उच्चतम न्यायालय सोमवार को इस सवाल पर विचार करने के लिये तैयार हो गया कि क्या वह 1975 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी द्वारा राष्ट्रीय आपात काल लागू करने की संवैधानिक वैधता पर गौर कर सकता है या नहीं।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहलेश्वरी और न्यायमूर्ति ऋषिकेष रॉय की पीठ ने केन्द्र सरकार को नोटिस जारी करते हुये कहा कि वह इस पहलू पर सुनवाई करेगा कि क्या ‘इतने लंबे अंतराल के बाद’ इस उद्घोषणा की वैधता की न्यायालय जांच कर सकता है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘ हम यह पता लगाने से विमुख नही होंगे कि क्या इतने लंबे अंतराल के बाद इस तरह की उद्घोषणा की जांच करना व्यावहारिक होगा या नहीं। हम अनुराेध (ए) के लिये नोटिस जारी कर रहे हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता याचिका को नया रूप दे सकते हैं।याचिका 18 दिसंबर तक संशोधित करने की अनुमति दी जाती है।’
न्यायालय ने याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया। साल्वे ने दलील दी कि न्यायालय को आपात काल की उद्घोषणा की वैधता परखने का अधिकार है। उन्होंने कहा,
‘‘युद्ध काल के अपराधों की अभी भी सुनवाई हो रही है। विश्व युद्ध के बाद लोग उस विघ्वंस से जुड़े मुद्दे अब उठा रहे हैं। यह (राष्ट्रीय आपात काल) संविधान के साथ छल था। हमे इस न्यायालय से इस पर फैसला कराना चाहिए था। मैं इसके जबर्दस्त पक्ष में हूं। यह राजनीतिक बहस का मसला नहीं है। क्या हमने देखा नहीं कि आपात काल के दोरान कैदियों के साथ क्या हुआ।’’
न्यायालय शुरू में इस याचिका पर विचार करने का इच्छुक नहीं था लेकिन बाद में इस पहलू पर विचार के लिये तैयार हो गया कि क्या 45 साल से ज्यादा समय बाद इस उद्घोषणा की वैधता पर विचार किया जा सकता है।
यह याचिका 94 वर्षीय वीरा सरीन ने एक याचिका दायर की है। उन्होंने 1975 में देश में लागू किये गये राष्ट्रीय आपात को असंवैधानिक घोषित करने और 25 करोड़ रूपए का मुआवजा दिलाने का अनुरोध किया है।
सरीन ने दावा किया है कि उनके पति के खिलाफ मनमाने, अनुचित और अन्याय पूर्ण तरीके से जारी नजरबंदी के आदेश के तहत जेल में ठूंसे जाने के भय के कारण वह और उनके पति देश छोड़ने के लिये मजबूर हो गये थे।
अधिवक्ता अनन्या घोष के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि उनके दिवंगत पति को विदेशी मुद्रा और तस्करी गतिविधियां रोकथाम कानून, 1974 (कोफेपोसा) और सफेमा कानून, 1976 के तहत ‘फंसाया’ गया था।
याचिका के अनुसार आपात काल लागू होने से पहले वीरा सरीन के दिवंगत पति का दिल्ली के करोल बाग और केजी मार्ग पर स्वर्ण कलाकृतियों, रत्नों और कलाकृतियों आदि का शानदार कारोबार था।
याचिकाकर्ता ने दावा किया है, ‘‘उनकी अचल संपत्ति जब्त कर ली गयी थी। चल संपत्ति, जिसमे करोड़ों रूपए की कलाकृतियां, रत्न, कालीन, पेंटिंग्स, हाथी दांत के सामान और मूर्तियां आदि शामिल थी, भी जब्त कर ली गयी थी और इन्हें आज तक उन्हें सौंपा नहीं गया।’’
याचिकाकर्ता के अनुसार वर्ष 2000 में उनके पति के निधन के बाद से वह अकेले ही आपात काल के दौरान उनके पति के खिलाफ शुरू की गयी सारी कानूनी कार्यवाही का सामना कर रही हैं।
याचिका में आरोप लगाया गया है, ‘‘कई बार तो उनके घर के दरवाजे पर दस्तक देकर पुलिस और दूसरे अधिकारी भीतर आते थे और घरे में बचा खुचा कीमती सामान उससे लेकर उसे अकेला छोड़ जाते थे।’’
याचिका में इस तथ्य का भी जिक्र किया गया है कि जुलाई, 2020 में सरकार के एक आदेश के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरीन और उनके दूसरे उत्तराधिकारियों को 1999 से केजी मार्ग, नयी दिल्ली की संपत्ति के किराये की बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था।
याचिका के अनुसार उच्च न्यायालय ने दिसंबर, 2014 में कहा था कि सफेमा कानून के तहत की गयी कार्यवाही किसी अधिकार के बगैर ही की गयी थी और यह अमान्य थी।
याचिका में दलील दी गयी है, ‘‘याचिकाकर्ता वृद्धावस्था में है और उसकी इच्छा है कि मानसिक आघात का यह मामला बंद हो और उसके उत्पीड़न का संज्ञान लिया जाये।’’
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