मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने मंगलवार को सरकार आग्रह किया कि मीडिया की खबरों पर निगाह रखने की व्यवस्था बनाने पर उसे विचार करना चाहिए ताकि औपचारिक शिकायत का इंतजार किये बगैर ही प्राधिकारी सार्वजनिक शिकायतों पर कार्रवाई कर सकें।
न्यायमूर्ति एन किरुबकरण और न्यायमूर्ति बी पुगालेंधी की पीठ ने कहा कि हालांकि सोशल मीडिया की निगरानी की जरूरत नहीं है , राज्य के प्राधिकारियों को प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया की खबरों पर ध्यान देना चाहिए।
न्यायालय तेंकसी में एक महिला से सरे आम एक पुलिसकर्मी द्वारा दुर्व्यवहार की घटना वायरल होने के बावजूद मामला दर्ज करने में कथित विलंब को लेकर स्वत: दर्ज की गयी जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता श्रीचरण रंगराजन ने न्यायालय से कहा कि मीडिया की खबरों पर निगाह रखने के लिये चेन्नै में एक अलग से यूनिट है।
हालांकि, न्यायालय ने उन्हें इस तथ्य से अवगत कराया जाये कि क्या इस काम के लिये कोई विशेष समिति गठित की गयी है, जिसे नागरिक सेवाओं के साथ किसी प्रकार के अपराध, लापरवाही या कमी के बारे में मीडिया में आने वाली खबरों के बारे में विभिन्न विभाग जानकारी देते हैं।
यह भी कहा गया कि इस तरह की समिति नागरिकों को पुलिस या अदालत में जाने के लिये बाध्य किये बगैर स्वत: ही जन शिकायतों पर ध्यान दे सकती है।
पीठ ने मौखिक ही टिप्पणी की, ‘‘जब समाचार पत्र में कुछ आता है तो आप तुरंत ही कार्रवाई करके उसे दुरूस्त कर सकते हैं..इस सबसे प्रशासन की छवि में सुधार होगा। जनता का भरोसा बढ़ेगा। प्रत्येक चीज के लिये जनहित याचिका का इंतजार मत कीजिये।’’
न्यायालय ने कहा कि ऐसा लगता है कि लापरवाही, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान या नागरिक सेवाओं में कमियों के बारे में मीडिया में आने वाली खबरों का संज्ञान लेने की कोई व्यवस्था नहीं है। न्यायालय ने कहा कि सभी विभागों के अधिकारियों की एक विशेष समिति होनी चाहिए जो मीडिया और सोशल मीडिया की खबरों में किसी भी समस्या का जिक्र होने पर उस पर ध्यान दें और उसका तुरंत समाधान कर सकें।
न्यायालय ने अपने समक्ष लंबित इस मामले में शुक्रवार को आगे सुनवाई के लिये राज्य के नगर पालिका और स्थानीय प्रशासन के विभाग, लोक निर्माण विभाग, राजमार्ग विभाग, शिक्षा विभाग, तैंगेडको के अध्यक्ष और राजस्व विभाग को भी प्रतिवादी बना लिया है।
अतिरिक्त महाधिवक्त ने न्यायालय से कहा कि वह इस तरह के मामलों पर गौर करने संबंधी व्यवस्था के बारे में उस समय तक अवगत करा देंगे।
तेंकसी के उक्त सिपाही के बारे में सरकार ने कल बताया कि न्यायालय द्वारा घटना का स्वत: संज्ञान लिये जाने से पहले ही पुलिस ने इस मामले में कार्रवाई की है।
इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गयी और पुलिसकर्मी हिरासत में देने का अनुरोध किया गया था। हालांकि, न्यायालय यह जानकर हतप्रभ रह गया कि पुलिसकर्मी के खिलाफ गैर जमानती मामला दर्ज होने के बावजूद न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उसे जमानत पर रिहा कर दिया है।
न्यायालय ने इस पर कहा, ‘‘प्रशासनिक पक्ष में हम कार्रवाई करेंगे। मजिस्ट्रेट इस तरह से जमानत दे रहे हैं?’’
पीठ ने सवाल किया, ‘‘लोक अभियोजक कौन है? क्या उन्होंने इसका विरोध किया था? हम कदम दर कदम आगे बढ़ेंगे। हम किसी को नहीं छोड़ेंगे।’’
पीठ ने कहा कि यह चौंकाने वाली बात है कि गैर जमानती अपराध, वह भी पुलिसकर्मी द्वारा एक महिला के साथ करना, को पुलिस और मजिस्ट्रेट दोनों ने ही बहुत ही हल्के से लिया है।
न्यायालय ने अब उस कार्यवाही से संबंधित रिकार्ड तलब किया है कि क्या पुलिसकर्मी की जमानत का विरोध किया गया था, क्या राज्य पुलिस ने जमानत का विरोध करने के बारे में कोई निर्देश दिया था और जमानत का आदेश।
न्यायालय ने इस पुलिसकर्मी को जमानत देने वाले न्यायिक मजिस्ट्रेट की फाइल तलब करने के साथ ही पुलिस इंसपेक्टर को पुलिसकर्मी की गिरफ्तारी से लेकर आगे तक का पूरा घटनाक्रम हलफनामे पर देने का निर्देश दिया है।
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