सिद्दीकी कप्पन: सुप्रीम कोर्ट पहले के आदेश की ‘अनुचित रिपोर्टिंग’ से अप्रसन्न, सुनवाई स्थगित

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि ‘‘इससे उनका कोई सबंध नहीं’’ और ‘‘अनुचित रिपोर्टिंग रोजाना हो रही है।’’
सिद्दीकी कप्पन: सुप्रीम कोर्ट पहले के आदेश की ‘अनुचित रिपोर्टिंग’ से अप्रसन्न,  सुनवाई स्थगित

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की हिरासत को चुनौती देने वाले मामले की मीडिया रिपोर्टिंग पर आपत्ति की।

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा कि न्यायालय द्वारा कप्पन को राहत देने से इंकार करने के मीडिया की रिपोर्ट में दावे ‘अनुचित’ थे।

सीजेआई बोबडे ने कहा, ‘‘हमारे आदेश के बारे में बहुत ही अनुचित रिपोर्टिंग थी। यह कहा कि हमने आपको राहत देने से इंकार किया।’’

याचिकाकर्ता केरल यूनियन फॉर वर्किग जर्नलिस्ट्स की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि ‘‘इससे उनका कोई लेना देना नहीं है’’ ओर यह कि ‘‘अनुचित रिपोर्टिंग रोजाना होती है।’’

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश से सहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा,

‘‘जी हां, गलत रिपोर्टिंग थी। ऐसी रिपोर्ट पर स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।’’

इस मामले में 16 नवंबर को सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने उप्र सरकार से जवाब मांगते हुये मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि इस मामले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेजा जा सकता है क्योंकि वह अनुच्छेद 32 की याचिका को प्रोत्साहन नहीं देना चाहता।

सीजेआई बोबडे ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से सोमवार को सवाल किया था, ‘‘आप उच्च न्यायालय क्यों नहीं गये।’’

सिब्बल ने कहा था कि कि कप्पन को अपने वकील से भी मिलने नहीं दिया जा रहा है। इसके बाद ही न्यायालय ने उप्र सरकार से जवाब मांगा था।

न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई अंतत: उस समय स्थगित कर दी जब सालिसीटर मेहता ने पीठ को सूचित किया कि कप्पन की वकीलों से मुलाकात को लेकर कोई आपत्ति नहीं है।

पत्रकार कप्पन समाचार पोर्टल www.azhimukham.com के लिये काम करते हैं और उन्हें उप्र में हाथरस के निकट एक टोल प्लाजा से गिरफ्तार किया गया था जब वह 19 वर्षीय दलित महिला से कथित सामूहिक बलात्कार और बाद में उसके अंतिम संस्कार की घटना की रिपोर्टिंग के लिये जा रहे थे। उसे गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया है।

केरल यूनियन फॉर वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने कप्पन को हिरासत में लिये जाने को चुनौती देते हुये उच्चतम न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। याचिका में दावा किया गया कि संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 में प्रदत्त् उसके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है।

राज्य सरकार ने शुक्रवार को दाखिल हलफनामे में न्यायालय से कहा कि कप्पन, जो पापुलर फ्रण्ट ऑफ इंडिया का कार्यालय सचिव है, हाथरस में सांप्रदायिक और जातीय तनाव पैदा करने का प्रयास कर रहा था।

सालिसीटर जनरल मेहता ने कहा कि कप्पन को गिरफ्तार किया गया और सक्षम अदालत ने उसे हिरासत में दिया और उसकी जमानत याचिका पर नौ दिन सुनवाई हुयी।

मेहता ने कहा, ‘‘उन्हें उच्च न्यायालय जाना चाहिए।’’

इस पर सिब्बल ने कहा कि वकील उससे मुलाकात के लिये जेल प्राधिकारियों के पास गये थे लेकिन उनसे कहा गया कि वे मजिस्ट्रेट के पास जायें।

सिब्बल ने कहा, ‘‘मजिस्ट्रेट ने हमसे कहा कि उच्चतम न्यायालय ने ऐसा आदेश नहीं दिया है।’’

हालांकि, मेहता ने दोहराया कि उन्हें वकीलों के कप्पन से मुलाकात करने पर कोई आपत्ति नहीं है।

न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुबमणियन की पीठ ने 12 अक्टूबर को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई स्थगित करते हुये याचिकाकर्ता से कहा था कि पहले इलाहाबाद उच न्यायालय जायें। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता को संशोधित याचिका दायर करने के लिये भी कहा था।

हालांकि, यूनियन ने सोमवार को न्यायालय को सूचित किया था कि उच्च न्यायालय में इस मामले में कोई प्रगति ही नहीं हुयी बल्कि कप्पन को अपने वकीलों से मुलाकात का अवसर देने से भी इंकार किया गया।

न्यायालय द्वारा उप्र सरकार से जवाब मांगे जाने के बाद ही कप्पन फोन पर अपने वकील से संक्षिप्त बातचीत कर पाये थे।

केरल यूनियन फॉर वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने अधिवक्ता श्वेता गर्ग के माध्यम से दायर याचिका में कहा है कि डीके बासु बनाम पश्चिम बंगाल मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हुये कप्पन की गिरफ्तारी की गयी है।

याचिका में हाथरस घटना का संकलन करने वाले पत्रकारों के लिये समान अवसर देने का मामला भी बनाया गया है। इसमें कहा गया है

‘‘लोकतंत्र की परख अंतत: बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी में ही निहित है। मीडिया लोकतंत्र की जान है। पत्रकारों को समाचार वाली जगह पहुंचने से रोकना रिपोर्टिंग के लिये नागरिकों के गरिमामय जीवन से जुड़ा है और यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(ए) और 21 का घोर उल्लंघन है।’’

याचिकाकर्ताओं ने कप्पन को तत्काल रिहा करने का अनुरोध किया है।

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Siddique Kappan: Supreme Court unhappy with "unfair reporting" of previous order, matter adjourned

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