सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक ऐसे व्यक्ति की तत्काल रिहाई का आदेश दिया, जो किशोर न्याय बोर्ड द्वारा अपराध के समय नाबालिग होने की पुष्टि के बाद 17 साल से अधिक समय तक जेल में बंद रहा था।
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की खंडपीठ ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 15 के तहत विशेष गृह में तीन साल की अनिवार्य अवधि को अब देखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उन्होंने जेल में लंबी अवधि बिताई है।
कोर्ट ने कहा, "लखनऊ की संबंधित जेल के वरिष्ठ अधीक्षक द्वारा जारी 1 अगस्त 2021 के प्रमाण पत्र में दर्ज है कि 1 अगस्त 2021 तक आवेदक 17 साल 03 दिन की सजा काट चुका है। इसलिए अब आवेदक को किशोर न्याय बोर्ड के पास भेजना अन्याय होगा।"
उस व्यक्ति ने 8 जनवरी, 2004 को अपराध किया था और यह कहते हुए कि उसकी जन्मतिथि 16 मई, 1986 थी, किशोर होने की दलील दी थी।
शीर्ष अदालत ने 31 जनवरी, 2022 को किशोर न्याय बोर्ड (JJB) को आवेदक के किशोर होने के दावे की जांच करने का निर्देश दिया।
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