सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देने वाले एक याचिकाकर्ता पर ₹ 20,000 का जुर्माना लगाया जिसने बिना नोटिस जारी किए मामले को तीन महीने के लिए स्थगित कर दिया। (रमेश चंदर दीवान बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो)।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस तरह की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दाखिल करने पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए, जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की बेंच ने कहा,
"अगर यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं है, तो कोई और कुछ नहीं कह सकता। यह न्यायालय केवल इसलिए घूमने की जगह नहीं है क्योंकि चंडीगढ़ दिल्ली से निकटता में है।"
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि उच्च न्यायालय ने केवल स्थगन की मांग करने वाले याचिकाकर्ता-वकील के अनुरोध को बाध्य किया, और फिर भी याचिकाकर्ता ने स्थगन को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक एसएलपी दायर की।
इस पृष्ठभूमि में, शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता ने न्यायिक समय बर्बाद किया है।
कोर्ट ने आदेश मे कहा, "हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता को न्यायिक समय की बर्बादी के लिए भुगतान करना चाहिए और इस प्रकार आज से चार सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट ग्रुप सी (गैर-लिपिकीय) कर्मचारी कल्याण संघ के पक्ष मे 20,000/- रुपये जुर्माना राशि जमा कराने के निर्देश क के साथ याचिका को खारिज की जाती है।"
अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड आनंद मिश्रा उपस्थित हुए।
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