सुप्रीम कोर्ट ने आज भीमा कोरेगांव मामले की आरोपी सुधा भारद्वाज की ओर से दायर याचिका को प्रत्याहरण के निर्देश देते हुए खारिज कर दिया जिसमे कोविड-19 महामारी के बीच अंतरिम जमानत की मांग की।
जस्टिस यूयू ललित और अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुनवाई की, जिसने महामारी के बाद चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत के संबंध मे भारद्वाज की याचिका को खारिज कर दिया था।
आज भारद्वाज के लिए अपील करते हुए, अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने इस आधार पर अंतरिम जमानत मांगी कि उनका मुवक्किल मधुमेह से पीड़ित था और अन्य सह-रुग्णताएँ थीं। ग्रोवर ने कहा कि पिछले दो साल जेल में बिताने के दौरान, भारद्वाज मे गठिया और हृदय रोग मे बढ़ोतरी हुई थी।
यह पूछे जाने पर कि भारद्वाज के खिलाफ क्या मामला था, ग्रोवर ने कहा,
“एक आपराधिक साजिश है । वह बिलासपुर (छत्तीसगढ़) उच्च न्यायालय में अभ्यास कर रही थी। यह कोई भी मामला नहीं है कि उसके पास से कोई सामग्री बरामद की गई है ... "
तब जस्टिस ललित ने पूछा कि नियमित जमानत याचिका दायर क्यों नहीं की गई। ग्रोवर ने जवाब दिया कि ऐसी याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।
जब ललित जे ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेशानुसार भारद्वाज का स्वास्थ्य नियमित था, तो ग्रोवर ने कहा,
"मैं केवल आपसे उनकी जांच करवाने की प्रार्थना करता हूँ और ये जांच जेल अस्पताल में नहीं हो सकती है। ”
न्यायमूर्ति रस्तोगी ने तब उल्लेख किया कि उनकी जांच 20 अगस्त को जेल प्रशासन द्वारा की गई थी।
इसके बाद ग्रोवर जेल में भारद्वाज को दी गई दवाई को पढ़ते हुए विवाद करने लगे। तब जस्टिस रस्तोगी ने पूछा,
"क्या आप कह रहे हैं कि यह रिपोर्ट झूठी है? आपके पास मेरिट पर एक अच्छा मामला है। आप नियमित जमानत अर्जी दाखिल क्यों नहीं करते हैं?"
न्यायालय ने यह देखते हुए कि भारद्वाज की स्थिति पर गहन नज़र डालने की आवश्यकता है, और नियमित जमानत याचिका दायर की जा सकती है, याचिका को खारिज करते हुए वापस ले लिया गया।
58 साल की सुधा भारद्वाज 2018 से मुंबई की बाइकुला महिला जेल में बंद हैं। उन्होंने विशेष एनआईए कोर्ट द्वारा उनकी जमानत याचिका खारिज करने के बाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी।
यह कहते हुए कि अंतरिम जमानत के लिए कोई मामला नहीं बनाया गया था, उच्च न्यायालय ने उल्लेख किया कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), महाराष्ट्र सरकार, और जेल अधिकारी कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए सभी सावधानी बरत रहे थे और उन्हे भी आवश्यक चिकित्सा देखभाल दी जा रही थी।
उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को एक सप्ताह के भीतर भारद्वाज की नवीनतम स्वास्थ्य रिपोर्ट और एक हलफनामा प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया था जिसमें स्पष्ट किया गया था कि उसने कैदियों की सुरक्षा के लिए बाइकुला जेल में न्यायालय के पीयूसीएल निर्णय को कैसे लागू किया।
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