सशस्त्र बलों में प्रवेश के लिये समान अवसरों के लिये प्रयत्नाशील ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को उस समय बड़ा झटका लगा जब केन्द्र सरकार ने केरल उच्च न्यायालय को सूचित किया कि सशस्त्र बल और एनसीसी में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को प्रवेश देने का कानून में कोई प्रावधान नहीं है और इस बारे में निर्णय लेना सरकार का विशेषाधिकार है कि इसकी अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं।
उच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामे में केन्द्र और एनसीसी ने कहा है कि इस समय एनसीसी में सिर्फ लड़के और लड़कियों को ही कैडेट के रूप में पंजीकृत करने का प्रावधान है। इसके अलावा, चूंकि एनसीसी का उद्देश्य कैडेट को भविष्य में सशस्त्र बलों के लिये तैयार करना है और सशस्त्र बलों मे ट्रांसजेन्डर व्यक्तियों के प्रवेश के लिये प्रावधान नहीं है, एनसीसी में भी ऐसा नहीं है।
हलफनामे में कहा गया है, ‘‘ तीसरे लिंग के लिये एक नई डिवीजन का गठन करना केन्द्र सरकार का विशेषाधिकार है। तीसरे लिंग के लिये एक नई डिवीजन गठित करने से पहले केन्द्र सरकार और प्राधिकारियों को संरचनात्मक सुविधाओं और मापदंड की समीक्षा के लिये व्यापक कवायद करनी होगी।’’
हलफनामे में कहा गया है कि प्राधिकारियों द्वारा व्यापक विचार विमर्श के बगैर ही किसी ऐसे अभ्यर्थी को शामिल करने, जो न पुलिंग है और न ही स्त्रीलिंग, के बहुत ही दूरगामी नतीजे होंगे।
केन्द्र ने यह हलफनामा हिना हनीफा नाम की ट्रांस महिला की याचिका में दाखिल किया है। केरल उच्च न्यायालय में दायर इस याचिका में राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) कानून की धारा 6 को चुनौती दी गयी है जो इसमें सिर्फ पुरूषों और स्त्रियों के पंजीकरण की अनुमति देता है।
अधिवक्ता सीआर सुधीश, राघुल सुदीश, लक्ष्मी जे, ग्लैक्सन केजे और सानिश शशि राज के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि हनीफा एनसीसी में शामिल होना चाहती है और उसका कहना है कि वह पहले भी इसकी सदस्य थी।
याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ हो रहे जबर्दस्त भेदभाव और उनकी उपेक्षा किये जाने की समस्या पर ध्यान देने के लिये ट्रांसजेन्डरजैसे लैंगिक अल्पसंख्यकों को इसमे शामिल करना जरूरी है।
याचिकाकर्ता, इस समय यूनिवर्सिटी कालेज, तिरूवनंतपुरम की छात्रा है और उसने अपना सेक्स बदलवाने के लिये दो बार सर्जरी करायी और केरल सरकार की ट्रांसजेन्डर नीति, 2015 के तहत ट्रांसजेंडर का पहचान पत्र प्राप्त किया है।
याचिकाकर्ता ने एनसीसी कानून की धारा 6 को असंवैधानिक घोषित करने और अंतरिम राहत के रूप में उसे इस साल की पंजीकरण प्रक्रिया में अनुमति दिलाने के लिये न्यायालय से हस्तक्षेप का अनुरोध किया है।
एनसीसी ने अपने हलफनामे में हनीफा की याचिका और उसे किसी तरह की राहत देने का स्पष्ट रूप से विरोध किया है।
एनसीसी ने कहा है कि उसे एनसीसी कैडेट के रूप में सिर्फ उन्हीं छात्रों का पंजीकरण करने का अधिकार है जो एनसीसी कानून, 1948 की धारा 6 में प्रतिपादित पात्रता को पूरा करते हों अर्थात् सिर्फ पुलिंग और स्त्रीलिंग। इसने कहा कि इस कानून की धारा 6 (2) के अनुसार किसी भी विश्वविद्यालय या स्कूल की स्त्री लिंग छात्र छात्राओं की डिवीजन में कैडेट के रूप में अपना पंजीकरण करा सकती है।
