क्या मृत पशुओं की खाल रखना अपराध है: बंबई उच्च न्यायालय ने दिया जवाब

उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने कहा है कि चूंकि मृत पशुओं की खाल रखने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, इसलिए इसे अपराध नहीं कहा जा सका है।
Justice VM Deshpande, Justice AS Kilor
Justice VM Deshpande, Justice AS Kilor

बंबई उच्च न्यायालय ने गौवंश की 187 खाल ले जा रहे व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी निरस्त करते हुये हाल ही में अपनी एक व्यवस्था में कहा है कि मृत पशुओं की खाल रखने पर कानून में कोई पाबंदी नहीं है।

गोवंश की 187 खाल रखने के आरोपी शफीकुल्ला खा ने अपने खिलाफ महाराष्ट्र पशु संरक्षण कानून, 1976 और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत दर्ज प्राथमिकी निरस्त कराने के लिये बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में याचिका दायर की थी।

न्यायमूर्ति वीएम देशपांडे और न्यायमूर्ति एएस किलोर की पीठ इस नतीजे पर पहुंची की मृत पशुओं की खाल रखने पर कानून में कोई प्रतिबंध नहीं है, इसलिए इसमें कोई अपराध नहीं बनता है और इसके साथ ही उसने खा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी निरस्त कर दी।

पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘‘मृत पशुओं की खाल करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है और इस तरह के प्रतिबंध के अभाव में, हम संतुष्ट है कि इस मामले में कोई अपराध नहीं बनता है।’’

खा पर महाराष्ट्र पशु संरक्षण कानून, 1976 की धारा 5ए (राज्य के भीतर या बाहर वध करने के लिये मवेशियों के स्थानांतरण पर प्रतिबंध), धारा 5बी (वध के लिये पशुओं की खरीद और बिक्री निषेध), 5सी (किसी भी वध किये गये पशु का मांस रखना), 9 , 9ए (धारा 5ए, 5बी, और 5सी के उल्लंघन पर दंड) के तहत दंडनीय अपराध का मामला था।

मृत पशुओं की खाल रखने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
बंबई उच्च न्यायालय

न्यायालय ने टिप्पणी की कि इस मामले में महाराष्ट्र पशु संरक्षण कानून, 1976 के प्रावधानों का उल्लंघन कर वध करने के इरादे से गाय, बैल या सांड को खरीदने, बेचने, या उन्हें ले जाने अथवा निर्यात करने से संबंधित कोई आरोप नहीं हे। अत: इस कानून की धारा 5 ए या 5 बी के तहत खा के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है।

न्यायालय ने कहा कि जहां तक यह सवाल है कि क्या खा पर धारा 5सी के तहत आरोप लगाया जा सकता है, तो पहले ‘खाल’ और ‘मांस’ में अंतर पर विचार करने की आवश्यकता है।

न्यायालय ने पाया कि ‘खाल’ और ‘मांस’ में अंतर होता है। ‘खाल’ रीढ़वाले पशुओं के अंगों का बाहरी मुलायम आवरण होता है जबकि ‘मांस’ में पशु के शरीर की मांसपेशियां और चर्बी होता है।

पीठ ने कहा कि धारा 5सी में प्रयुक्त शब्द ‘मांस’ में पशु की ‘खाल’ शामिल नही है।

खा के खिलाफ दर्ज मामले के प्रावधानों की गहराई से विवेचना के बाद न्यायालय इस बात से संतुष्ट थ कि मृत पशुओं की खाल रखना प्रतिबंधित नहीं है और इस तरह के प्रतिबंध के अभाव में इस मामले में कानून की धारा 5ए, 5बी, 5सी के तहत कोई अपराध नहीं बनता है और इसके परिणामस्वरूप धारा 9 और 9ए भी लागू नहीं होगी।

भारतीय दंड संहिता की धारा 188 (लोक सेवक के आदेश की अवज्ञा) के आरोप में बारे में न्यायालय ने कहा कि इसे रखने पर न तो कानून में कोई प्रतिबंध है और न ही किसी प्रभावी कानून के प्रावधान का हनन किया गया है।

न्यायालय ने इस तथ्य के मद्देनजर कहा कि खा के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है और उसने आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी निरस्त कर दी।

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Does possession of skin of dead animals constitute an offence? Bombay High Court answers

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