दिल्ली उच्च न्यायालय ने COVID-19 संकट के बीच दैनिक यात्रियों और प्रवासी मजदूरों के लिए पकाया भोजन, सूखा राशन, पानी, आश्रय, कपड़े, दवा आदि जैसी सुविधाएं सुनिश्चित करने वाली एक याचिका में आज नोटिस जारी किए।
याचिका मे दिल्ली सरकार को एकमुश्त वित्तीय सहायता के रूप में सभी दिवंगत श्रमिकों को 10,000 रुपये का भुगतान करने के दिशा निर्देश की मांग भी की गयी है।
सरकार से सभी श्रमिकों और उनके घर लौटने वाले परिवारों के लिए मुफ्त रेल और बस परिवहन प्रदान करने के लिए एक दिशा-निर्देश भी मांगा था।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार से जवाब मांगा था।
इस मामले की अगली सुनवाई 4 मई को होगी।
कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय अभियान समिति है।
याचिका में कहा गया है कि दिल्ली सहित कई भारतीय राज्यों में COVID-19 की दूसरी लहर के कारण नए प्रतिबंधों के मद्देनजर मजदूर अपने मूल राज्यों में वापस आते दिख रहे हैं।
दिल्ली में लॉकडाउन के बाद, कई अन्य लोग आय के स्रोत, आवाजाही के लिए सीमित अवसर और सरकार की सहायता मे अक्षमता से जूझ रहे हैं।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस संकट ने उन कानूनों के कार्यान्वयन की कमी को उजागर किया है जो प्रवासी श्रमिकों के हितों की रक्षा करते हैं।
तदनुसार, यह प्रार्थना की गई थी कि अंतर-राज्य प्रवासी कामगार (रोजगार और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1979 और असंगठित क्षेत्र के श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के तहत दिल्ली सरकार द्वारा दैनिक ग्रामीण और प्रवासी श्रमिकों के अनिवार्य पंजीकरण के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किए जाएं।
याचिकाकर्ता ने यह भी प्रार्थना की कि नोडल अधिकारियों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इन श्रमिकों को भोजन, आश्रय और सभी आवश्यक दवाओं के वितरण पर पूर्ण विवरण युक्त एक वेबसाइट को चालू किया जाए।
याचिकाकर्ता के लिए वकील स्नेहा मुखर्जी उपस्थित हुईं।
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