उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने आज अपनी व्यवस्था में कहा कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत अपराध के लिये अभियुक्त इस आधार पर बरी किये जाने का हकदार नहीं है कि सूचना देने और जाच करने वाला अधिकारी एक ही व्यक्ति हैं।
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति विनीत सरन, न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति रवीन्द्र भट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस सवाल पर अपनी व्यवस्था दी कि क्या सूचना देने वाला ही जांच अधिकारी होने पर एनडीपीएस अधिनियम के तहत जांच दूषित हो जायेगी।
न्यायालय ने कहा कि सूचना देने और जांच करने वाला अधिकारी एक ही होने की स्थिति में स्वत: ही दुराग्रह से ग्रस्त होने की आशंका नहीं है और ऐसे मामलों में प्रत्येक मामले की स्थिति के आधार पर निर्णय लेना होगा।
शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 2018 में अपने फैसले में कहा था कि सूचना देने और जांच करने वाला अधिकारी एक ही होने की स्थिति में मामले की सुनवाई दूषित होगी। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मोहनलाल बनाम पंजाब के मामले में यह फैसला सुनाया था। इस पीठ ने यह भी स्पष्ट किया था कि इसका लाभ इस फैसले की तारीख तक अदालतों में लंबित मुकदमों और अपीलों को नहीं मिलेगा।
मोहनलाल बनाम पंजाब मामले में न्यायालय के इस निर्णय के सही होने के बारे में न्यायमूर्ति उदय यू ललित और न्यायमूर्ति एमआर शाह की दो सदस्यीय पीठ ने मुकेश सिंह बनाम नार्कोटिक ब्रांच, दिल्ली ने सवाल उठाया था।
दो न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था, ‘‘चूंकि हम मोहनलाल मामले में अपनाये गये दृष्टिकोण से असहमत हैं, इस मामले में कम से कम तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा विचार की आवश्यकता है। इसलिए हम, रजिस्ट्री को निर्देश देते हैं कि इसकी फाइल उचित संख्या वाली पीठ के गठन के लिये प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखी जाये।’’
इसके बाद, यह मामला पांच सदस्यीय संविधान पीठ को इस सवाल पर सुविचारित व्यवस्था के लिये सौंपा गया था।
वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका में थे।
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