
राजस्थान उच्च न्यायालय ने हाल ही में राजस्थान सरकार से उस याचिका पर जवाब मांगा है जिसमें 2023 के एक परिपत्र को चुनौती दी गई है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को क्षैतिज आरक्षण लाभ देने के बजाय उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सदस्यों के रूप में वर्गीकृत करता है [गंगा कुमारी बनाम राजस्थान राज्य]।
याचिकाकर्ता, एक ट्रांसवुमन ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि ट्रांस व्यक्तियों को ओबीसी (जिसमें ऊर्ध्वाधर आरक्षण शामिल है) के रूप में वर्गीकृत करने वाले परिपत्र को रद्द किया जाए और इसके बजाय राज्य को उन्हें क्षैतिज आरक्षण लाभ देने का आदेश दिया जाए।
20 जनवरी को मुख्य न्यायाधीश मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति नूपुर भाटी की पीठ ने राज्य को दो सप्ताह में याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
न्यायालय के समक्ष दायर याचिका में राजस्थान सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी 2023 के परिपत्र को चुनौती दी गई है, जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ओबीसी श्रेणी में रखा गया है।
याचिकाकर्ता गंगा कुमारी के अनुसार, उक्त परिपत्र प्रतिकूल और असंवैधानिक है।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि एनएएलएसए बनाम भारत संघ के 2014 के फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के रूप में मान्यता देने का आह्वान किया था और कहा था कि ऐसे नागरिकों को शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक नियुक्तियों में आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि 2023 का परिपत्र एनएएलएसए फैसले की भावना का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि यह परिपत्र असमानता को भी कायम रख सकता है। उदाहरण के लिए, एक ट्रांस व्यक्ति जो पहले से ही एक उत्पीड़ित जाति का हिस्सा है, वह क्षैतिज आरक्षण की योजना के तहत मिलने वाले विशेष लाभों से वंचित हो सकता है।
याचिका में कहा गया है कि "परिपत्र महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी करता है, जिसमें ऐसे मामले भी शामिल हैं जहां अनुसूचित जाति या ओबीसी परिवार में पैदा हुए ट्रांसजेंडर व्यक्ति को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए विशेष लाभ से वंचित होना पड़ता है, जिससे असमानता बनी रहती है।"
यह याचिका अधिवक्ता धीरेंद्र सिंह सोढ़ा और विवेक माथुर के माध्यम से दायर की गई है। अधिवक्ता उदित माथुर ने भी उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया।
अतिरिक्त महाधिवक्ता प्रवीण खंडेलवाल, बीएल भाटी और राजेश पंवार के साथ अधिवक्ता आयुष गहलोत और महेश थानवी राज्य की ओर से पेश हुए।
[आदेश पढ़ें]
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