उच्चतम न्यायालय ने पत्रकार अर्णब गोस्वामी की याचिका पर आज महाराष्ट्र विधान सभा को नोटिस जारी किया। अर्णब ने इस याचिका में विशेषाधिकार के कथित हनन के लिये उन्हें जारी कारण बताओ नोटिस को चुनौती दी है।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने टिप्पणी की कि यह स्पष्ट नहीं है कि क्या महाराष्ट्र विधान सभा की विशेषाधिकार समिति ने कारण बताओ नोटिस पर विचार किया है और क्या गोस्वावी को सफाई देने के लिये समिति के समक्ष पेश होना चाहिए।
गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि उन्होंने विधान सभा के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी है क्योंकि विशेषाधिकार हनन के लिये किसी को भी समन करने का अधिकार विधान सभा के बाहर नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘विधान सभा का विशेषाधिकार सदन के दायरे से बाहर सिर्फ इसलिए नहीं जा सकता कि आपने राज्य सरकार के लिये कटु वचनों का प्रयोग किया है। एक दिलचस्प सवाल है कि क्या संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 विशेषाधिकार प्रस्ताव से अधिक महत्वपूर्ण है। एन राम का मामला एकदम यही है जो इस समय सात न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष विचाराधीन है।’’
साल्वे ने यह भी दलील दी कि अगर सदन या उसके किसी सदस्य के कामकाज में बाधा डाली गयी हो तभी विशेषाधिकार हनन का सवाल उठता है।
मुख्य न्यायाधीश ने इस पर टिप्पणी की,
‘‘हम इसकी गंभीरता समझते हैं। लेकिन यह सिर्फ कारण बताओ नोटिस है और ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं अधिकार क्षेत्र के बारे में बात कर रहा हूं। विधान सभा का अधिकार क्षेत्र सदन के आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। इनाडु मामले में उनके खिलाफ प्रस्ताव पर रोक लगायी गयी थी और वह अवकाश पर चले गये। विशेषाधिकार प्रस्ताव पर विशेषाधिकार समिति विचार करती है। समिति द्वारा इस बारे में आरोप होना चाहिए।’’
इस पर साल्वे ने कहा कि विधान सभा सचिव ने कारण बताओ नोटिस भेजा है।
न्यायालय ने साल्वे से यह भी पूछा कि विशेषाधिकार का नोटिस अवमानना से किस तरह भिन्न है और कहा कि अपने कथन के समर्थन में नियम पेश करें।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अगर आप किसी व्यक्ति की आलोचना करते हैं तो क्या इसे उसकी कार्य क्षमता पर सवाल नहीं उठाते हैं?’’
साल्वे ने दलील दी कि गोस्वामी मुख्यमंत्री पर आरोप लगा सकते हैं या उन्हें बदनाम कर सकते हैं। इसके लिये विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव नहीं बल्कि मानहानि का मामला दायर करना होगा।
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि अभी तक कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया गया है और गोस्वामी को सिर्फ जवाब देने के लिये कहा गया है।
इस मामले में अब अगले सप्ताह सुनवाई होगी।
साल्वे ने इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख से पहले टीवी ऐंकर के खिलाफ कार्रवाई की आशंका व्यक्त करते हुये अंतरिम संरक्षण का अनुरोध किया लेकिन न्यायालय ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की।
महाराष्ट्र विधान सभा के दोनों सदनों में शिव सेना द्वारा अर्णब के खिलाफ प्रस्ताव पेश किये जाने के बाद उन्हें 60 पेज का विशेषाधिकार नोटिस दिया गया है।
अगर कोई व्यक्ति या प्राधिकारी संबंधित सदन या सदन या इसकी समिति के सदस्य के विशेषाधिकार या अधिकार या उसे प्राप्त छूट का हनन करता है तो ऐसे मामले में विशेषाधिकार का प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। यह सदन फैसला करता है कि यह विशेषाधिकार हनन या अवमानना है या नहीं और यही इसकी सजा के बारे में भी निर्णय करता है।
इस नोटिस के जवाब में गोस्वामी ने अपने चैनल रिपब्लिक टीवी पर एक बयान जारी किया कि वह उद्धव ठाकरे और दूसरे निर्वाचित प्रतिनिधियों से सवाल करते रहेंगे और उन्होंने इस नोटिस को चुनौती देने का फैसला किया है।
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