पति द्वारा यौन संबंध बलात्कार नहीं, चाहे वह बलपूर्वक या पत्नी की इच्छा के विरुद्ध हो: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय

कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 376 यह स्पष्ट करती है कि किसी पुरुष द्वारा अपनी ही पत्नी (नाबालिग नहीं) के साथ यौन संबंध या यौन क्रिया बलात्कार नहीं है।
Chhattisgarh High Court
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यह देखते हुए कि वैवाहिक बलात्कार को भारतीय कानून में मान्यता नहीं है या अपराध नहीं माना जाता है, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक व्यक्ति को उसकी पत्नी की शिकायत पर बलात्कार के मुकदमे का सामना करने से बरी कर दिया है।

न्यायमूर्ति एनके चंद्रवंशी ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 (जो "बलात्कार के अपराध" को परिभाषित करती है) के अपवाद 2 में कहा गया है कि यदि एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी जिसकी उम्र पत्नी की उम्र पंद्रह वर्ष से कम नहीं है, के साथ यौन संबंध या यौन कार्य बलात्कार नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान यह स्पष्ट करता है कि एक पुरुष द्वारा अपनी ही पत्नी (नाबालिग नहीं होने के कारण) के साथ संभोग या यौन क्रिया बलात्कार नहीं है। कोर्ट ने फैसला सुनाया,

"इस मामले में शिकायतकर्ता आवेदक संख्या 1 की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है इसलिए आवेदक संख्या 1/पति द्वारा उसके साथ यौन संबंध या कोई भी यौन कृत्य बलात्कार का अपराध नहीं माना जाएगा, भले ही वह बलपूर्वक या उसकी इच्छा के विरुद्ध हो।"

इस प्रकार, धारा 376 आईपीसी के तहत पति के खिलाफ आरोपित आरोप को गलत और अवैध माना गया।

अदालत ने कहा, "इसलिए, वह आईपीसी की धारा 376 के तहत आरोप से मुक्त होने का हकदार है।"

हालांकि, पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ धारा 498 ए (महिलाओं के प्रति क्रूरता से संबंधित) और 377 (अप्राकृतिक अपराध, "प्रकृति के आदेश" के खिलाफ शारीरिक संभोग) के तहत मामले में आरोप लगाए गए थे।

अदालत पति और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा पहले आवेदक की पत्नी की शिकायत पर इन सभी आरोपों को तय करने को चुनौती देने वाली आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

कोर्ट को बताया गया कि, पत्नी ने आरोप लगाया था कि शादी के कुछ दिनों बाद उसके साथ क्रूरता, दुर्व्यवहार और दहेज प्रताड़ना का शिकार हुयी। अन्य आरोपों के अलावा, उसने यह भी आरोप लगाया कि उसके पति ने उसके विरोध के बावजूद उसकी योनि में अपनी उंगलियां और मूली डाल दी थी और उसके साथ अप्राकृतिक शारीरिक संबंध किया। विवाद को निपटाने के प्रयास व्यर्थ गए।

धारा 377 आईपीसी के तहत तय किए गए आरोप में कोई दोष नहीं मिलने पर कोर्ट ने कहा,

"...जहां अपराधी का प्रमुख इरादा अप्राकृतिक यौन संतुष्टि प्राप्त करना है, बार-बार पीड़ित के यौन अंग में किसी वस्तु को सम्मिलित करना और परिणामस्वरूप यौन सुख प्राप्त करना, ऐसा कार्य प्रकृति के आदेश के खिलाफ एक शारीरिक संभोग के रूप में गठित होगा और ऐसा कार्य भारतीय दंड सहिंता की धारा 377 के तहत अपराध के घटक को आकर्षित करेगा।"

धारा 498 ए, आईपीसी के तहत लगाए गए आरोपों को बनाए रखने के लिए, कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता-पत्नी द्वारा क्रूरता के बारे में लिखित रिपोर्ट और बयान थे, जिसका उसके माता-पिता ने समर्थन किया था।

कोर्ट ने कहा, "उन तथ्यों को उनके पड़ोसी गवाहों ने अपने पुलिस बयानों में भी बताया है। इसलिए, मुझे आवेदकों के खिलाफ भारतीय दंड सहिंता की धारा 498-A/34 के तहत आरोप तय करने में कोई दोष नहीं लगता है।"

एक संबंधित नोट पर, केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में फैसला सुनाया कि वैवाहिक बलात्कार भारतीय कानून के तहत एक आपराधिक अपराध नहीं है, लेकिन यह क्रूरता की श्रेणी में आता है और इसलिए एक पत्नी को तलाक का अधिकार मिल सकता है।

[आदेश पढ़ें]

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Sexual intercourse by husband not rape, even if it was by force or against wife's wish: Chhattisgarh High Court

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