[ब्रेकिंग] भाजपा, यूडीएफ नेताओं ने केरल पुलिस नियम की धारा 118ए को केरल उच्च न्यायालय में दी चुनौती

केरल भाजपा अध्यक्ष के. सुरेन्द्रन और यूडीएफ के नेता शिबू बेबी जॉन,एनके प्रेमचंद्रन और एए अजीज ने केरल सरकार द्वारा लाये गये केरल पुलिस (संशोधन) अध्यादेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका
K Surendran and Shibu Baby John
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केरल भाजपा अध्यक्ष के. सुरेन्द्रन और यूडीएफ के नेता शिबू बेबी जॉन,एनके प्रेमचंद्रन और एए अजीज ने कतिपय संदेशों और प्रकाशनों को अपराध के दायरे में शामिल करने वाले केरल सरकार के केरल पुलिस (संशोधन) अध्यादेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है।

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने शनिवार को राज्य में वाम मोर्चा सरकार द्वारा लाये गये इस विवादास्पद अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिये। इस अध्यादेश के माध्यम से कतिपय संदेशों और प्रकाशनों को अपराध के दायरे में लाने के लिये केरल पुलिस कानून में संशोधन करके एक नयी धारा 118ए शामिल की गयी है।

इस नये प्रावधान के अनुसार अगर कोई व्यक्ति संचार के किसी भी माध्यम से किसी व्यक्ति को डराने, मानहानि करने अपमानित करने वाली ऐसी कोई सामग्री, यह जानते हुये कि यह झूठी और दूसरे की प्रतिष्ठा का ठेस पहुंचाने वाली है, प्रकाशित, प्रचारित या प्रसारित करता है तो यह दंडनीय अपराध होगा। ऐसा करने वाले व्यक्ति को दोषी पाये जाने की स्थिति में तीन साल तक की कैद या 10,000 रूपए तक का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।

यह अधिनियम दायरे के बाहर है: के़. सुरेन्द्रन

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के सुरेन्द्रन ने अपनी याचिका में कहा है कि नया प्रावधान केरल पुलिस कानून के दायरे से ही बाहर है

अटार्नीज अलायंस के अधिवक्ताओं पी श्रीकमार, अश्विन कुमार एमजे, हेलन पीए, अरूण रॉय, शाहिर शौकत अली और मुहम्मद सुहैर के माध्यम से दायर याचिका में दलील दी गयी है कि इस कानून का उद्देश्य राज्य के पुलिस बल के कामकाज को नियंत्रित करना है और ऐसा करने का अधिकार संविधान की सूची 2 की प्रविष्ठि 2 (पुलिस से संबंधित मामलों मे कानून बनाने के राज्य सरकार के अधिकार) के माध्यम से प्रदान किया गया है।

याचिका में कहा गया है कि कानून में शामिल नया प्रावधान मूलरूप से ‘निजी अपराध’ के बारे में है और राज्य पुलिस बल के विनियन, अधिकारों और कर्तव्यों को शासित करने वाले कानून के तहत इसे दंडित नहीं किया जा सकता है।

याचिका में कहा गया है कि नयी धारा 118ए के प्रावधान से दंडित किये जाने वाले निजी अपराध पर्याप्त रूप से भारतीय दंड संहिता के दायरे में आते हैं।

याचिका के अनुसार यह अध्यादेश बोलने और अभिव्यक्ति के अधिकार को भी बाधित करता है और इसी तरह का प्रावधान करने संबंधी सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 66-ए को उच्चतम न्यायालय पहले ही निरस्त कर चुका है। याचिका में इस फैसले में निरस्त की गयी धारा और केरल पुलिस कानून की धारा 118 (डी) में समानता भी बताई गयी है। धारा 118(डी) मेल या टेलीफ़ोन से संदेश के माध्यम से परेशान करने की सजा के बारे में है।

इन प्रावधानों को अस्पष्टता और अनिश्चितता की वजह से निरस्त किये जाने का जिक्र करते हुये याचिका में दलील दी गयी है कि कानून के वर्तमान प्रावधान में भी इसी तरह की खामियां हैं।

रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं का तर्क, ‘‘स्वाभाविक रूप से अस्पष्ट’’

दूसरी याचिका रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, जो यूडीएफ का घटक है, के नेताओ शिबू बेबी जॉन, एनके प्रेमचंद्रन और एए अजीज ने दायर की है। प्रेमचंद्रन केरल में कोल्लम संसदीय क्षेत्र से सांसद भी हैं।

इन नेताओं की दलील है कि धारा 118ए अंतर्निहित अस्पष्टता से ग्रस्त है।

यह याचिका नायनन एंड मैथ्यू एडवोकेट्स के संतोष मैथ्यू, अरूण थॉमस, जेन्निस स्टीवन, विजय वी पॉल, कार्तिक मारिया, अनिल सेबस्टीन पुलिकल, दिव्या सारा जार्ज, जैसी एल्जा जोए, अबी बेन्नी अरीकल, एल राचेल नायनन और नंदा सनल के माध्यम से दायर की गयी है।

याचिका में कहा गया है, ‘‘धारा 118ए अंतर्निहित और अस्पष्टता से ग्रस्त है।’’

याचिका में इस प्रावधान को चुनौती देते हुये कहा गया है कि यह अस्पष्ट है और यह लोगों की व्याख्या के दायरे में आता है। याचिका में कहा गया है कि कोई भी बुद्धिमान और विवेकशील नागरिक निश्चित रूप से यह नहीं जान सकता कि क्या उसकी अभिव्यक्ति धारा 118ए के खिलाफ हो सकती है और इसका बोलने की आजादी पर प्रतिकूल असर हो सकता है।

याचिकाकर्ताओं ने यह भी दलील दी है कि नया प्रावधान भी उसी तरह से बोलने के अधिकार को नियंत्रित करने वाला है जिसे उच्चतम न्यायालय ने श्रेया सिंघल बनाम भारत सरकार प्रकरण में असंवैधानिक घोषित कर दिया था।

दोनों ही याचिका में कहा गया है कि चूंकि धारा 118ए के तहत अपराध संज्ञेय है और यह पुलिस वारंट के बगैर ही कथित अपराधी को गिरफ्तार करने की अनुमति प्रदान करता है।

केरल मंत्रिमंडल द्वारा पुलिस कानून में धारा 118ए जोड़ने की अपनी मंशा की घोषणा किये जाने के बाद से ही राजनीतिक दल और जनता इसके खिलाफ आवाज उठा रही है।

नये प्रावधान के बारे में कैबिनेट के फैसले की घोषणा के समय इस अपराध के लिये पांच साल तक की कैद की सजा का प्रस्ताव था लेकिन बाद में इसमें संशोधन करके इसे तीन साल तक की कैद या 10,000 रूपए तक जुर्माना या दोनों कर दिया गया।

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[Breaking] BJP, UDF leaders move Kerala High Court challenging Section 118A of Kerala Police Act

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