये एक लड़की को अपना शिकार बनाया और उन्होंने उसके साथ एक एक करके सामूहिक बलात्कार किया और कुछ आरोपियों ने दो से तीन बार उसे अपनी हवश का शिकार बनाया जो क्रूर जानवरों से भी कहीं ज्यादा बर्बरतापूर्ण था और जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।’’
कर्नाटक उच्च न्यायालय

न्यायालय ने दोषियों के साथ किसी प्रकार की नरमी बरतने से इकार करते हुये कहा कि उन्होंने पीड़िता को जो शारीरिक और मानसिक आघात पहुंचाया है वह अपूर्णीय है और यह उसे पूरी जिंदगी सहना पड़ेगा।

इन टिप्पणियों के अलावा न्यायालय ने इस बारे में भी कई सुझाव दिये कि बलात्कार के मामलों और इसका दंश सहने वाली पीड़िता के अदालतों और जनता को किस तरह पेश आना चाहिए।

अदालतों को अपराध के अनुरूप सजा देनी चाहिए।

फैसले में कहा गया,

‘‘न्याय का तकाजा है कि अदालतों को अपराध के अनुरूप ही सजा देनी चाहिए ताकि अदालतें जनता का आक्रोष व्यक्त करें। न्यायालय को उचित दंड देते समय सिर्फ अपराधी के अधिकारों को ही बल्कि अपराध के पीड़ित अधिकारों और समाज को भी ध्यान में नहीं रखना चाहिए।’’

न्यायालय ने अपने फैसले में इस तथ्य का जिक्र किया कि पीड़ित एनएलएसआइयू में प्रवेश के लिये काठमांडो से भारत आयी थी। न्यायालय ने कहा,

‘‘पीड़ित लड़की के साथ आरोपियों के घृणित अपराध ने पूरे राष्ट्र की और विशेषकर कर्नाटक राज्य की कानून व्यवस्था को जिम्मेदार बना दिया। चूंकि ‘राष्ट्र की प्रतिष्ठा दांव पर है’, आरोपी व्यक्तियों के साथ किसी प्रकार की नरमी नहीं बरती जा सकती । आरोपियों के साथ किसी प्रकार की सहानुभूति न्यायालय की गरिमा, कानून के महत्व , और हमारे प्राचीन काल से हमारी परंपराओं और सांस्कृति अधिकार को बरकरार रखने के रास्ते में बाधक बनती है।’’

बलात्कार पीड़ित के नहीं बल्कि समूचे समाज के प्रति अपराध है

पीठ ने कहा कि "बलात्कार सिर्फ पीड़ित लड़की के साथ नहीं बल्कि समूचे समाज के प्रति अपराध है।’’

पीठ ने अपने फैसले में स्वामी विवेकानंद को उद्धृत करना उचित समझा जिन्होंने कहा था, ‘‘राष्ट्र की प्रगति का आकलन करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका उसकी महिलाओं के प्रति होने वाला व्यवहार है।’’

न्यायालय ने इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बावजूद पीड़ित लड़की द्वारा अपने ‘धर्म’ की रक्षा के लिये आरोपियों के खिलाफ अपनी शिकायत पर डटे रहते हुये इसे आगे बढ़ाने के उसके साहस की सराहना की।

बच्चे को पुरूष और महिलाओं दोनों का ही सम्मान करने की शिक्षा दी जानी चाहिए

न्यायालय ने लैंगिक समानता को स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने और लैंगिक संवेदनशीलता के बारे में जागरूकता कार्यक्रम शुरू करने के भी सुझाव दिये और कहा,

‘‘बच्चे को समाज में पुरूषों की तरह ही महिलाओं का सम्मान भी करने की शिक्षा दी जानी चाहिए। लैंगिक समानता को स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। स्कूली शिक्षकों और बच्चों के माता पिता को भी न सिर्फ नियमित रूप से बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण और कौशल वृद्धि के बारे में बल्कि अपने बच्चों के वास्तविक व्यवहार के तरीके पर भी निगाह रखने के बारे में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि उन्हें लैंगिक संवदेनशील बनाया जाये। शैक्षणिक संस्थाओं, सरकारी संस्थाओं, कर्मचारियों और सभी संबंद्ध व्यक्तियों को लैंगिक संवेदनशीलता के प्रति जागरूकता पैदा करने बल्कि महिलाओं का सम्मान करने के दिशा में कदम उठाने चाहिए।’’

आम जनता को पीड़िता का सहयोग करना चाहिए

पीठ ने कहा कि पीड़ित के परिजनों ओर समाज को बलात्कार का दंश झेलने वालों के साथ सहयोग करना चाहिए ताकि ऐसे व्यक्तियों के संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीने के अधिकार की रक्षा की जा सके।

न्यायालय ने अपने फैसले में इस बात का भी उल्लेख किया कि वैदिक काल में महिलाओं के सतीत्व का बहुत महत्व था। इसलिए उसके सतीत्व को भंग करने के किसी भी प्रयास को पाप मानना चाहिए। मनु के अनुसार ऐसे अपराध की सजा में अपराधी का समाज से बहिष्कार भी शामिल है।

पीठ ने कहा, ‘‘यह तथ्य विस्मित करने वाला है कि आधुनिक भारत में जहां बलात्कार पीड़िता को समाज द्वारा धिक्कारा जाता है वहीं वैदिक समाज में बलात्कार पीड़ित के साथ कहीं ज्यादा सहानुभूति और सहयोग था।’’

न्यायालय ने अंत में कहा,

‘‘हम, न्यायाधीश समाज के अभिभावक हैं। अगर समाज की लड़कियों और महिलाओं के प्रति हमारी चिंता को एक वाक्य में इस तरह कहा जा सकता है कि ‘‘किसी की भी बेटी पर हमला हमारी बेटी पर हमला है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय

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[NLSIU Student Rape Case]: “An attack on anybody’s daughter is an attack on our daughter", Karnataka High Court recommends capital punishment

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