(सिस्टर अभया हत्याकांड) विशेष सीबीआई अदालत के फैसले के बारे में जानना जरूरी है

न्यायाधीश सनिलकुमार ने अपने फैसले में कहा, ‘‘ परिस्थितियों की तारतम्यता की कड़ी इस तरह पूरी हुयी जो कुल मिलाकर आरोपियों के अपराध की ओर इशारा करती है।
Sister Abhaya
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अंतत: केरल के सबसे लंबे चले बहुचर्चित अभया प्रकरण के मुकदमे का सीबीआई अदालत के न्यायाधीश सनिलकुमार के फैसले के साथ पटाक्षेप हुआ।

न्यायाधीश ने अपने फैसले में न्यायमूर्ति वीआर कृष्णा अय्यर को उद्धृत करते हुये लिखा,

‘‘प्रकियात्मक या अन्य प्रकार की मामूली त्रुटियां और रहस्यात्मक संदेह ऐसे अपराध के लिये दंडित करने से अदालत को रोक नहीं सकते जिनमें तर्कसंगत और पर्याप्त तरीके से तथ्य सामने आये हों।

सिस्स्टर अभया की मौत का मामला निश्चित ही एक ऐसा प्रकरण था जिस पर मलयाली भाषी केरल की पूरी एक पीढ़ी ने अपने जीवनकाल के दौरान घर घर में खूब चर्चा सुनी और इसमें झूठ फरेब, अपराध को छिपाना, राजनीतिक प्रभाव, सिनेमा, अदालती मुकदमे और बीच बीच में मामला बंद करने की रिपोर्ट सहित सभी कुछ था।

इस मामले की लंबी अवधि के संदर्भ में न्यायाधीश सनिलकुमार कहते हैं, ‘‘न्यायाधीश जाते रहे लेकिन मुकदमा जस का तस ही था।’’

फैसला

अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘‘रिकार्ड पर उपलब्ध साक्ष्य इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिये इतने जयादा है कि परिस्थितियों की तारतम्यता की कड़ी इस तरह पूरी हुयी जो कुल मिलाकर आरोपियों के अपराध की ओर इशारा करती है और इस नतीजे पर पहुंचाती है जो आरोपियों के निर्दोष होने के दावे से भिन्न है।’’

परिस्थितियों की अकाट्य कड़ी को तोड़ना

सिस्टर अभया की मौत सिर में लगी चोट और डूबने की वजह से हुयी

अभया के शव के परीक्षण से पता चला कि उसकी गर्दन के दोनों ओर दो नाखून के निशान थे, उसकी गर्दन पर जख्म था और सिर के पिछले हिस्से में जख्म था। न्यायाधीश दो मेडिकल विशेषज्ञों की गवाही के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह चोट अभया की मौत से पहले की थीं।

अदालत ने अपने निष्कर्ष में कहा कि अभया ने फादर थॉकस कोट्टूर, सिस्टर सेफी और संभवत: दूसरे आरोपी को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया तो इसके बाद उसकी हत्या कर दी गयी। न्यायाधीश सनिलकुमार इस तथ्य का भी जिक्र किया कि यह देखने के बाद उसके सिर पर कुल्हाड़ी से हमला किया गया और उसकी मौत के कारणों पर पर्दा डालने के इरादे से उसे कुयें में फेंक दिया गया।

सिस्टर अभया द्वारा आत्महत्या करने की कोई संभावना नहीं थी, जबकि बचाव पक्ष का ऐसा दावा था

अदालत ने उन गवाहों से पूछताछ की जिन्होंने सिस्टर अभया की मृत्यु से पहले कई दिन और हफ्तों उनके साथ बात की थी और उन्होंने उन्हें हमेशा खुशमिजाज तथा अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिये उत्सुक पाया था।

इसमें एक दिलचस्प पहलू यह भी था कि अदालत ने कांवेंट में सिस्टर अभया के साथ रहने वाले दो अन्य लोगों की गवाही का भी उल्लेख किया जो आत्महत्या की कहानी के जबर्दस्त पक्षधर थे।

उन्होंने अपनी गवाही में कहा कि सिस्टर अभया की मृत्य वाले दिन उन लोगों का सवेरे एकसाथ पढ़ाई करने का कार्यक्रम था।

अदालत ने टिप्पणी की:

‘‘अपना जीवन खत्म करने पर तुला व्यक्ति, और तत्काल ही खत्म कर रहा हो, अपने साथी छात्रों के साथ मिलकर पढ़ाई करने की बात तो दूर वह अपने शैक्षणिक भविष्य को लेकर चिंतित नहीं होगा, अपनी परीक्षा और प्रदर्शन में सुधार के लिये नींद नहीं लेगा और न ही तन्मयता के साथ पढ़ाई करेगा। यह इकलौता तथ्य ही आत्महत्या की कहानी को दरकिनार करने के लिये पयाप्त है।’’

अदालत ने अपने निष्कर्ष में कहा कि अभया एक ‘ बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ, ईमानदार, सादगी पसंद, दृढ़ निश्चयी और अति शिष्टाचारी लड़की थी जो हर तरह से कुशल थी और परोपकारी जीवन व्यतीत कर रही थी। अदालत ने कहा कि ‘‘उसके लिये खुद ही अपने जीवन का अंत कर लेना पूरी तरह असंभव था, जैसी दलीलें बचाव पक्ष पेश करा रहा है।