केन्द्र ने कहा है कि इस मामले में याचिकाकर्ता ने खुद को इस लिंग का मानते हुये अर्थात स्त्री के रूप में इस आधार पर पंजीकरण कराने का अपना अधिकार गंवा दिया है क्योंकि विश्वविद्यालय में उसका पंजीकरण ट्रांसजेंडर (स्त्री) के रूप में हुआ है। केन्द्र ने दलील दी कि चूंकि विश्वविद्यालय में उसका पंजीकरण ट्रांसजेंडर के रूप में हुआ है, इसलिए वह लड़कियों की डिवीजन में कैडेट के लिये आवेदन नहीं कर सकती है।
हलफनामे में कहा गया है, ‘‘पूरी विनम्रता से यह कहना है कि याचिकाकर्ता ने खुद की स्त्री के रूप में पहचान करने का चयन करके उसी लिंग के अधिकार गंवा दिया है और उसने ट्रांसजेन्डर श्रेणी में प्रवेश लिया है। अत: वह अब तीसरे लिंग की श्रेणी अर्थात् ट्रा्ंसजेन्डर में आती है। याचिकाकर्ता अब पलट कर यह दावा नहीं कर सकती कि याचिकाकर्ता का लड़कियों की डिवीजन में कैडेट के रूप में पंजीकरण किया जाना चाहिए जो सिर्फ स्त्रीलिंग के लिये ही उपलब्ध है।’’
एनसीसी ने भी याचिकाकर्ता को तीसरे लिंग के रूप में शामिल करने के अनुरोध का यह कहते हुये विरोध किया है कि तीसरे लिंग का सृजन नीतिगत निर्णय है जिसे विभिन्न पदानुक्रमिक और अंतर-विभागीय परामर्श के माध्यम से पारित करने की आवश्यकता है।
इस तथ्य को भी इंगित किया गया है कि उसे एक कैडेट के रूप में पंजीकृत कराने की अनुमति याचिकाकर्ता को सर्विस सेलेक्शन बोर्ड में शामिल होने का अवसर प्रदान करेगा जिसमे इस समय भारतीय सशस्त्र बलों में ट्रांसजेंडर के प्रवेश के लिये कोई प्रावधान नहीं है।
इस मामले में पहले एक सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने कोर में ट्रांसजेन्डर व्यक्तियों के पंजीकरण के बारे में कोई नीति तैयार करने में विफल रहने के लिये केन्द्र सरकार की आलोचना की थी। न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि दुनिया ने तरक्की कर ली है और सरकार 19वीं सदी में ही नहीं रह सकती है।
इस याचिका की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने मौखिक ही टिप्पणी की थी, ‘‘निश्चित ही तीन लिंग- पुरूष, स्त्री और ट्रांसजेंडर- हैं। इस मामले में याचिकाकर्ता महिला ने खुद को एक महिला के रूप में पंजीकृत कराने का फैसला किया क्योंकि उसने इसके लिये सर्जरी भी कराई है। एनसीसी कानून के तहत एक महिला के रूप मे उसे प्रवेश देने से आपको कोई रोकता नहीं है।’’
इससे पहले, इस साल के शुरू में केन्द्र सरकार ने सेना और नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने का भी विरोध किया था। हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में उसे इसके लिये आदेश दिया और कहा कि शार्ट सर्विस कमीशन की महिला अधिकारी अपने पुरूष सहकर्मियों के समान ही स्थाई कमीशन की हकदार हैं।
यही नही, उच्चतम न्यायालय ने 2014 में एक फैसले में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को तीसरा लिंग घोषित करते हुये कहा था कि वे भी दूसरे नागरिकों को मिले सभी अधिकारों और सुविधाओं को प्राप्त करने के हकदार हैं।
न्यायालय ने इस ऐतिहासिक फैसले में व्यवस्था दी थी कि संविधान का अनुच्छेद 14, 15, 16, 19 और 21 ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपने दायरे से बाहर नहीं करता हैऔर उनके अधिकारों को भी शामिल करता है। अत: उनके लिंग के आधार पर उनके साथ किसी प्रकार का भेदभाव संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है।
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