सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को आवश्यक सेवाओं तक पहुंच के लिए शर्त के रूप में लोगों को कोविड -19 का टीका लगाने के लिए मजबूर करने के खिलाफ एक याचिका पर नोटिस जारी किया।
डॉ. जैकब पुलियेल की याचिका में नैदानिक परीक्षण और टीकाकरण के बाद के आंकड़ों का खुलासा करने की भी मांग की गई है।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्वास्थ्य मंत्रालय से जवाब मांगा लेकिन कोई अंतरिम निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया।
कोर्ट ने टिप्पणी की, "एक बार जब हम इस याचिका पर विचार कर लेते हैं तो यह संकेत नहीं भेजना चाहिए कि हमें इन टीकों की प्रभावकारिता पर भरोसा नहीं है।"
टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के पूर्व सदस्य डॉ. जैकब पुलियेल की याचिका मे यह घोषणा के लिए प्रार्थना की कि किसी भी तरह से COVID के लिए टीकाकरण अनिवार्य करना, यहां तक कि इसे किसी भी लाभ या सेवाओं तक पहुंचने के लिए एक पूर्व शर्त बनाकर नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन और असंवैधानिक है।
याचिका मे कहा गया है कि, "अपनी नौकरी खोने या देश के कई हिस्सों में होने वाली आवश्यक सेवाओं तक पहुंच के दर्द पर लोगों को टीके लेने के लिए मजबूर करना लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, विशेष रूप से ऐसी स्थिति में जहां पूर्ण और पर्याप्त परीक्षण के बिना और परीक्षण डेटा और टीकाकरण के बाद के डेटा की पारदर्शिता के बिना टीकों को आपातकालीन अनुमोदन दिया गया है।"
याचिका में कहा गया है कि सरकार ने कई आरटीआई में स्पष्ट रूप से कहा है कि कोविड के टीके स्वैच्छिक हैं, देश भर से ऐसे कई उदाहरण हैं जहां अब विभिन्न अधिकारी टीकों को अनिवार्य कर रहे हैं।
इस सम्बन्ध में, केएस पुतास्वामी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा रखा गया था जिसमें यह माना गया था कि व्यक्ति की स्वायत्तता का अधिकार, जिसे एक दूसरे के स्थान पर 'स्वयं निर्धारित करने का अधिकार' कहा जा सकता है, जब उसके स्वास्थ्य की बात आती है तो अनुच्छेद 21 से प्रवाहित होता है और यह उसके निजता के अधिकार का एक पहलू है।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि वर्तमान में प्रशासित किए जा रहे टीकों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त रूप से परीक्षण नहीं किया गया है या अब जनता के सामने डेटा का खुलासा किए बिना आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण के तहत लाइसेंस प्राप्त किया गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता भूषण ने दो बार दलीलें दीं।
उन्होंने परीक्षण डेटा के प्रकाशन की मांग की ताकि लोग एक सूचित विकल्प बना सकें।
उन्होंने यह भी बताया कि जबकि सरकार ने कहा है कि टीका लेना स्वैच्छिक है, यह उन आवश्यक सेवाओं से इनकार करती है जिन्हें टीका नहीं लगाया गया है।
भूषण ने कहा कि याचिका "वैक्सीन विरोधी" याचिका नहीं है।
लेकिन वह वैक्सीन के दुष्परिणामों की ओर इशारा करते रहे।
उन्होने कहा, "ICMR के अध्ययन के अनुसार देश के दो-तिहाई हिस्से में COVID है। एक अध्ययन है जिसमें दिखाया गया है कि टीके नए कोविड रूपों की ओर ले जा सकते हैं और टीकों का डेल्टा संस्करण पर शायद ही कोई प्रभाव पड़ता है।"
पीठ ने टिप्पणी की, "यह देश वैक्सीन की कमी से लड़ रहा है। अब हम एक अलग स्पर्शरेखा पर हैं। टीकाकरण जारी रखें और हम इसे रोकना नहीं चाहते हैं।"
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