सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की इस टिप्पणी को खारिज कर दिया कि यदि धार्मिक समागमों, जहां धर्मांतरण होता है, को नहीं रोका गया तो देश की बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक बन जाएगी [कैलाश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य]।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि जमानत के चरण में उच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी अनावश्यक थी।
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत एक मामले में आरोपी को जमानत देते हुए न्यायालय ने कहा, "ऐसी सामान्य टिप्पणियों का इस्तेमाल किसी अन्य मामले में नहीं किया जाना चाहिए।"
आरोपी को हाईकोर्ट के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने 1 जुलाई को जमानत देने से इनकार कर दिया था।
हाईकोर्ट ने धर्म परिवर्तन और बहुसंख्यक आबादी पर इसके कथित प्रभाव पर भी विस्तृत टिप्पणी की थी।
सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट को बताया गया कि मुखबिर के भाई को उसके गांव से दिल्ली में "कल्याण" की एक सभा में भाग लेने के लिए ले जाया गया था। उसके साथ गांव के कई लोगों को भी ईसाई धर्म में धर्मांतरित करने के लिए वहां ले जाया गया था।
इस संदर्भ में, कोर्ट ने तब टिप्पणी की थी कि अगर इस तरह की प्रथा को जारी रहने दिया गया तो बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक बन जाएगी।
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने यह भी कहा कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 “अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म के स्वतंत्र पेशे, अभ्यास और प्रचार” का प्रावधान करता है, लेकिन एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण का प्रावधान नहीं करता है।
इसमें कहा गया है, “प्रचार” शब्द का अर्थ है बढ़ावा देना, लेकिन इसका मतलब किसी व्यक्ति को उसके धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित करना नहीं है।”
इन टिप्पणियों को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने हटा दिया।
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Supreme Court expunges Allahabad High Court remark on religious conversion