उपभोक्ता कानून के तहत उपलब्ध उपाय के साथ ही रेरा मे प्रदत्त विकल्प का भी सहारा लिया जा सकता है: पंजाब & हरियाणा उच्च न्यायालय

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) कानून के पहलुओं पर यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की
Punjab and Haryana High Court
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पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने 16 अक्टूबर को सुनाये गये दो फैसलों में रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) कानून (रेरा) के महत्वपूर्ण पहलुओ के बारे में स्थिति स्पष्ट की।

न्यायमूर्ति डा एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति अवनीश झिंगन की पीठ ने ये फैसले सुनाये।

इन फैसलों में अन्य बिन्दुओं के साथ ही निम्न सवालों के भी जवाब दिये गये

  1. क्या रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण और दूसरे न्याय करने वाले अधिकारियों के अधिकार के बीच ओवर लैप है?

  2. क्या रेरा के तहत प्रदत्त उपाय उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत उपलब्ध उपायों के साथ जारी रखा जा सकता है?

  3. क्या प्राधिकरण एक सदस्यीय हो सकता है?

फैसला 1 : एक्सपीरियन डेवलपर्स प्रा लि बनाम हरियाणा एव अन्य

क्या रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण और दूसरे न्याय करने वाले अधिकारियों के अधिकार के बीच ओवर लैप है?

उच्च न्यायालय ने धारा 71 के साथ रेरा की धारा 12, 14, 18 और 19 के सामंजस्य पूर्ण अर्थ निकालते हुये व्यवस्था दी कि आवास परियोजना के प्रमोटर द्वारा विलंब किये जाने की स्थिति में न्याय करने वाला अधिकारी मुआवजा और ब्याज की देय राशि का निर्धारण कर सकता है।

न्यायालय ने कहा कि धारा 71 न्याय करने वाले अधिकारी के अधिकार का निर्धारण करती है और इसके अनुसार न्याय करने वाले अधिकारी को मुआवजा या ब्याज का निर्धारण करने का अधिकार है। न्याय करने वाले अधिकारी के पास मामला पहुंचने पर सिर्फ प्रमोटर ही उसके पास जा सकता है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर मकान खरीदने वाला इसके आगे भी राहत चाहता है तो उसे प्राधिकरण के पास जाना होगा जिसे इस कानून की धारा 31, 34(एफ), धारा 35, 36 और 37 के तहत व्यापक अधिकार प्राप्त है। इस कानून के तहत प्रमोटर, मकान के आबंटी या रियल एस्टेट एजेन्ट के खिलाफ, जैसी आवयकता हो, राहत के लिये आवेदन किया जा सकता है। न्यायालय ने कानून की व्याख्या करते हुये कहा कि इसमे प्राधिकरण को अदालत जैसा बनाया है और इसे निर्देश तथा अंतरिम आदेश देने के लिये अधिकृत किया है।

न्यायालय ने साथ ही यह भी कहा कि यह उच्च न्यायालय का विकल्प नहीं है भले ही उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को इसका अध्यक्ष (जसे कानून की जानकारी नहीं है) नियुक्त करने का अधिकार है। न्यायालय ने कहा कि इस कानून में प्राधिकरण को अपीली अधिकरण और उच्च न्यायाधीश का अधीनस्थ बनाया गया है। इसलिए इसके आदेश न्यायिक समीक्षा के दायरे में आते हैं।

न्यायालय ने कहा कि इस कानून के अंतर्गत न्याय करने वाले अधिकारी के लिये सेवानिवृत्त या पीठासीन जिला न्यायाधीश होना अनिवार्य है।

न्याय करने वाल अधिकारी और प्राधिकरण के अधिकारों में टकराव की दलीलों का समाधान करते हुये न्यायालय ने कहा कि सिर्फ मुआवजे की मांग करने वाला व्यक्ति न्याय करने वाले अधिकारी के पास जायेगा। न्याय करने वाला अधिकारी ही मुआवजे का निर्धारण करने से पहले यह निर्णय करेगा कि क्या प्रमोटर और मकान खरीदार या आबंटी के बीच कोई समझौता हुआ था।

