ब्रेकिंग- मद्रास उच्च न्यायालय का सोशल मीडिया पर पूर्व न्यायाधीश सीएस कर्णन की अपमानजनक टिप्पणियां ब्लाक करने का निर्देश

न्यायालय ने आज कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि महत्वपूर्ण सांविधानिक पद पर रह चुके सीएस कर्णन इतने नीचे गिर गये और बार बार न्यायपालिका को बदनाम कर रहे हैं।
ब्रेकिंग- मद्रास उच्च न्यायालय का सोशल मीडिया पर पूर्व न्यायाधीश सीएस कर्णन की अपमानजनक टिप्पणियां ब्लाक करने का निर्देश
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मद्रास उच्च न्यायालय ने मंगलवार को प्राधिकारियों को निर्देश दिया की उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीएस कर्णन की सोशल मीडिया पर अपमान जनक टिप्पणियों को ब्लाक किया जाये क्योंकि अगर इस तरह की अपमान जनक टिप्पणियों को लगातार ऑनलाइन अपलोड करने दिया गया तो इससे अपूर्णीय नुकसान होगा।

न्यायमूर्ति एम सत्यनारायणन और न्यायमूर्ति आर हेमलता की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता एस प्रभाकरन की प्रारंभिक दलीलों को सुनने के बाद याचिकाकर्ता तमिलनाडु बार काउन्सिल को अंतरिम राहत प्रदान की।

राज्य कार काउन्सिल ने अपनी याचिका में पूर्व न्यायाधीश के खिलाफ आपराधिक और कानूनी कार्यवाही करने का अनुरोध करने के साथ ही फेसबुक, यूट्यूब और गूगल की वेबसाइट ब्लाक करने का अंतरिम निर्देश देने का भी अनुरोध किया है जिन्होंने न्यायमूर्ति कर्णन के इन अपमान जनक टिप्पणियों वाली सामग्री और वीडियो को साझा किया है।

पीठ ने सोमवार को टिप्पणी की थी की कर्णन द्वारा लगाये गये आरोप पहली नजर में मानहानिकारक हैं।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्यायमूर्ति कर्णन, जो स्वंय महत्वपूर्ण सांविधानिक पद पर रह चुके हैं, इतने नीचे स्तर पर चले गये और उन्होंने बार बार बदनाम करने वाले तथा उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तथा उनके परिजनों के बारे में अश्लील, आपत्तिजनक और असंसदीय हमले किये हैं।

न्यायालय ने यह भी कहा कि अदालत की महिला कर्मचारियों और महिला वरिष्ठ अधिवक्ताओं सहित महिला वकीलों के खिलाफ आरोप लगाने का उनका यह सिलसिला लगातार जारी है।

बार काउन्सिल द्वारा पेश तथ्यों, जिसमे पूर्व न्यायाधीश की टिप्पणियों का अनुवाद भी शामिल है, के अलवोकन के बाद उच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायमूर्ति कर्णन की टिप्पणियां पहली नजर में संज्ञेय अपराध हैं और कार्य स्थल पर महिलाओ के यौन उत्पीड़न की रोकथाम कानून के तहत अपराध हैं।

पीठ ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि उच्चतम न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश के आवास में न्यायमूर्ति कर्णन द्वारा जबरन घुसने के प्रयास की घटना को लेकर दर्ज प्राथमिकी में कोई कार्रवाई नहीं की गयी है।

इस मामले में एएजी कुमारेश बाबू ने राज्य के प्रतिवादियों की ओर से नोटिस स्वीकार किया जिन्हें अपने जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। यह मामला अब छह दिसंबर को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध है। पीठ ने कहा कि इस मामले में प्रदान की गयी अंतरिम राहत अगले आदेश तक जारी रहेगी।

तमिलनाडु बार काउन्सिल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रभाकरन ने कहा कि न्यायमूर्ति कर्णन लगातार बयान जारी करके प्राधिकारियों को उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने की चुनौती दे रहे है।

प्रभाकरन ने कर्णन की अपमान जनक टिप्पणियों को न्यायालय में सबकी मौजूदगी में पढ़ने में असमर्थता व्यक्त करते हुये इस सवाल को टाल गये कि मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के खिलाफ अभी सरकार को कार्रवाई क्यों करनी है।

उन्होंने यह दलील भी दी कि न्यायालय में महिला कर्मचारियों की कार्यस्तल पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये उच्च न्यायालय को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए। इस संबंध में उन्होंने कहा कि कर्णन कार्य स्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम कानून का उल्लंघन करते हुये वह न्यायालय में कार्यरत महिला कर्मचारियों के बारे में अश्लील टिप्पणियां कर रहे हैं।

प्रभाकरन ने कहा, ‘‘ऐसा एक बार नहीं बल्कि रोजाना वह अपमानजनक बयान दे रहे हैं यह न्यायालय अभी तक इस पर आंख मूंदे है और खामोश है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।’’

बहस के दौरान न्यायालय को सूचित किया गया कि बार काउन्सिल ने हमेशा ही इस तरह के सदस्यों के खिलाफ तत्परता से कार्रवाई की है और कल ही एक वकील को निलंबित किया है क्योंकि उसके पास गांजा मिला था।

प्रभाकरन ने कहा, ‘‘इस मामले में (सीएस कर्णन के) न्यायालय ने अभी तक कार्रवाई क्यों नहीं की?’’ उन्होंने कहा, ‘‘वह(कर्णन) कहते हैं, ‘मुझे बोलने की आजादी का अधिकार है…यह कैसी बोलने की आजादी है कि आप अपमानजनक बयान देते रहें? हम उन शब्दों को दोहरा नहीं सकते तो (कर्णन द्वारा) इस्तेमाल किये गये हैं।…किसी भी नागरिक को न्यायपालिका को बदनाम करने की आजादी नहीं है। रोजाना वह संस्थान को बदनाम कर रहे हैं। एक आम बुद्धिमान व्यक्ति बैठकर इन बातों को सुन नहीं सकता है। यह बहुत दुखद है कि इस मामले में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गयी है। बगैर किसी तथ्य के लिये वह लगातार आरोप लगा रहे हैं।’’

उच्चतम न्यायालय द्वारा शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों के खिलाफ निराधार और बेबुनियाद आरोप लगाने के कारण उच्चतम न्यायालय द्वारा कर्णन को अवमानना का दोषी ठहराये जाने से पहले वह मद्रास और कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रह चुके हैं। उच्चतम न्यायालय ने अवमानना का दोषी ठहराते हुये कर्णन को छह महीने की सजा सुनाई थी और इस सजा को भुगतने के बाद वह दिसंबर, 2017 में जेल से रिहा हुये थे।

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