स्कूलों द्वारा ऑनलाइन शिक्षा के लिए देय ट्यूशन फीस में 50% कटौती की मांग के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है और अन्य संबद्ध प्रार्थनाओं के बीच इस तरह के शुल्क भुगतान पर दिशा-निर्देशों के नियमन के लिए आग्रह किया गया है
याचिका को एडवोकेट सुधीर श्रीवास्तव, राजीव शुक्ला, शशवंत आनंद, दिलीप यादव और आमोद त्रिपाठी के माध्यम से हाई कोर्ट बार एसोसिएशन (एचसीबीए) और डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन (डीबीए), यूपी व्यपारी मंडल और अन्य के द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
ऐसे समय में जब कोविड-19 संकट ने परिवारों के आर्थिक स्थति को प्रभावित किया है, याचिकाकर्ता चिंता व्यक्त करते हैं कि,
"एक ओर स्कूल अभिभावकों के साथ जबरदस्ती कर रहा है और ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रम के नाम पर अभूतपूर्व फीस की मांग कर रहा है और दूसरी ओर वे शुल्क का भुगतान करने के लिए कॉल और मैसेज के माध्यम से नियमित चेतावनी और धमकी जारी कर रहे हैं, कि फीस नहीं जमा करने पर उनके बच्चों को शैक्षणिक सत्र से निलंबित कर दिया जाएगा।
याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए शीर्ष तर्क निम्नलिखित हैं:
उत्तर प्रदेश सरकार ने अप्रैल में राज्य भर के स्कूल प्राधिकारियों को निर्देश दिया था कि तालाबंदी के दौरान अभिभावकों को अग्रिम शुल्क का भुगतान करने के लिए बाध्य न करें। अधिसूचना में आगे कहा गया है कि 2020-21 वर्ष के लिए शुल्क में कोई अतिरिक्त शुल्क या वृद्धि नहीं होगी। इस अधिसूचना की गलत व्याख्या के कारण, निजी गैर-मान्यता प्राप्त शिक्षा संस्थान और विभिन्न स्कूल ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर अनैतिक, गैर-कानूनी, गैर-निर्धारित फीस की मांग कर रहे हैं।
जिस तरह से स्कूलों द्वारा फीस की मांग की जा रही है, वह शिक्षा प्रभाग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा जारी गैर-मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों द्वारा फीस विनियमन के मॉडल तंत्र का उल्लंघन करता है।
ऑनलाइन शिक्षा सेवा कार्यक्रम प्रदान करने के नाम पर नियमित शुल्क की मांग करना न केवल मौलिक अधिकारों बल्कि उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विध्यालय (शुल्क निर्धारण) अध्यादेश, 2018 का स्पष्ट उल्लंघन है।
लाइब्रेरी, स्पोर्ट्स, पार्किंग, कैंटीन, कंप्यूटर और साइंस लैब सेवाओं जैसी सेवाओं का लाभ नहीं लिया जा रहा है, इसके लिए शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए।
ऑनलाइन शिक्षा या घर बैठे शिक्षा के लिए केवल शिक्षण शुल्क लिया जाना चाहिए। ट्यूशन फीस के अलावा या उससे अधिक किसी भी शुल्क की मनमानी करना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
घर पर या ऑनलाइन शिक्षा, वास्तविक शिक्षा जिसमें शारीरिक उपस्थिति की आवश्यकता होती है, की तुलना में सस्ती होती है। इसलिए कोविड-19 से पहले प्रदान की गई शारीरिक शिक्षा के समान शुल्क आरोपित नहीं की जा सकती है।
ऑनलाइन शिक्षा के लिए लगाया जाने वाला शुल्क लगभग 50% तक कम होना चाहिए। इस घटी हुई राशि पर अनुचित शुल्क, कानून की दृष्टि से अन्यायपूर्ण, अनियंत्रित होगा।
उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर, याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय के समक्ष निम्नलिखित प्रार्थनाएं की हैं:
सरकार (राज्य और केंद्र) को समान नीति लाने के लिए एक समिति का गठन करना चाहिए, जब ऑनलाइन या "घर बैठे" शिक्षा के लिए शुल्क लेने की बात आती है।
वैकल्पिक रूप से, न्यायालय अपनी निहित शक्तियों का प्रयोग कर उचित दिशानिर्देशों को लागू करे।
शैक्षिक संस्थानों को ऑनलाइन शैक्षणिक सेवा कार्यक्रम प्रदान करने के नाम पर नियमित शैक्षणिक शुल्क नहीं लेने के लिए निर्देशित किया जा सकता है।
न्यायालय को ट्यूशन फीस के भुगतान में 50% वास्तविक शिक्षण शुल्क में छूट का निर्देश देना चाहिए, और खेल, पुस्तकालय बिजली, बस शुल्क आदि सेवाओं जिनका उपयोग नहीं किया जा रहा है, शुल्क मे छूट दिया जाना चाहिए।
कोर्ट को शैक्षिक संस्थानों को निर्देश देना चाहिए कि वे अभिभावकों को फीस जमा करने के लिए धमकाने या परेशान न करें और शैक्षणिक सत्र से छात्रों को निलंबित करने की धमकी न दें।
याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेन्द्र नाथ सिंह बहस करेंगे।
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