केरल उच्च न्यायालय ने आज अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट किया कि केरल पुलिस कानून में हाल ही में विवादास्पद अध्यादेश के माध्यम से शामिल की गयी धारा 118ए के तहत इसके अमल के बारे में राज्य सरकार द्वारा फैसला लिये जाने तक स्वत: या प्राथमिकी दर्ज करके कोई कार्रवाई नहीं की जायेगी।
यह विवादास्पद संशोधन गाली देने, अपमानजनक या भड़काने और उकसाने वाली भाषा को अपराध के दायरे में लाता है।
मुख्य न्यायाधीश एस मुणिकुमार और न्यायमूर्ति शाजी पी चाली की पीठ ने अध्यादेश की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई की।
मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया कि क्या सरकार ने इस अध्यादेश को विलंबित रखने का फैसला किया है।
अतिरिक्त महाधिवता रवीन्द्रनाथ केके ने न्यायालय को सूचित किया कि सरकार इस मामले पर पुन: विचार कर रही है। एएजी ने इस मामले में आधिकारिक जवाब दाखिल करने के लिये समय देने का अनुरोध किया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों नेदलील दी कि अध्यादेश को विलंबित रखना पर्याप्त नहीं है और इस अध्यादेश को बनाने वाले को खुद ही संविधान के अनुच्छेद 213 के तहत इसे वापस लेने की कार्यवाही करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा होने तक यह अध्यादेश प्रभावी ही रहेगा।
उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि इस मामले में राज्य सरकार द्वारा निर्णय लिये जाने तक केरल पुलिस कानून की धारा 118ए के तहत कोई कार्रवाई नही की जानी चाहिए।
इस मामले को कल के लिये सूचीबद्ध किया गया है जब राज्य सरकार द्वारा अपना औपचारिक जवाब दाखिल करने की उम्मीद है।
मुख्यमंत्री ने कल ही एक सार्वजनिक बयान जार कर सूचित किया था कि अध्यादेश पर फिलहाल अमल नहीं किया जायेगा और इस पर केरल विधानसभा में विस्तृत चर्चा होगी। इस अध्यादेश की चारों ओर तीखी आलोचना होने और इसे बोलने की आजादी के अधिकार पर अंकुश लगाने वाला करार दिये जाने के बाद राज्य सरकार ने अपने पांव पीछे खींचे है।
याचिकाकर्ताओं ने इस अध्यादेश की संवैधानिकता को चुनौती देते हुये कहा है कि धारा 118ए का प्रावधान अस्पष्ट है और यह पूरी तरह से सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 66ए के समान ही है जिसे श्रेय सिंघल प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने निरस्त कर दिया था।
नये प्रावधान के अनुसार अगर कोई व्यक्ति संचार के किसी भी माध्यम से किसी व्यक्ति को डराने, मानहानि करने अपमानित करने वाली ऐसी कोई सामग्री, यह जानते हुये कि यह झूठी और दूसरे की प्रतिष्ठा का ठेस पहुंचाने वाली है, प्रकाशित, प्रचारित या प्रसारित करता है तो यह दंडनीय अपराध होगा।
इसमें प्रावधान था कि इस अपराध के लिये दोषी पाये गये व्यक्ति को तीन साल तक की कैद या 10,000 रूपए तक का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने प्रदेश की वाम मोर्चा सरकार द्वारा लाये गये इस विवादास्पद अध्यादेश को शनिवार को अपनी मंजूरी प्रदान की थी।
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