सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश पुलिस और यूपी क्राइम-ब्रांच क्राइम इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट के मामले में विरोधाभासी निष्कर्षों पर पहुंचने के बाद बरेली में 17 वर्षीय मेडिकल छात्रा की मौत की केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा जांच का आदेश दिया। [अनादि दीक्षित बनाम भारत संघ]।
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और सुधांशु धूलिया की बेंच मृतक लड़की के पिता द्वारा दायर 2018 की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया था कि यद्यपि छात्र की मौत को आत्महत्या का मामला बनाया गया था, यह एक अप्राकृतिक मौत थी।
इसलिए याचिकाकर्ता ने इसकी सीबीआई जांच की मांग की है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने तर्क दिया कि यह कोई सामान्य मामला नहीं था क्योंकि याचिकाकर्ता की बेटी को घटना के दस दिन पहले ही मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था, जिसमें से तीन दिन परिवार के साथ बिताए गए थे।
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि, उनकी अपनी बेटी के अलावा, आठ अन्य मेडिकल छात्रों को 2002 और 2018 के बीच समान भाग्य का सामना करना पड़ा था और इस पहलू की भी जांच की जानी चाहिए।
यूपी पुलिस ने दो आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता 1860 (आईपीसी) की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 201 (सबूत मिटाना) के तहत मामला दर्ज किया था। पुलिस ने चार्जशीट भी दाखिल की थी। बाद में जांच राज्य सीबी-सीआईडी को सौंप दी गई, जिसने अंततः मामले में क्लोजर रिपोर्ट दायर की।
विशेष रूप से, सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि "दो जांच एजेंसियों द्वारा दायर की गई दो रिपोर्टों में विरोधाभास प्रतीत होता है और इन मामलों की प्रकृति पर भी विचार किया जाता है।"
इसलिए, शीर्ष अदालत ने सीबीआई को यूपी पुलिस और सीबी-सीआईडी दोनों की सहायता से मामले की जांच करने का निर्देश दिया।
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Medical student death: UP Police and CBCID differ on findings, Supreme Court orders CBI probe