उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग और एनसीएलएटी के आदेशों में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। इन आदेशों में सीसीआई और एनसीएलटी ने कहा था कि यात्रियों से ज्यादा किराया लेने के लिये ओला और उबर कार्टेलाइजेशन या प्रतिस्पर्धा विरोधी व्यवहार नहीं करते हैं।
हालांकि, याचिकाकर्ता की स्थिति के सवाल पर न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरिमन, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने एनसीएलएटी का यह निष्कर्ष खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता समीर अग्रवाल सीसीआई जाने वाले शिकायतकर्ता नहीं थे।
पेशे से वकील अग्रवाल ने सीसीआई में शिकायत दायर की थी कि ओला और उबर प्रतिस्पर्धा विरोधी व्यवहार में संलिप्त हैं। उन्होंने प्रतिस्पर्धा कानून की धारा 26(2) के तहत इन दोनों कंपनियों के खिलाफ जांच का अनुरोध किया था।
इसमें आरोप लगाया गया था कि इनकी किराया निर्धारित करने की पद्धति की वजह से ऐप के माध्यम से टैक्सी बुक कराने पर इनमें यात्रा करने वाला व्यक्ति वाहन चालक से किराये के बारे में किसी प्रकार का मोल तोल नहीं कर सकता और न ही वाहन चालन किसी प्रकार की छूट दे पाते हैं।
यह भी दलील दी गयी थी कि ओला और उबर की अपने चालकों के साथ सहमति हुयी कार्य शर्तो के अनुसार इनके ड्राइवर, ओला या उबर के कर्मचारी नहीं होने और इनकी एक स्वतंत्र पहचान होने के बावजूद, ड्राइवर यात्रा पूरी होने पर ऐप में दिखाया गया किराया स्वीकार करने के लिये मजबूर हैं और उन्हें इस संबंध में किसी प्रकार की आजादी नहीं है।
यह भी दलील दी गयी थी कि किराया निर्धारित करने के मामले में ओला और उबर उनके वाहनों में यात्रा करने वालों से बेहतर स्थिति में हैं, वे किराये में अंतर की नीति लागू करते हैं और उनके द्वारा निर्धारित किराया यात्रियों से लिया जाता है और इसका नतीजा यह होता है कि यात्रियों को कृत्रिम रूप से बढ़ा हुआ किराया देना पड़ता है।
इस मामले में यह भी कहा गया कि इनमें किराया निर्धारित करने की एल्गोरिथम पद्धति यात्रियों और चालाकों की प्रतिस्पर्धा के आधार पर बेहतरीन किराये का चयन करने की आजादी छीन लेती है।
सीसीआई ने नवंबर, 2018 को अपने आदेश में कहा था कि किराये को लेकर पक्षपात के आरोप अनुपयुक्त हैं और इनके समर्थन में कोई भी साक्ष्य पेश नहीं किया गया है।
सीसीआई के आदेश को एनसीएलएटी में चुनौती दी गयी थी। एनसीएलएटी ने भी मई, 2020 को इसमें किसी प्रकार की राहत देने से इंकार कर दिया था। इसके बाद यह मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा।
अग्रवाल ने स्वंय ही इस मामले में बहस की और दलील दी कि एल्गोरिथम पद्धति यात्रियों और चालाकों की प्रतिस्पर्धा के आधार पर बेहतरीन किराये का चयन करने की आजादी छीन लेती है क्योंकि दोनों को ही इस पद्धति से निर्धारित किराया स्वीकार करना पड़ता है।
उबर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा विरोधी तरीका नहीं अपनाया जाता है क्योंकि इसी तरह के दूसरे ऐप आधारित सेवायें भी हैं जो प्रतिस्पर्धात्मक किराये की पेशकश करते हैं।
ओला की ओर से अधिवक्ता राजशेखर राव ने सिंघवी की दलीलों का समर्थन किया और कहा कि अग्रवाल प्रभावित पक्ष नहीं हैं।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि एनसीएलएटी ने प्रतिस्पर्धा कानून , 2002 की धारा 19 की संकीर्ण व्याख्या की थी और उसने कहा कि सीसीआई किसी भी व्यक्ति से सूचना प्राप्त कर सकता है और जरूरी नहीं कि उसे किसी प्रकार के अनुचित व्यवहार से प्रभावित व्यक्ति से ही शिकायत मिले।
न्यायालय ने यह भी कहा कि जब सीसीआई निर्णय करने वाले की बजाये जिज्ञासु की भूमिका निभा रहा होता है तो जनहित में सीसीआई और अपीली प्राधिकारी एलसीएलएटी के दरवाजे खुले रखे जाने चाहिए ताकि इस कानून का व्यापक सार्वजनिक उद्देश्य पूरा हो सके।
हालांकि, इस मामले के मेरिट के बारे में नयायालय ने सीसीआई और एनसीएलएटी के इस निषकर्ष को बरकरार रखा कि ओला और उबर ड्राइवरों के बीच किसी प्रकार की प्रतिस्पर्धा विरोधी व्यवहार नहीं करते हैं।
न्यायालय ने कहा कि ड्राइवर एक स्वतंत्र इकाई हैं जो स्वतंत्र रूप से काम करते हैं और इसके परिणामस्वरूप प्रतिस्पर्धा कानून की धारा 3 उन पर लागू नहीं होगी।
सीसीआई की ओर से संवाद पार्टनर्स के अर्जुन कृष्णन ने प्रतिनिधित्व किया और उन्होंने सीसीआई की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल बलबीर सिंह मामले के बारे में जानकारी दी।
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