चुनाव प्रचार से ज्यादा महत्वपूर्ण स्वास्थ्य का अधिकार: मप्र HC द्वारा कमलनाथ ओर नरेन्द्र तोमर के खिलाफ FIR दर्ज का निर्देश

न्यायालय को बताया गया कि कमल नाथ और नरेन्द्र तोमर जैसे नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान कथित रूप कोविड-19 के मानदंडों का उल्लंघन कर संज्ञेय अपराध किया
Kamal Nath and Narendra Singh Tomar
Kamal Nath and Narendra Singh Tomar
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मप्र उच्च न्यायालय ने दतिया और ग्वालियर के जिलाधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि चुनाव प्रचार के दौरान कोविड-19 के मानदंडों का कथित उल्लंघन करने के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र तोमर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जाये।

न्यायालय को बताया गया कि चुनाव प्रचार के दौरान कमल नाथ और नरेन्द्र तोमर जैसे नेताओं ने कोविड-19 मानदंडों का कथित रूप से उल्लंघन करके संज्ञेय अपराध किया है।

उन प्रत्याशियों और आयोजकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी है जिनके चुनाव प्रचार के लिये सभायें आयोजित की गयी थी लेकिन तोमर और नाथ के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुयी थी।

अतिरिक्त महाधिवक्ता अंकुर मोदी ने न्यायालय को भरोसा दिलाया कि इन नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जायेगी। अत: न्यायालय ने ग्वालियर और दतिया के जिलाधिकारियों को, जहां ये सभायें हुयी थीं, इस पर अमल सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।

उच्च न्यायालय ने राज्य विधान सभा के लिये उपचुनाव के लिये हो रहे प्रचार के दौरान कोविड-19 के मानदंडों का पालन नहीं होने के मामले में यह निर्देश दिया।

न्यायालय ने इस तथ्य का जिक्र किया कि प्रत्येक प्रत्याशी को अपने घोषणा पत्र का प्रचार करने का वैधानिक अधिकार है और इसने सूचना के अधिकार के तहत मौलिक अधिकार का रूप ले लिया है। न्यायालय ने महामारी के मद्देनजर अपने आदेश में कहा,

‘‘प्रचार करने के अधिकार और जीवन एवं स्वास्थ्य के अधिकार के बीच टकराव होने की स्थिति में निश्चित ही स्वास्थ्य एवं जीवन के अधिकार को प्राथमिकता होगी।।प्रचार और अभियान चलाने के अधिकार के साथ स्वास्थ्य और जीवन के अधिकार की तुलना करने पर निश्चित ही स्वास्थ्य एवं जीवन का अधिकार अधिक महत्वपूर्ण और पवित्र है। अत: प्रचार करने के अधिकार को मतदाताओं के स्वास्थ्य एवं जीवन के अधिकार के सामने झुकना होगा।’’

उच्च न्यायालय ने कहा कि वह कोविड-19 के मानदंडों के बड़े पैमाने पर हनन का मूक दर्शक नहीं बना रह सकता। उसने इसके साथ ही सभी जिलाधिकारियों को निेर्देश दिया कि वे अधिकार क्षेत्र में चुनाव प्रचार के लिये जन सभाओं के आयोजन की उस समय तक अनुमति देने से बचें जब तक यह साबित नहीं हो जाये कि वर्चुअल प्रचार आयोजित करना संभव नहीं है।

जिलाधिकारी द्वारा दी गयी अनुमति निर्वाचन आयोग से लिखित में स्वीकृति मिलने के बाद ही प्रभावी होगी।

न्यायालय की ये शर्ते यहीं नहीं रूकीं और उसने आदेश में कहा,

‘‘जिलाधिकारी और निर्वाचन आयोग से जन सभा के आयोजन की अनुमति मिलने के बावूदज इसका आयोजन करने की इच्छा रखने वाला राजनीतिक दल-प्रत्याशी को जिलाधिकारी के पास इतनी राशि जमा करायेगा जो ऐसी सभा में शामिल होने वाले अनुमानित लोगों की सुरक्षा के लिये उनकी संख्या से दुगुने मास्क और सैनिटाइजर खरीदने के लिये पर्याप्त हो और ऐसा करने के बाद ही वे सभा आयोजन कर सकेंगे और प्रत्याशी को हलफनामे पर यह आश्वासन भी देना होगा कि वह सभा या बैठक शुरू होने से पहले इसमें उपस्थित सभी लोगों में मास्क और सैनिटाइजर वितरित करने के लिये व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होगा।’’

न्यायालय ने अपने आदेश में वोट हासिल करने के लिये लोगों को घरों से बाहर निकालने के लिये राजनीतिक दलों के अभिप्राय को भी जिक्र किया है।

उच्च न्यायालय ने इससे पहले तीन अक्ट्रबर को अपने अंतरिम आदेश में जिलाधिकारियो को यह सुनिश्चित करने के लिये कहा था कि कोविड-19 के मानदंडों का उल्लंघन होने की स्थिति में उन प्रत्याशियो, आयोजकों और राजनीतिक, सरकारी या शासकीय या सामाजिक लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जाये जिनके नाम या जिनकी ओर से ऐसा आयोजन हुआ।

इस आदेश के बावजूद राज्य में सुरक्षा मानकों और कोविड-19 के मानदंडों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन करते हुये अनेक सभाओं का आयेाजन हुआ। इसलिए न्यायालय ने 12 अक्टूबर को संबंधित जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि वे ऐसे आयोजनों में सुरक्षा और संरक्षा मानकों के उल्लंघन का विवरण देने वाले आवेदनों और न्याय मित्र की रिपोर्ट को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के लिये सूचना माने।

इस मामले में अधिवक्ता वीर सिह सिसोदिया ओर सुरेश अग्रवाल ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया।

महाधिवक्ता पुरूषेन्द्र कौरव और अतिरिक्त महाधिवक्ता अंकुर मोदी राज्य सरकार तथा अतिरिक्त सालिसीटर जनरल प्रवीण नेवासकर केन्द्र सरकार की ओर से पेश हुये।

अधिवक्ता आलोक कटारे ने दो प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व किया जबकि अधिवक्ता संजय द्विवेदी और वी. शर्मा ने न्यायालय के न्याय मित्र की मदद की।

इस मामले की अगली सुनवाई 23 अक्टूबर को होगी।

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Right to health takes precedence over right to campaigning: MP HC directs FIR against Kamal Nath, Narendra Tomar for COVID-19 protocol breach

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