1975 मे देश में लगे आपात काल को ‘असंवैधानिक’ घोषित करने के लिये वयोवृद्धा की सुप्रीम कोर्ट से गुहार, हरीश साल्वे करेंगे पैरवी

वीरा सरीन ने अपनी याचिका में कहा है कि उन्हें और उनके पति को मनमाने और अनुचित तरीके से जेल में डालने के नजरबंदी के आदेशों की वजह से उन दोनों को देश से छोड़ने के लिये मजबूर होना होना पड़ा
EmergencyNewspapers / Ragu Rai
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भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किये जाने के 45 साल और इसे हटाये जाने के 43 साल बाद उच्चतम न्यायालय में 94 वर्षीय वृद्धा ने एक याचिका दायर कर इसे असंवैधानिक घोषित करने और 25 करोड़ रूपए का मुआवजा दिलाने का अनुरोध किया है।

याचिकाकर्ता वीरा सरीन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे के पेश होने की संभावना है।

याचिका में कहा गया है कि सरीन के पति के खिलाफ मनमाने और अन्यायपूर्ण तरीके जारी नजरबंदी के आदेश के तहत जेल में ठूंसे जाने के भय के कारण वह और उनके पति देश छोड़ने के लिये मजबूर हो गये थे।

अधिवक्ता अनन्या घोष के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि उनके दिवंगत पति को विदेशी मुद्रा और तस्करी गतिविधियां रोकथाम कानून, 1974 (कोफेपोसा) और सफेमा कानून के तहत ‘फंसाया’ गया था।

Harish Salve
Harish Salve

आपातकाल लागू होने से पहले उनके दिवंगत पति का दिल्ली के करोल बाग और केजी मार्ग पर स्वर्ण कलाकृतियों, रत्न और कलाकृतियों आदि का शानदार कारोबार था।

याचिकाकर्ता ने दावा किया है, ‘‘उनकी अचल संपत्ति जब्त कर ली गयी थी। चल संपत्ति, जिसमे करोड़ों रूपए की कलाकृतियां, रत्न, कालीन, पेंटिंग्स, हाथी दांत के सामान और मूर्तियां आदि शामिल थी, भी जब्त कर ली गयी थी और इन्हें आज तक उन्हें सौंपा नहीं गया।’’

याचिकाकर्ता के अनुसार वर्ष 2000 में उनके पति के निधन के बाद वह अकेले ही आपातकाल के दौरान उनके पति के खिलाफ शुरू की गयी सारी कानूनी कार्यवाही का सामना कर रही हैं।

याचिका में आरोप लगाया गया है, ‘‘कई बार तो उनके घर के दरवाजे पर दस्तक देकर पुलिस और दूसरे अधिकारी घर के भीतर आते थे और घर में बचा खुचा कीमती सामान लेकर उसे अकेला छोड़ जाते थे।’’

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ के समक्ष जब सोमवार को यह मामला आया तो याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता नीला गोखले ने सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया और कहा कि अगली तारीख पर वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे इसमें बहस करेंगे।

हालांकि, पहली नजर में न्यायमूर्ति कौल को इतने सालों पर बाद इस तरह के सवालों के साथ दायर याचिका में कोई मेरिट नजर नहीं आया।

न्यायमूर्ति कौल ने याचिका अगले सोमवार के लिये सूचीबद्ध करते हुये टिप्पणी की, ‘‘इतने सालों बाद यह किस तरह की रिट याचिका है। 30-35 साल बाद इस याचिका का क्या मतलब है, बहरहाल।’’

जुलाई, 2020 के सरकार के एक आदेश के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1999 से सरीन और उनके दूसरे उत्तराधिकारियों को केजी मार्ग, नयी दिल्ली की संपत्ति के किराये की बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था।

यही नहीं, उच्च न्यायालय ने दिसंबर, 2014 में कहा था कि साफेमा के तहत की गयी कार्यवाही अधिकार क्षेत्र के बाहर थी और यह अमान्य थी।

याचिका में दलील दी गयी है, ‘‘याचिकाकर्ता वृद्धावस्था में है और उसकी यही इच्छा है कि मानसिक आघात का यह मामला उनके जीवनकाल में बंद हो और उसके उत्पीड़न का संज्ञान लिया जाये, इसीलिए यह याचिका है।’’

[आदेश पढ़ें]

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Plea in Supreme Court by nonagenarian to declare 1975 national emergency "unconstitutional"; Harish Salve to appear

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