मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा था कि उन मामलों में नैतिक पुलिसिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती है जहां दो प्रमुख वयस्कों ने स्वेच्छा से एक साथ रहने का फैसला किया है चाहे वह शादी के माध्यम से हो या लिव-इन रिलेशनशिप में। [गुलजार खान बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य]।
एकल-न्यायाधीश नंदिता दुबे ने कहा कि संविधान इस देश के प्रत्येक नागरिक को अधिकार देता है, जिसने अपनी या अपनी इच्छा के अनुसार अपना जीवन जीने का अधिकार प्राप्त कर लिया है।
कोर्ट ने देखा "ऐसे मामलों में किसी भी नैतिक संस्कार की अनुमति नहीं दी जा सकती है जहां दो वयस्क व्यक्ति विवाह के माध्यम से या लिव-इन रिलेशनशिप में एक साथ रहने के लिए तैयार हैं और स्वेच्छा से कर कर रहे है और इसमें मजबूर नहीं है।"
चूंकि वर्तमान मामले में, 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुकी महिला ने पति के साथ रहने की इच्छा व्यक्त की, कोर्ट ने राज्य के इस तर्क को ठुकरा दिया कि विवाह मध्य प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता (एमपीएफआर) अधिनियम 2021 का उल्लंघन है और इसलिए महिला को नारी निकेतन भेजा जाना चाहिए।
इसलिए कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को पत्नी को याचिकाकर्ता को सौंपने और यह देखने का निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता-पति और पत्नी सुरक्षित अपने घर पहुंचें।
अदालत ने आगे पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि दोनों को पत्नी के माता-पिता द्वारा धमकी नहीं दी जाये।
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