मथुरा के जिला न्यायाधीश ने भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और स्थान श्री कृष्ण जन्मभूमि की अपील विचारार्थ स्वीकार कर ली जिसमें कृष्ण जन्म भूमि पर शाही ईदगाह मस्जिद निर्मित होने के आधार पर इसे हटाने के लिये दायर वाद खारिज करने के अदालत के फैसले को चुनौती दी गयी है।
न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने इस अपील पर शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट , उप्र सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड और अन्य को नोटिस जारी किये हैं।
अपीलतकर्ताओं ने दावा किया है कि भगवान कृष्ण के अनुयायी होने के कारण उन्हें संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों के आलोक में वाद दायर करने का अधिकार है।
भगवान श्रीकृष्ष्ण विराजमान की ओर से अपीलकर्ताओं ने 13.37 एकड़ भूमि पर दावा किया है जिसे कटरा केशव देव भूमि बताया गया है। जहां तक इस भूमि के इतिहास का संबंध है तो अपील में पूरा घटनाक्रम बताते हुये दावा किया गया है कि यह भगवान श्रीकृष्ण का जन्म स्थान है।
1944 में सेठ जुगल किशोर बिरला ने यह जमीन राजा पटनमल के उत्तराधिकारियों से खरीदी थी।
बिरला ने 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम से एक सार्वजनिक ट्रस्ट स्थापित किया था। समूची 13.37 एकड़ भूमि भगवान कृष्ण की प्रतिमा को समर्पित करते हुये इस ट्रस्ट को दे दी थी।
श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान नाम से एक मई, 1958 को एक सोसायटी की स्थापना की गयी जिसने श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को अपने अधिकार में ले लिया था
सोसायटी ने अक्टूबर, 1968 में ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह के साथ एक समझौता किया।
इस समझौते के तहत सोसायटी ने हिन्दू देवता की संपत्ति ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह को सौंप दी, ‘हालांकि वह इसकी स्वामी नहीं थी और यह संपत्ति पहले ही श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंपी जा चुकी थी और उसे ट्रस्ट की भूमि को लेकर कोई वाद दायर करने फिर समझौता करने का कोई अधिकार नहीं था।’
नवंबर, 1974 में छल और मिलीभगत से डिक्री हासिल की गयी।
ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट द्वारा निर्मित मस्जिद हटाने के लिये मथुरा की दीवानी अदालत में दायर मामला खारिज होने के बाद अपील दायर की गयी।
यह वाद खारिज करने के आदेश अपीलकर्ताओं ने चुनौती दी है जिसमे मोटेतौर पर निम्न दलीलें दी गयी हैं:
भगवान श्री कृष्ण के उपासक के रूप में उन्हें संविधान के अनुच्छेद 25 में अधिकार के तहत भगवान कृष्ण क वास्तविक जनम स्थान का दर्शन करने और वहां पूजा करने का अधिकार है।
प्रत्येक उपासक का यह अधिकार और कर्तव्य है कि वह देवता की संपत्ति वापस लाने के सारे प्रयास करे और मंदिर तथा देवाओं की संपत्ति की सुरक्षा और प्रबंधन के लिये कदम उठाये
श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह के बीच समझौते के आधार पर हुयी दीवानी डिक्री की वैधता विववादस्पद है। इसमें दलील दी गयी है कि यह डिक्री छल से प्राप्त की गयी है और कानून की नजर में यह शून्य है।
अपील में आगे कहा गया है, ‘‘द श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ का देवता ट्रस्ट की संपत्ति पर कोई अधिकार, हित या प्रभुत्व नहीं था और उसे वाद दायर करने और देवता के हितों के विरूद्ध किसी प्रकार का समझौता करने का भी अधिकार नहीं था। इसलिए इस छल की जानकारी प्राप्त होने पर देवता को वाद दायर करने का पूरा अधिकार है।
मथुरा की अदालत का वाद खारिज करने का आदेा भी इसी समझौता डिक्री पर आाधारित है। वैसे भी चुनौती दिया गया निर्णय गलत अवधारणा पर आधारित है और यह विवेक के बगैर ही किया गया है।
अपील में आगे कहा गया है निचली अदालत ने अपीलकर्ता का वाद पहले चरण में ही इस आधार परर खारिज कर दिया कि अगर वाद का पंजीकरण किया गया तो बहुत बड़ी संख्या में उपासक अदालत आयेंगे। अपील में कहा गया है कि किसी भी वाद को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि दूसरे भी अदालत आ सकते हैं।
इन दलीलों के आलोक में अपीलकर्ताओं ने दावा किया है कि सारी 13.37 एकड़ भूमि भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की है।
अपीलकर्ता/देवता के मित्र ने यह भी कहा है कि उन्होंने इस संपत्ति का प्रबंधन उन्हें सौंपने का अनुरोध नहीं किया है। इसकी बजाये, वे चाहते हैं कि मस्जिद (जिसे अतिक्रमण बताया गया है) को हटाया जाये और यह संपत्ति श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंपी जाये।
जिला अदलत से अनुरोध किया गया है कि वह उप्र सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड और शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के प्रबंधन को ‘इस भूमि का अतिक्रमण करके उस पर किया गया निर्माण हटाने का निर्देश दे।
इसमें यह भी अनुरोध किया गया है कि खाली सपत्ति का कब्जा श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंपा जाये।
यह अपील अधिवक्ता हरि शंकर जैन, विष्णु शंकर जैन और पंकज कुमार वर्मा के माध्यम से दायर की गयी है।
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