बंबई उच्च न्यायालय में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मामले में सनसनीखेज पत्रकारिता के मद्देनजर मीडिया ट्रायल के खिलाफ जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान आज वरिष्ठ अधिवक्ता आस्पी चिनॉय ने फिर दोहराया कि इस मामले में न्यायायल को दिशा निर्देश जारी करने चाहि। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश चिनॉय ने आज अपनी जवाबी दलील में कहा,
‘‘कानून के साथ दिक्कत यह है कि अगर एक सुदृढ़ तंत्र है, यह देखना आश्चर्यजनक है कि महीनों तक चैनल लोगों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं।’’
चिनॉय ने मीडिया विनियमन की मौजूदा व्यवस्था का जिक्र करते हुये दलील दी,
‘‘हमे इस पर विचार करने की जरूरत है कि यह कथित व्यवस्था क्या है। क्या यह कारगर रही है? और न्यायालय के निर्देश से इसमे सुधार के लिये क्या करा जा सकता है?’’
उन्होंने कहा कि अगर मीडिया चैनल कार्यक्रम संहिता का उल्लंघन करता है तो केबल टेलीविजन नेटवर्क्स कानून के तहत ट्रांसिमशन रोका जा सकता है।
उन्होंने कहा कि दूसरी ओर , गैर विधायी व्यवस्था में न्यूज ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन नियमों में नैतिक मानकों की आचार संहिता है जिसका उन चीजों से कोई लेना देना नहीं है जिन पर हम बात कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इन दोनों व्यवस्थाओं के बीच सरकार गैर जिम्मेदाराना खबरों के मामले में कार्रवाई करने में सुस्त रही है। चिनॉय ने दलील दी,
‘‘जनता की शिकायत पर गौर करें, स्वत: कार्रवाई हुयी है लेकिन सरकार की ओर से ऐसी कोई सफाई नहीं आयी कि उसने क्या कार्रवाई की है। अगर उन्होंने कार्रवाई की होती, हमें यहां नहीं आना पड़ता। लेकिन उन्होंने देखा ही नहीं कि यह सब क्या हो रहा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘उनका मानना है कि यह न्यायालय की अवमानना नहीं है। मैं सिर्फ स्थिति स्पष्ट करने के लिये इसे रूप दे रहा हूं। क्योंकि आपने बार बार कहा है कि इसके लिये नियम हैं। जरा देखिए, आपने इनके साथ क्या करा है?’’
चिनॉय ने स्पष्ट किया कि वह यह नहीं कह रहे हैं कि टिप्पणियों वाली या आलोचनात्मक रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए। हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न्याय के प्रशासन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘आप जज या ज्यूरी नहीं जो तय करें कि किसी जांच या किसका पीछा किया जाना चाहिए।’’
हाल के समय में सरकार की प्रतिक्रया और सुशांत सिंह राजपूत मामले में मीडिया की कवरेज का संदर्भ मानते हुये चिनॉय ने टिप्पणी की,
‘‘अगर दो महीने के अभियान पर गौर नहीं किया गया तो ऐसा करने की भारत सरकार के पास क्य वजह थी? वह अगर अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर रही है या उसके अपास ताकत नहीं है, दोनों ही स्थितियों में न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत है।’’
उन्होंने कहा,
‘‘इक्का दुक्का घटनायें समझ में आती हैं लेकिन इतने लंबे समय तक लगातार रिपोर्टिंग और इस पर कोई प्रतिक्रया नही। दिशानिर्देशों में इस शामिल करके आप लार्डशिप कानूनको प्रतिपादित कर रहे हैं। महीनों तक उन्होंने कुछ नहीं किया है।’’
इस तरह की परिस्थितियों में न्यायालयों के हस्तक्षेप को भी चिनॉय ने सामने रखा
‘‘यह व्यवस्था दी जा चुकी है कि अदालतों को उचित मामलों में तथ्यों को प्रभावित किये बगैर ही एहतियाती उपायों के रूप में दंडित करने या प्रचार स्थगित करने का अधिकार है। मीडिया चैनल किसी की प्रतिष्ठा कैसे धूलधूसरित कर सकते हैं और कैसे यह दर्शा सकते हैं कि वह किसी अपराध का दोषी हैं? जानकारी दीजिये, आलोचना कीजिये, विचार विमर्श कीजिये लेकिन निर्णय मत कीजिये, यही सार है।’’
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