व्हीलचेयर से बंधे मुवक्किल को 'सहानुभूति' के लिए कोर्ट लाने पर सुप्रीम कोर्ट ने वकील को लगाई फटकार

पीठ ने टिप्पणी की कि उसे लगा कि प्रतिवादी की व्यक्तिगत उपस्थिति का उपयोग 'अनुचित सहानुभूति प्राप्त करने' के लिए किया जा रहा है।
व्हीलचेयर से बंधे मुवक्किल को 'सहानुभूति' के लिए कोर्ट लाने पर सुप्रीम कोर्ट ने वकील को लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक वकील द्वारा अपने लकवाग्रस्त और व्हीलचेयर से बंधे मुवक्किल को अदालत में लाने पर आपत्ति जताई, हालांकि अदालत ने संबंधित वादी की ऐसी व्यक्तिगत उपस्थिति को अनिवार्य नहीं किया था। [इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम राहुल कुमार और अन्य]।

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और पीवी संजय कुमार की पीठ ने कहा कि इस मामले की सुनवाई अकेले वकील की दलीलों पर निर्भर होकर की जा सकती थी।

आदेश मे नोट किया, "प्रतिवादी नंबर 1 के विद्वान वकील ने प्रस्तुत किया है कि उक्त प्रतिवादी, जिसे लकवाग्रस्त कहा जाता है, सुनवाई में भाग लेने के लिए न्यायालय के समक्ष है। हमें कोई भी कारण खोजने में नुकसान हो रहा है कि उक्त दावेदार-प्रतिवादी को इस न्यायालय में सुनवाई में भाग लेने की सलाह दी गई है, विशेष रूप से तब जब उसे कहा जाता है कि अन्यथा वह उचित शारीरिक स्थिति में नहीं है। इस अदालत ने उनसे सुनवाई के उद्देश्य से पेश होने के लिए कभी नहीं कहा या उम्मीद नहीं की।"

पीठ ने आगे निर्देश दिया कि मामले को फिर से सौंपे जाने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए।

यह आदेश एक बीमा कंपनी द्वारा दिए गए मुआवजे और देनदारियों से संबंधित एक मामले में पारित किया गया था। कोर्ट ने नवंबर 2019 में नोटिस जारी करते हुए बढ़े हुए मुआवजे पर रोक लगा दी थी।

[आदेश पढ़ें]

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Supreme Court rebukes lawyer for bringing wheelchair-bound client to court for "sympathy"

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