युवा डॉक्टरों के लिए अनिवार्य ग्रामीण सेवा को चुनौती: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने केंद्र, राज्य सरकार से जवाब मांगा
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हाल ही में मेडिकल छात्रों द्वारा दायर एक याचिका में नोटिस जारी किया है, जिसमे अभ्यर्थियों द्वारा कर्नाटक अनिवार्य सेवा अधिनियम 2012 (अनिवार्य अधिनियम) की वैधता पर सवाल उठाया गया है, जो एक वर्ष के लिए अनिवार्य ग्रामीण सेवा प्रदान करने के लिए चिकित्सा शिक्षा पूरी कर चुके उम्मीदवारों को मजबूर करता है।
न्यायमूर्ति आर देवदास की खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों से उन चालीस छात्रों द्वारा दायर याचिका पर जवाब मांगा जो अपने एमबीबीएस पाठ्यक्रम के अंतिम वर्ष में हैं।
अधिनियम की वैधता के अलावा, याचिकाकर्ताओं ने चिकित्सा शिक्षा निदेशालय द्वारा जारी फरवरी 15,2021 की अधिसूचना की वैधता को भी चुनौती दी, जो उन छात्रों के सभी मूल दस्तावेजों को वापस लेने का निर्देश देती है जिन्होंने अपने चिकित्सा पाठ्यक्रम को पूरा किया है।
मामले की सुनवाई के दौरान, सरकारी वकील ने कहा कि राज्य सरकार, चिकित्सा शिक्षा निदेशक / स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के निदेशक ने अनिवार्य ग्रामीण सेवा के लिए सरकारी अस्पताल/ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के आवंटन के संबंध में किसी भी परामर्श के लिए नहीं बुलाया गया है।
सरकारी वकील ने कहा कि छात्रों के अंक पत्र जारी करने के लिए निर्देशित किए जा सकते हैं।
न्यायालय ने तब राज्य को इस आशय के आवश्यक आदेश पारित करने का निर्देश दिया।
डॉक्टर शरण्या मोहन और अन्य तैंतालीस ने वकील मानिक बीटी के माध्यम से दायर याचिका मे अनिवार्य अधिनियम की वैधता को चुनौती दी।
हालांकि उच्च न्यायालय ने अगस्त, 2019 में अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) अधिनियम, 2019 को अधिसूचित किए जाने के बाद अनिवार्य सरकारी सेवा पर कानून जारी नहीं रह सकता, जो सितंबर 2019 से लागू हुआ।
"एनएमसी अधिनियम की धारा 14 केंद्र सरकार को चिकित्सा पाठ्यक्रम, जिसे राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा कहा जाता है, के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करने का विशेष अधिकार प्रदान करता है। इस प्रकार, राज्य सरकार के साथ-साथ निजी शैक्षणिक संस्थान भी अब मेडिकल पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित नहीं कर सकते हैं। "
याचिका में आगे कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से अनिवार्य सरकारी सेवा पर एक समान नीति बनाने को कहा था क्योंकि कई राज्यों में ऐसी कोई सेवा नहीं थी। इस प्रकाश में, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि राज्य ऐसी सेवा को लागू नहीं कर सकता है क्योंकि ऐसी शक्ति अब केवल एनएमसी के साथ निहित है।
याचिका में आगे 15 फरवरी, 2021 की अधिसूचना की वैधता पर सवाल उठाया गया, जो चिकित्सा शिक्षा निदेशालय द्वारा जारी की गई है जो निर्देश देती है कि कॉलेज उन छात्रों के सभी मूल दस्तावेजों को वापस ले लें जिन्होंने अपने चिकित्सा पाठ्यक्रम को पूरा कर लिया है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि दस्तावेजों को पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सेज के लिए नेशनल नेशनल एलिजिबिलिटी-कम-एंट्रेंस के लिए आवेदन करना जरूरी है। इसलिए, उनके दस्तावेजों को अस्वीकार करना कानून के विपरीत है और उच्च शिक्षा का विकल्प चुनने के उनके अधिकार से वंचित करता है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि ग्रेजुएट नेशनल एलिजिबिलिटी-कम-एंट्रेंस फॉर ज्वाइंट पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सेज में आवेदन करने के लिए दस्तावेज जरूरी हैं। इसलिए, उनके दस्तावेजों को अस्वीकार करना कानून के विपरीत है और उच्च शिक्षा का विकल्प चुनने के उनके अधिकार से वंचित करता है।
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