SC मे कानून के लिये सरल अंग्रेजी इस्तेमाल के लिये याचिका, ‘अंतहीन मौखिक बहस, शब्दजाल वाले लिखित कथनो का दौर खत्म करना होगा

याचिका में उच्चतम न्यायालय में लिखित कथन के पन्नों की संख्या सीमित करने और मौखिक बहस के लिये समय सीमा निर्धारित करने का अनुरोध किया गया है
SC मे कानून के लिये सरल अंग्रेजी इस्तेमाल के लिये याचिका, ‘अंतहीन मौखिक बहस, शब्दजाल वाले लिखित कथनो का दौर खत्म करना होगा

उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर आम जनता के हित वाले सभी सरकारी नियमों, विनियमों, अधिसूचनाओं, संप्रेषणों को तैयार करते समय इसमें सरल भाषा के इस्तेमाल का अुनरोध किया गया है।

आम आदमी की न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने के इरादे से याचिकाकर्ता ने आम जनता के हित वाले और शिकायतों के समाधान को आसानी से समझ आने वाली भाषा में गाइड और हैण्डबुक्स उपलब्ध कराने का कानून मंत्रालय को निर्देश देने का भी अनुरोध किया है।

याचिकाकर्ता डा सुभाष विजयन, जो अधिवक्ता है, ने अपनी याचिका का आधार इस तथ्य को बनाया है कि अधिकांश अधिवक्ताओं का लेखन (1) शब्दबहुल (2) अस्पष्ट (3) आडंबरपूर्ण और (4) उबाऊ है।

याचिका में कहा गया है,

‘‘यह आम आदमी है जो व्यवस्था से काफी अनभिज्ञ है-वास्तव में वह इससे काफी सजक है। क्यों? क्योंकि वह न तो व्यवस्था को समझता है और न ही कानूनों को। सभी कुछ बहुत ज्यादा जटिल और भ्रामक है। हमारे देश में जिस तरह कानून बनाये जाते हैं, लागू होते हैं उनसे जनता को न्याय तक पहुंच से वंचित करके उनके मौलिक अधिकार का हनन होता है। शीघ्र न्याय और कानून के प्रति जागरूकता न्याय तक पहुंच के अनेक पह‘‘लुओं में से दो पहलू हैं।’’

साधारण भाषा के इस्तेमाल के महत्व को इंगित करते हुये याचिका में कहा गया है,

‘‘यह शब्दों के जाल , घुमावदार भाषा और निरर्थक शब्दों से बचाता है। सूचना के आदान प्रदान के लिये साधारण भाषा का उपयोग अंतत: कार्यक्षमता में सुधार करता है क्योंकि इसे पढ़ने वाले के लिये इसमें अस्पष्टता कम होती है और स्पष्टीकरण और सफाई देने में कम समय लगता हें। यह न्याय तक पहुंच की दिशा में एक कदम है।’’

याचिका में कहा गया है कि दोषपूर्ण तरीके से लिखे और शब्दजाल के साथ तैयार मसौदे और मौखिक बहस में न्यायालय और वकीलों-वादकारियों का बहुत ज्यादा कीमती समय, ऊर्जा और संसाधन बर्बाद होती है और संसाधनों का प्राथमिकता और निपुणता से इस्तेमाल करने की जरूरत है।

याचिका के अनुसार, ‘‘यदि इस न्यायालय को सही मायने में जनता की अदालत बनना है न कि चुनिन्दा खुशनसीबों की अदालत- अंतहीन मौखिक बहस और वाद-विवाद में शब्दजाल खत्म करना होगा।’’

डा॰ विजयन ने बार काउन्सिल ऑफ इंडिया को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया है कि वह देश के सभी विधि स्कूलों में एलएलबी के तीन और पांच साल के पाठ्यक्रमों में ‘साधारण अंग्रेजी में विधिक लेखन’ का अनिवार्य विषय लागू करे।

उन्होंने अपनी याचिका में उच्चतम न्यायालय में लिखित प्रलेख के लिये पेज की सीमा और मौखिक बहस के लिये समय सीमा निर्धारित करने का भी अनुरोध किया है।

याचिका में कहा गया है, ‘‘ सुझाव के रूप में -प्रत्येक पक्ष के लिये- आवेदन पर मौखिक बहस के 5 से 10 मिनट, अल्प मामलों में बहस के लिये 20 मिनट, औसत मामलों के लिये 30 मिनट और बडे मामलों के लिये 40 से 60 मिनट का समय निर्धारित किया जाये। सांविधानिक और सार्वजनिक महत्व के मामलों में अपवाद स्वरूप मौखिक बहस की समय सीमा में ढील देकर इसे एक घंटे से आगे बढ़ाया जा सकता है।’’

यह याचिका सुनवाई के लिये 15 अक्टूबर को सूचीबद्ध होने की उम्मीद है।

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"The era of never-ending oral arguments and verbose pleadings has to go", Plea in Supreme Court seeks use of plain English for laws

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