मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि सदियों से अनुसूचित जाति के समुदायों के सदस्यों को प्रताड़ित किये जाने पर हमें अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि इस स्थिति में आज मामूली सा बदलाव हुआ है।
न्यायालय ने एक कब्रिस्तान के लिये सड़क नहीं होने की वजह से अनुसूचित जाति के लोगों को हो रही दिक्कतों के बारे में एक समाचार पत्र में प्रकाशित खबर के आधार पर स्वत: शुरू की गयी कार्यवाही के दौरान यह तल्ख टिप्पणी की।
तमिल दैनिक दिनाकरण के 21 दिसंबर के संस्करण में प्रकाशित खबर के अनुसार कब्रिस्तान जाने के लिये सड़क नहीं होने की वजह से इस समुदाय के लोग मेलूर तालुक के मरुथुर कालोनी में खड़ी फसल के खेतों से होकर जाने के लिये मजबूर हैं।
न्यायमूर्ति एन किरुबकरण और न्यायमूर्ति बी पुगलेंधी की पीठ ने अनुसूचित जाति के के लोगों को हो रही परेशानियों पर अपनी कड़ी नाराजगी व्यक्त की। न्यायाधीशों ने अपने आदेश में कहा,
‘‘सदियों से अनुसूचित जाति के लोगों को प्रताड़ित करने और उनके साथ भेदभाव करने के लिये हमे अपने सिर शर्म से झुकालेने चाहिए। आज भी, उनके साथ ठीक व्यवहार नहीं हो रहा है और उनके प्रति अपराध हो रहे हैं और उन्हें बुनियादी सुविधायें भी नहीं मिल रही हैं।’’
न्यायालय ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों का उत्पीड़न रोकने और उनकी गरिमा सुनिश्चित करने के लिये ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार की रोकथाम) कानून, 1989 बनाया गया था।
न्यायालय ने कहा कि कानून का कुछ लोग दुरुपयोग करते हो, विशेषकर जो सरकारी नौकरियों में है, वे अपवाद हैं।
इस मामले में पीठ ने सड़क नहीं होने की वजह से मृतकों को अंतिम संस्कार के लिये खेतों में खड़ी फसल के बीच से ले जाने के लिये मजबूर अनुसूचित जाति के सदस्यों की परेशानियों का जिक्र करते हुये कहा कि इससे उन्हें अनावश्यक परेशानियां हो रही हैं।
न्यायालय ने कहा कि जीवित व्यक्तियों को ही नहीं बल्कि मृत शरीर को भी गरिमा प्रदान की जानी चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘अनुसूचित जाति के लोगों के कब्रिस्तान जाने के लिये सड़क होनी चाहिए। यह समाचार सिर्फ यही दर्शाता है कि कब्रिस्तान जाने के लिये कोई ठीक रास्ता नहीं है। इसलिए, यह न्यायालय इस बारे में समाचार पत्र में प्रकाशित खबर का जनहित याचिका के रूप में स्वत: संज्ञान लेने के लिये सर्वथा उचित पा रहा है।’’
न्यायालय ने राज्य के मुख्य सचिव आदि द्रविदार और आदिवासी कल्याण विभाग, राज्य के राजस्व विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव और राज्य के नगर प्रशासन और जल आपूर्ति विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को स्वत: मामले में पक्षकार बनाते हुये उनसे निम्न सवालों के जवाब मांगे हैं:
तमिलनाडु राज्य में अनुसूचति जाति की कितनी बस्तियां हैं?
क्या अनुसूचित जाति के सभी घरों में पीने के पानी, स्ट्रीट लाइट और शौचालय की सुविधायें हैं और क्या कब्रिस्तानों के लिये सड़कें हैं?
कितनी बस्तियों के कब्रिस्तानों के लिये सड़के नहीं हैं?
कब्रिस्तानों के लिये सड़क बिछाने के लिये भूमि अधिग्रहीत करने सहित क्या क्या कदम उठाये गये हैं?
अनुसूचित जातियों की बस्तियों में कब तक बिजली, पानी और शौचालय की सुविधा के साथ ही कब्रिस्तानों के लिये सड़क उपलब्ध करा दी जायेगी?
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें