सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें विवाहित पुरुषों के बीच आत्महत्या की जांच के लिए राष्ट्रीय पुरुष आयोग के गठन की मांग की गई थी। [महेश तिवारी बनाम भारत संघ]।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि याचिका एकतरफा तस्वीर पेश करती है।
बेंच ने सवाल किया, "किसी के प्रति अनुचित सहानुभूति का प्रश्न ही नहीं उठता। आप बस एकतरफ़ा तस्वीर पेश करना चाहते हैं। क्या आप हमें शादी के तुरंत बाद मरने वाली युवा लड़कियों का डेटा दे सकते हैं?"
न्यायालय ने कहा कि आपराधिक कानून ऐसी स्थितियों का ख्याल रखता है और लोग उपचार के प्रति लापरवाह नहीं होते हैं।
"कोई भी आत्महत्या नहीं करना चाहता, यह व्यक्तिगत मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है। आपराधिक कानून सावधानी बरतता है, उपचार नहीं करता।"
याचिका में घरेलू हिंसा का शिकार होने के बाद आत्महत्या करने की सोच रहे विवाहित पुरुषों के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की मांग की गई थी।
प्रासंगिक रूप से, याचिकाकर्ता वकील महेश कुमार तिवारी ने केंद्र सरकार से इस संबंध में पुरुषों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग बनाने की प्रार्थना की। विवाहित पुरुषों की आत्महत्याओं और उनके खिलाफ घरेलू हिंसा की जांच के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को निर्देश देने की भी मांग की गई।
तिवारी ने प्रार्थना की थी कि भारत के विधि आयोग को इस मुद्दे का अध्ययन करना चाहिए और उक्त आयोग के निर्माण के लिए एक रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए।
याचिकाकर्ता ने वैवाहिक तनाव के कारण विवाहित पुरुषों के बीच आत्महत्या की घटनाओं को दिखाने के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर भरोसा किया।
याचिका में कहा गया है कि इसलिए, पुलिस को इस संबंध में पुरुषों द्वारा दायर शिकायतों को स्वीकार करना चाहिए और कानून बनने तक इसे राज्य मानवाधिकार आयोगों को भेजना चाहिए।
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