
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस बात पर जोर दिया कि इस मुद्दे पर मीडिया रिपोर्टों की सटीकता के बावजूद, मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में अफ्रीकी चीतों की मौत की संख्या कम नहीं है। [पर्यावरण कानून केंद्र डब्ल्यूडब्ल्यूएफ बनाम भारत संघ, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, और अन्य]
जस्टिस बीआर गवई, पीएस नरसिम्हा और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि आम जनता भी कुनो में हाल के घटनाक्रम से चिंतित है।
केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि स्थानांतरण परियोजना एक तरह की है और इसमें अब तक कुछ भी 'खतरनाक' नहीं है।
भाटी ने कहा, "मीडिया की कुछ रिपोर्टें सटीक नहीं हैं। हम खुद ही अपडेट जारी करने पर विचार कर रहे हैं। लेकिन हमें पारिस्थितिक चिंताओं को संतुलित करते हुए परियोजना शुरू करनी होगी।"
न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने तब टिप्पणी की, "लेकिन मौतों की संख्या कम नहीं है।"
एएसजी ने तब तर्क दिया कि नकारात्मक मीडिया प्रचार के बीच, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बड़ी जिम्मेदारी और परामर्श के साथ क्या हासिल किया गया है।
न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने मौखिक रूप से जवाब दिया, "यह सब ठीक है लेकिन आम जनता इस बात से चिंतित है कि इन मौतों के बारे में क्या किया जा रहा है। यह महत्वपूर्ण है।"
एएसजी ने तब बताया कि मौत की संख्या में वृद्धि इस तथ्य के कारण हुई कि आंकड़ों में चीतों में से एक से पैदा हुए शावकों की मौत भी शामिल थी।
उन्होंने कहा कि चूंकि शावकों को शुरू में किसी बाहरी निगरानी से बाहर मांद में रखा गया था, इसलिए भारतीय परिस्थितियों के संपर्क में आने पर उनमें संक्रमण विकसित हो गया।
भारत में चीतों की आबादी को पुनर्जीवित करने के प्रयासों के तहत सितंबर 2022 में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से बीस चीतों को भारत के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित किया गया था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस साल मार्च से अब तक तीन शावकों समेत आठ चीतों की मौत हो चुकी है। इन मौतों का कारण विभिन्न संक्रमणों के साथ-साथ इन जानवरों के बीच लड़ाई को बताया गया है।
पीठ ने आज एएसजी और एक विदेशी विशेषज्ञ के वकील को सुनने के बाद मामले को स्थगित कर दिया।
पिछले महीने कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए सभी चीतों को केवल मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में ही क्यों भेजा गया।
न्यायमूर्ति गवई की अगुवाई वाली पीठ ने इस बात पर अफसोस जताया था कि इतने कम समय में चीतों की मौत की संख्या राज्य की चिंताजनक तस्वीर पेश करती है।
कोर्ट ने मौखिक रूप से सुझाव दिया था कि कुछ जानवरों को राजस्थान स्थानांतरित किया जा सकता है।
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