अदक्कू राजू की गवाही - फादर थॉमस कोट्टूर को कांवेंट के अहाते में देखा था

अदक्कू राजू या अंडासू राजू, उसे ज्यादातर लोग प्यार से इसी नाम से बुलाते थे, एक मामूली चोरथा जो आकाशी बिजली रोकने के लिये कांवेंट की छत में लगी तांबे की छड़ की चोरी किया करता था। न्यायाधीश ने इस तथ्य का जिक्र किया कि राजू अपने इस बयान पर अडिग रहा कि उसने फादर थॉमस कोट्टूर और एक अन्य व्यक्ति को टार्च के साथ छात्रावास की छत पर खड़े देखा था।

अदालत ने कहा कि दूसरी ओर बचाव पक्ष ने राजू की पृष्ठभूमि के आधार पर उसकी गवाही पर संदेह खड़े किये लेकिन ‘‘दो वकीलों द्वारा दो दिन लगातार जिरह के बावजूद वह अपनी बात पर कायम रहा।’’

फैसले में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि किस तरह से राजू को अपने बयान से मुकरने और सिस्टर अभया की हत्या कबूल करने के लिये धमकियां मिलीं, यातना दी गयी और मोटी रकम देने का प्रलोभन दिया गया लेकिन वह टस से मस नही हुआ।

सिस्टर सेफी का आचरण

अदालत ने इस तथ्य को भी रिकार्ड किया कि सिस्टर अभया की मौत वाली रात सिस्टर सेफी अकेली थीं क्योंकि उनकी साथी रिट्रीट सेन्टर गयी हुयी थी। उस रात और सवेरे रसोई घर में अजीब सी परेशानी का माहौल था जिसके बारे में अदालत को कांवेंट में रहने वाले अन्य लोगों, जो बाद में मुकर गये थे, की गवाही से पता चला था।

सिस्टर सेफी की हाईमेनोप्लास्टी

एक महत्वपूर्ण जानकारी यह थी कि सिस्टर सेफी ने अपने यौनाचार में लिप्त रहने का तथ्य छिपाने के लिये स्त्री रोग विशेषज्ञ से अपनी हाईमेनोप्लास्टी करायी थी। अदालत ने पाया कि सेफी ने यह प्रक्रिया सीबीआई द्वारा उसे गिरफ्तार किये जाने की पूर्व संध्या पर करायी थी।

फादर थॉमस कोट्टूर का बयान

अदालत ने इस मामले के गवाहों में से एक गवाह कलारकोडे वेणुगोपालन को दिये गये फादर थॉकस कोट्टूर के बयान का संज्ञान लिया। इस मामले में कोट्टूर का नार्को परीक्षण कराये जाने की संभावना के बारे में जानकारी मिलने पर वेणुगोपालन ने कोट्टूर से संपर्क किया था।

उन्होंने भावावेश में वेणुगोपाल से यह कबूल किया था कि वह लोहे और पत्थर से बने नहीं है और मनुष्य हैं जो एक समय पर सिस्टर सेफी के साथ ‘‘पति पत्नी की तरह रहे थे ओर उन्हें क्यों सूली पर चढ़ाया जा रहा है?’’

अदालत ने आगे लिखा है कि बचाव पक्ष ने इस गवाह के बयान को भरोसेमंद नहीं मानने का आग्रह किया। अदालत ने कहा कि आरोपी का बर्ताव, उसकी गवाही के दौरान उसकी भाव भंगिमायें और अपनी गवाही के बुनियादी तथ्यो से टस से मस नहीं होने का तथ्य गवाह की विश्वसनीयता बता रहा था।

अभियोजन के मुकदमे को पटरी से उतारने के प्रभावशाली लोगों के प्रयास

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अचानक ही बगैर किसी वजह से पूरा कांवेंट ही सामूहिक रूप से मुकर गया, सबूत भी गायब हो गये और कांवेंट की रसोईया अचम्मा ने नार्को परीक्षण को चुनौती देते हुये उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर दी। अदालत ने यह टिप्पणी भी की कि उसने स्वीकार किया कि उच्चतम न्यायालय में देश के महानतम वकीलों में शामिल वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे उसकी ओर से पेश हुये। अदालत ने फैसले में कहा कि उसने यह भी स्वीकार किया कि उसके मुकदमे का खर्च कांवेंट ने उठाया था और उसे मुकदमे की बारीकियों की कोई जानकारी नहीं थी।

अदालत के अनुसार इससे यह साबित होता है कि इस मुकदमे को किसी अंतिम नतीजे पर पहुंचने से रोकने तथा अभियोजन के मामले की सुनवाई को पटरी से उतारने के लिये प्रभावशाली लोगों ने व्यवस्थित और संगठित तरीके से प्रयास किये गये।

न्यायाधीश सनिलकुमार ने इस मामले के जांच अधिकारियों-पुलिस उपाधीक्षक के सैमुअल और तत्कालीन पुलिस अधीक्षक केटी माइकल की तीखी आलोचना की ओर कहा कि इनकी इस मामले में दिलचस्पी की वजह से क्ष्य नष्ट हुये, मनगढ़त सबूत तैयार किये गये और अडक्कू राजू को सिखाने पढ़ाने तथा दूसरे गवाहों पर दबाव डाले गये ।

अदालत ने भविष्य में इस तरह से हस्तक्षेप के खिलाफ सख्त चेतावनी देते हुये इस फैसले की प्रति राज्य पुलिस के मुखिया को भी देने का आदेश दिया।

इन तथ्यों और दूसरे पहलुओं की विस्तृत विवेचना के बाद यह मामला साबित हुआ और अदालत मुकदमे का पटाक्षेप किया।

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[Sister Abhaya murder] All you need to know about the Special CBI court verdict

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