पूर्वोत्तर राज्यों में हिन्दुओं के लिये अल्पसंख्यक का दर्जा हो: गौहाटी और मेघालय उच्च न्यायालयों में याचिका:

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि राज्य की जनसांख्यिकी के आधार पर अल्पसंख्यक समुदायों को परिभाषित किया जाना चाहिए। याचिका के अनुसार पूर्वोत्तर राज्यों में ईसाई समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा है।
Niam Khasi of Meghalaya|National Herald
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गौहाटी और मेघालय उच्च न्यायालयो में दो जनहित याचिकायें प्रस्तुत की गयी हैं। इनमें टीएमए पाई बनाम कर्नाटक प्रकरण में उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुरूप नगालैंड, मिजोरम और मेघालय में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक समुदाय घोषित करने का अनुरोध किया गया है। (डेलिना खोंगडुप बनाम भारत संघ और पंकज डेका बनाम भारत संघ)

देलिमा खोंगदुप की याचिका मेघालय उच्च न्यायालय में दायर की गयी है जबकि पंकज डेका ने गौहाटी उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है।

दोनों ही मामलों में याचिककर्ताओं ने मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने संबंधी 23 अक्टूबर, 1993 की अधिसूचना को चुनौती दी है।

याचिका में इस तथ्य को उजागर किया गया है कि पूर्वोत्तर राज्य ईसाई बहुल्य हैं।

याचिका में दलील दी गयी है कि अल्पसंख्यकों की गणना राष्ट्रीय स्तर पर संख्या पर नहीं बल्कि राज्यों में उनकी आबादी के आधार पर की जानी चाहिए। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय आंकड़ों के आधार पर गणना राज्य में अल्पसंख्यकों को इसके लाभों से वंचित करती है।

याचिका के अनुसार करदाताओं के धन की बर्बादी हो रही है क्योंकि इन राज्यों में बहुसंख्यक समुदाय अल्पसंख्यक समुदायों के निमित्त योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं।

‘‘अगर प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के अनुसार राज्य में अल्पसंख्कों का आकलन नहीं किया गया तो सही मायने में जो अल्पसंख्यक हैं वे अल्पसंख्यक योजनाओं के लाभ से वंचित होंगे और नगालैंड तथा मिजोरम जैसे राज्यों में अल्पसंख्यों के लिये बनायी गयी योजनाओं का लाभ बहुसंख्यक ईसाई समुदाय को हमेशा मिलता रहेगा।’’
याचिका में कहा गया

याचिका में कहा गया है कि इन क्षेत्रों में अल्पसख्यकों को लाभ प्रदान करने के लिये संविधान की व्याख्या की आवश्यकता है।

याचिका के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 में ‘अल्पसंख्यक’ शीर्षक का इस्तेमाल किया गया है, इसमें इन्हें परिभाषित नहीं किया गया है। इन अनुच्छेद में ‘नागरिकों के वर्ग’ को ‘अल्पसंख्यक’ परिभाषित किया गया है जिसे संविद सभा में हुयी बहस के आधार पर मोटे तोर पर समझना होगा।

याचिका में आगे कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र की अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव की रोकथाम और संरक्षण मामलों की उप समिति ने राज्य की पूरी आबादी में आंकड़ों के आधार पर कम संख्या वाले लोगों को अल्पसंख्यक परिभाषित किया है जो प्रभाव डालने वाली स्थिति में नहीं है और राज्य के शेष हिस्से से कुछ मामलों में भिन्न हैं।

याचिका में कहा गया है कि राज्य स्तर पर भाषाई अल्पसंख्यकों का निर्धारण करने संबंधी टीएमए पाई प्रकरण में ऐतिहासिक निर्णय के मद्देनजर धार्मिक अल्पसंख्यकों की इसी सीमाक्षेत्र के आधार पर गणना करने की आवश्यकता है।

अरूणाचल प्रदेश, मिजोरम, असम, गोवा, जम्मू और कश्मीर, मेघालय, और केरल जैसे देश के राज्यों में ईसाई और मुस्लिम समुदायों की अच्छी खासी आबादी होने पर जोर देते हुये याचिका कहा गया है कि इन राज्यों में असली अल्पसंख्यकों (हिन्दू और दूसरे मूल समूह ) को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।

‘‘नगालैंड और मिजोरम में हिन्दुओं और दूसरे देसी धार्मिक समूहों के वाजिब हिस्से को मनमाने तरीके से इसकी पात्रता नहीं रखने वाले आबादी के तबके हड़प रहे हैं क्योंकि राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान नहीं की गयी है और उन्हें अधिसूचति नहीं किया गया हे।’’
पंकज डेका बनाम भारत संघ में याचिका

याचिकाकर्ताओं ने अल्पसंख्यकों को विनिर्दिष्ट करने संबंधी 1993 की अधिसूचना को चुनौती देते हुये इसे पक्षपातपूर्ण और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर के अधिकार, और अंत:करण की और धर्म के निर्बाध रूप से मानने,आचरण और प्रचार करने के अधिकार की स्वतंत्रता का हनन करने वाला बताया है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि राज्य सुविधाओं, हैसियत और अवसरों में व्याप्त भिन्नता को समाप्त करने के अपने दायित्व का निर्वहन करने मे भी विफल रहा है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि इन्हीं आधारों पर इन राज्यों में हिन्दुओं और दूसरे देसी धार्मिक समूहों के हितों को बढ़ावा देने के लिये यह जनहित याचिका दायर की है।

एक याचिका देलिना खोंगदुप द्वारा प्रस्तुत की गयी है जबकि दूसरी याचिका अधिवक्ता एच तालुकदार के माध्यम से पंकज डेका ने दायर की है।

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Pleas in High Courts of Gauhati and Meghalaya seek minority status for Hindus in North East India

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