बहुउद्देश्यीय राहत के मामले में न्यायालय ने कहा कि मकान का खरीदार प्राधिकरण के पास जा सकता है, जो मुआवजे से संबंधित सवाल न्याय करने वाले अधिकारी के पास भेजेंगे। न्यायालय ने कहा कि प्राधिकरण को मुआवजे का सीमित सवाल न्याय करने वाले अधिकारी के पास भेजने से पहले उसे इस सवाल का निर्धारण करना होगा कि क्या आबंटी और रियल एस्टेट प्रमोटर या उसके एजेन्ट के बीच वैध करार है।

क्या रेरा के अंतर्गत राहत के साथ ही उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत भी मामला जारी रखा जा सकता है?

पीठ ने रेरा की धारा 88 के प्रावधान का जिक्र करते हुये कहा कि रेरा और उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत साथ साथ मामला जारी रखा जा सकता है।

रेरा की धारा 88 में स्पष्ट किया गया है कि यह प्रावधान प्रचलित किसी अन्य कानून के प्रावधानों के अतिरिक्त है।

हालांकि, न्यायालय ने इस सवाल पर, विशेषरूप से रहत के लिये न्याय करने वाले अधिकारी के लंबित मामले के पहलू पर, आगाह भी किया है।

न्यायालय ने कहा है कि अगर शिकायतकर्ता उपभोक्ता विवाद निबटान मंचसे अपनी शिकायत वापस ले लेता है और इसे न्याय करने वाले अधिकार के समक्ष पेश करता है तो वह रिफंड और दूसरी राहतें प्राप्त करने की बजाये सिर्फ मुआवजे/ब्याज का ही हकदार होगा।

फैसला 2: जनता लैंड प्रमोटर्स प्रा लि बनाम भारत सरकार एवं अन्य

क्या प्राधिकरण एक सदस्यीय हो सकता है?

न्यायालय ने अपने व्यवस्था में कहा कि रियल एस्टेट (विनयमन और विकास) कानून में ऐसा कोई प्रावधान नही है जो यह कहता हो कि प्राधिकरण या अपीली अधिकरण अर्द्धशासी न्यायिक या न्याय निर्णय का काम एकल सदस्य के रूप में करेगा।

न्यायालय ने रेरा कानून की धारा 20(2), 21 और 29 के निष्कर्षो के आधार पर कहा कि प्राधिकरण की न्याय निर्णय की शक्तियां कानून में स्पष्ट प्रावधान के बगैर किसी एक सदस्य में निहित नहीं की जा सकती हैं।

न्यायालय ने कहा, ‘‘प्रावधान एकदम स्पष्ट है कि प्राधिकरण बहुसदस्यीय संस्था है और अगर इसमें अध्यक्ष और कम से दो पूर्णकालिक सदस्य नही हों तो इसे प्राधिकरण नही होगी। इसे कानून की धारा 29 के साथ पढ़ना होगा जो प्राधिकरण की बैठकों के संबंध में हैं।’’

इसी तरह, न्यायालय ने धारा 43 का जिक्र करते हुये कहा कि अपीली अधिकरण में कम से कम दो सदस्य होंगे और इनमें से एक सदस्य न्यायिक तथा दूसरा तकनीकी या प्रशासनिक सदस्य होगा।

न्यायालय ने कहा, ‘‘अपीली अधिकरण की एक सदस्यीय पीठ द्वारा पारित कोई भी आदेश कानून की नजर में अमान्य होगा। ’’

क्योंकि मूल आदेश और अपीली अधिकरण का आदेश एक सदस्यीय पीठ द्वारा ही दिया गया है। न्यायालय ने इसके साथ ही इस मामले को फिर से विचार के लिये प्राधिकरण के पास भेज दिया।

न्यायालय ने पंजाब रेरा के उस नियम को भी अमान्य घोषित कर दिया जिसमें एक सदस्यीय पीठ को न्याय निर्णय के अधिकार दिये गये थे।

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RERA remedies can be pursued along with those under Consumer law, Regulatory Authority cannot be single member: Punjab & Haryana High Court

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